Results of All 9 Planets in 12 Houses in Hindi
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में 9 ग्रहों—सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु (बृहस्पति), शुक्र, शनि, राहु और केतु—का 12 भावों में स्थित होना उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है। प्रत्येक ग्रह जब किसी विशेष भाव में स्थित होता है, तो वह सकारात्मक या नकारात्मक फल प्रदान करता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि ये सभी 9 ग्रह 12 अलग-अलग भावों में किस प्रकार के फल प्रदान करते हैं। यह जानकारी न केवल ज्योतिष में रुचि रखने वालों के लिए उपयोगी है, बल्कि आत्मविश्लेषण और भविष्यवाणी के दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी है।
लग्न भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में लग्न भाव, जिसे प्रथम भाव भी कहा जाता है, कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। यह व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व, शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य और जीवन के प्रारंभिक चरणों का प्रतिनिधित्व करता है।
सूर्य के लग्न भाव का फल
स्थित होने से जातक क्रोधी, स्वाभिमानी, अस्थिर किंतु दृढ इच्छाशक्ति वाला होता है। जातक का ललाट विशाल होता है व बड़ी नाक भी होती है। जातक का शरीर हाँलाकि दुबला-पतला रहता है। लग्नस्थ सूर्य नेत्ररोग का कारण हो सकता है। जातक यदि स्वतंत्र व्यवसाय करें या नौकरी उसे उच्चपद की प्राप्ति अवश्य होती है। वह संपत्तिवान भी होता है।
- सप्तम दृष्टिः सूर्य के लग्न में स्थिर होने से उसकी सप्तम दृष्टि सप्तम भाव (पत्नी) पर पड़ती है जिससे जातक अपनी पत्नी से दुखी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व या उच्च राशि में सूर्य के प्रथम भाव के प्रभाव बहुत सकारात्मक व अधिक होते हैं। जातक अतिमहत्वपूर्ण बनता है व उसका यश बहुत अधिक फैलता है। सूर्य के शत्रु राशि में उपस्थित अपयश भी प्रदान कर सकती है या यश को कम कर सकती है।
- प्रथम भाव विशेषः प्रथम भाव पर सूर्य के प्रभाव से जातक यशस्वी, ज्ञानी व राज सम्मान को प्राप्त करता है। उसमें महत्वाकांक्षा भी करती है। उसका व्यक्तित्व साहस और वीरता से भी परिपूर्ण होता है।
चंद्रमा के लग्न भाव का फल
- स्वभावः चंद्रमा के लग्न में स्थित होने से जातक रसिक भावुक एवं सरल स्वभाव का होता है।जातक विपरीत लिंग के प्रति जल्दी आकर्षित होता है।जातक नयी-नयी वस्तुओं की खोज करने वाला, अन्वेषक, दूरस्थ स्थानों की यात्रा करने का इच्छुक, चंचल, आमोदप्रिय और अभिमानी होता है। जातक के स्वभाव में कोमलता होती है। जातक संगीत एवं काव्य का प्रेमी भी होता है। जातक को क्रोध आता है पर वह जल्दी ही शांत भी हो जाता है। चंद्रमा के लग्न में स्थित होने से जातक का व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली होता है। उसका गौर वर्ण होता है एवं शरीर प्रायः स्थूल होता है। जातक का कान्तिवान स्वरूप होता है। चंद्रमा की प्रकृति में शीतलता होती है।
- अतः जातक के लग्न में स्थित चंद्रमा सर्दी, जुखाम एवं साइनस संबंधी रोगों का कारण होता है। चंद्रमा के प्रभाव से जातक को हृदय एवं उच्च रक्तचाप से संबंधित रोग हो सकते हैं। सफेद वस्तुओं का व्यक्ति गायन, वादन, लेखन (काब्य) इत्यादि क्षेत्रों में सफल होते हैं। सफेद वस्तुओं का व्यवसाय में भी सफलता प्राप्त होती है।
- पूर्ण दृष्टिः चन्द्रमा के लग्न में होने से उसकी पूर्ण दृष्टि सप्तम् भाव पर पड़ती है, जो शुभकाकी होती है। जातक की पत्नी गोरी एवं सुंदर होती है। चंद्रमा की पत्नी स्थान पर दृष्टि से जातक की पत्नी का भी कला के प्रति रूझान रहता है।
- मित्र/शत्रु राशिः चन्द्रमा लग्न में स्वराशी, मित्र या उच्च राशि का होने पर शुभ फलदायक होता है और उच्च कोटि का राजयोग बनाता है। उच्च का चंद्रमा जातक को आसमान की ऊचाइयों पर ले जाता है। स्वराशि में भी चन्द्रमा के शुभ फलों में वृद्धि होती है। जातक अपने क्षेत्र में पारंगत होता है तथा यश व धन इत्यादि अर्जित करता है। चंद्रमा नीच राशि में जातक को संकुचित मनोवृत्ति वाला बना देता है। जातक अत्यंत निर्बल और भावुक होता है। जातक ख्याली पुलाव काफी बनाता रहता है। शत्रु राशि के चंद्रमा से जातक प्रायः अपने प्रयासों में असफल होता है।
- भाव विशेषः लग्न में स्थित चंद्रमा के प्रभाव से जातक चंद्रमा के सौम्य गुणों से प्रभावित होता है। जातक भावुक, कला प्रेमी, गायन, वादन के प्रति सहज आकर्षण रखने वालाल, सुखी और ऐश्वर्यशाली होता है। जातक में कोमल भावनाओं की अधिकता होती है। जातक जातक नयी खोजे, नये नियम, नयी योजनाएँ, इत्यादि बनाने मे लगा रहता है। जातक सोचता अधिक है।
