*प्रश्नों और अभिलाषाओं से निपटना*:- श्री श्री रवि शंकर
एक युवक ने प्रश्न पूछा। श्री श्री उसका उत्तर देते, उसके पहले ही वह दूसरे प्रश्न के साथ तैयार था। तब गुरुजी ने कहा, “यदि तुम केवल प्रश्नों में फँसे रहोगे, तुम उत्तर कैसे पाओगे?”
अपने प्रश्न मुझे दे दो, तब तुम देखोगे उत्तर तुम्हारे पास ही है।
अभिलाषाएँ अपने आप उत्पन्न होती हैं, है कि नहीं? वे तुमसे पूछकर नहीं आती। जब इच्छाएँ उत्पन्न हो जाती है। , तुम उनका क्या करते हो? यदि तुम ऐसा सोचते हो कि तुम इच्छाहीन हो जाओ, तो यह भी एक और इच्छा है।
मैं एक उपाय बताता हूँ – हवाई जहाज पर जाने के लिए, या सिनेमा देखने के लिए टिकट खरीदनी पड़ती है। यह टिकट प्रवेश – द्वार पर
देनी पड़ती है। यदि तुम उस टिकट को पकड़े रखोगे, तो अन्दर कैसे जाओगे?
यदि तुम किसी कॉलेज में दाखिल होना चाहते हो तो आवेदन-पत्र की ज़रुरत है। उसे भरकर जमा देना पड़ता है। उसे पकड़ कर नहीं रख सकते।
इसी प्रकार जीवन-यात्रा में भी अपनी इच्छाओं को पकड़कर मत रखो, उन्हें समर्पित करते चले जाओ। जैसे जैसे समर्पण करते जाओगे, इच्छाएँ भी कम उत्पन्न होंगी
अभागे हैं वे, जो सदा कामना करते रहते हैं और उनकी कामनाएँ पूरी नहीं होती।
उनसे कुछ भाग्यवान हैं वे जिनकी इच्छाएँ विलम्ब से पूरी होती हैं।
और अधिक भाग्यवान हैं वे जिनकी इच्छा उत्पन्न होते ही पूरी हो जाती है।
सौभाग्यवान वे हैं जिनमें कामना उत्पन्न ही नहीं होती,क्यौकि इच्छा जागृत होने के पहले ही वे तृप्त हैं।
Leave a Reply