सुख :- श्री श्री रवि शंकर
वह मन जो सुख खोजता है, कभी भी केन्द्रित नहीं हो सकता। जब तुम केन्द्रित होते हो तब सारे सुख अपने आप ही तुम्हारे पास आ जाते हैं। पर तब ये तुम्हें आकर्षित नहीं करते क्योंकि तुम स्वयं ही आकर्षणों का स्रोत हो। जो मन सुख के पीछे भागता है, वह परम सुख को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। यदि तुम सुख खोजते हो, सत्संग हो, सत्संग को भूल जाओ। अपना समय क्यों व्यर्थ गवाँ रहे हो? यही “छोड़ने की कला” (Art of “leaving”) है। यदि तुम्हें अपने दुःख में रस आता है, तुम केन्द्रित नहीं हो बहुत दूर हो।
या तो तुम सुख खोजो या मेरे पास आ जाओ।
प्रश्न: जब लोग नकारात्मक बातें कर रहे हैं, हम क्या करें
श्री श्री: अपनी तरफ से तुम सभी को किसी भी विषय में, किसी के भी बारे में, कहीं भी, कभी भी, बात करने की पूरी छूट दे दो।
इस सप्ताह का अभ्यास: इस पूरे सप्ताह सब के बारे में खूब नकारात्मक बातें करो।
यह एक चुनौती है।
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