मानवीय मुल्य और कक्षा: परिचय अपने बच्चों से– श्री श्री रवि शंकर
दूसरा भाग
मूलभूत मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहन देने की शुरूआत कक्षा से ही होती है। एक बच्चा इस मूल्यों के साथ जन्म लेता है, शिक्षक को बस उनमें इन मूल्यों को जगाने भर की आवश्यकता है। मानवीय मूल्य हैं-दया, भाईचारा, मित्रता, हँसी, हल्कापन, सहायता करने की प्रवृत्ति, अपनापन और सबकी देखभाल करना आदि। इनको पोषित करके निखारने की आवश्यकता है। शिक्षकों द्वारा बच्चों की घर से सीखी गई कुछ आदतों को छुड़वाने की आवश्यकता भी होती है। अगर आप किसी बच्चे में कोई नकारात्मक भावना देखते हैं तो वह केवल उसकी परिधि तक ही सीमित होती है। यह मूल स्वभाव नहीं है। बहुत सारे प्रेम और देखभाल से उनके भीतर सकारात्मक मानवीय मूल्यों का संचार किया जा सकता है।
यह तथ्य अति उपद्रवी बच्चों के लिए भी सत्य है। ऐसे बच्चों को ज्यादा प्रोत्साहन और प्रशंसा की आवश्यक होती है। उनको इस बात का अहसास दिलाना ज्यादा आवश्यक होत है कि वह आपके अपने हैं और आप उनको बहुत प्रेम करते हैं और उनका आपको बहुत ख्याल है। वहीं दूसरी ओर जो बच्चे संकोची और शर्मीले हैं, उनके साथ थोड़ी दृढ़ता के साथ व्यवहार कर सकते है जिससे वह अपने में आत्मविश्वास ला कर सबके साथ बात-व्यवहार में संकोच न करें। उनके साथ थोड़ी कठोरता के साथ भी व्यवहार कर सकते हैं परन्तु प्रेम को बनाये रखते हुए। यह एक संवेदनशील प्रक्रिया है-दृढ़ता के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार।
अधिकांशतः इसके विपरीत होता है। शिक्षक अधिकतर उपद्रवी बच्चों के साथ सख्ती से व्यवहार करते है और संकोची बच्चो को पुरी छूट देते हैं। ऐसा करने से वह ऐसे ही व्यवहार के आदि हो जाते है और शर्मीले बच्चे आजीवन वैसे ही बने रहते हैं। बच्चो का सक्रिय खेलो में भाग लेना भी लाभकारी होता है। बैचेन प्रवृत्ति वाले बच्चों को शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता होती है।
to be continued………..
The next part will be published tomorrow…