मंगल के लग्न भाव का फल
- स्वभावः लग्न में मंगल के प्रभाव से जातक क्रोधी, भावन-शून्य, महत्वाकांक्षी और साहसी होता है। जातक को गुस्सा बहुत जल्दी और बहुत ज्यादा आता है। लग्न में मंगल के प्रभाव से जातक दृढ़ शरीर वाला होता है। प्रायः जातक के शरीर, मुख या सिर पर चोट का निशान होता है। जातक सुंदर स्वरूप वाला होता है। उसका ताम्र वर्ण होता है। जातक दीर्घायु होता है। लग्न में स्थित मंगल से जातक को सिर और शरीर में चोटें लगती हैं। बचपन में दांत निकलते समय कष्ट होता है। जातक को उदर विकार, रक्त विकार हो सकते हैं। जातक के लग्न में मंगल होने से वह सेना या पुलिस में पद प्राप्त करना है। जातक अच्छा शल्य-चिकित्सक (सर्जन) या भूगर्भ वैज्ञानिक हो सकता है। जातक भूमि संबंधित कार्यों में विशेष सफलता प्राप्त करता है।
- पूर्ण दृष्टिः प्रथम भाव में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि सप्तम स्थान पर पड़ती है जो पत्नी का स्थान है इस कारण प्रायः जातक की उसकी पत्नी से अनबन बनी रहती है। प्रथम भाव स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर होती हैं जो जातक की माता के लिए कष्टकारी है। जातक मातृभक्त होता है। प्रथम भाव स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि भाव पर होती है जिससे जातक को पेट संबंधी बीमारियाँ हो सकती है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्वराशि, मित्र राशि और उच्च राशि का मंगल होने पर जातक साधारण परिस्थियों से उठकर उच्च पद प्राप्त करता है। प्रायः जातक स्वस्थ और हष्ट-पुष्ट होता है। चेहरे पर लालिमा होती है। उच्च अधिकारीयों का सहयोग मिलता है। नीच का होने से जातक क्रूर कर्म करने की और प्रवृर्त होता है। शत्रु राशि का मंगल होने के कारण जातक पीडित होता है। जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता है। जातक मुकदमेबाजी से परेशान होता है।
- भाव विशेषः लग्न में मंगल जातक की नेतृत्व क्षमता विशेष होती है। जातक सेना, पुलिस, में अधिकारी बन सकता है। चेहरे पर दाग मेंगल के प्रभाव से ही होता हैं। जातक को अपने कार्य में हस्तक्षेप पसंद नहीं होता। जातक आक्रमण स्वभाव का होता है, आवेश में आने पर असंतुलित व्यवहार हो जाता है। लग्न में मंगल की स्थिति से जातक स्वयं की बढ़ा-चढ़ा कर तारीफ करता है। लग्न में स्थित मंगल जातक को परिश्रम से स्वयं के भाग्य का निर्मण करवाता है। जातक प्रायः झूठ बोलता है।
बुध के लग्न भाव का फल
- स्वभावः प्रथम भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक आस्तिक गणित में रूचि रखने वाला, उदार विद्वान , खर्चीला साहसी और सत्कार्य करने वाला होता है। जातक वैभव प्रिय होता है। वह दूरस्थ स्थानों की यात्रा करता है। लग्न में बुध के प्रभाव से जातक सुंदर एवं कांतिमान होता है। जातक की पत्रिका में बुध के लग्न में स्तिथ होने से जातक गणित व लेखा से संबंधित कार्य करता है। जातक प्रायः व्यापार में संलग्न रहता है।
- पूर्ण दृष्टिः लग्नस्थ बुध की पूर्ण दृष्टि सप्तम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की पत्नी सुंदर और सुशील रहता होती है। जातक को अपनी स्त्री से अत्यंत प्रेम होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र स्व व उच्च राशि के बुध के प्रभाव से जातक की वाणी तेजस्वी और ओज भरी होती है। वह अपनी वाणी का लोहा मनवाता है। जातक विनोदी एवं उदार स्वभाव का होता है। शत्रु एवं नीच राशि में बुध जातक को कृपण तथा मिथ्यावादी बनाता है। ऐसा जातक विश्वास योग्य नहीं रहता है। प्रायः जातक का वैवाहिक जीवन भी दुःखी होता है।
- भाव विशेषः लग्न में स्थित बुध यदि किसी ग्रह से युक्ति न रखता हो तो जातक उन्नति करता है और भाग्यवान होता है। लग्न में स्थित बुध के प्रभाव से जातक प्रायः अपने परिवार या शहर से अन्यत्र रहकर शिक्षा प्राप्त करता है। जातक विद्वान होता है तथा बुराई से कोसों दूर होता है। जातक हाजिर जवाब और विनोद प्रिय होता है। अतः बातचीत में सभी को प्रभावित करता है। जातक को साहित्य में रूचि होती है। विचारों और कार्यों में तेज होता है। जातक में विशेष सजगता पाई जाती है।
गुरू के लग्न भाव का फल
- स्वभावः लग्न में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक ज्ञानी, अधिकार युक्त, राजमान्य, विशाल हृदय वाला और दयालु होता है। जातक धार्मिक, सत्यवादी, विद्वान, आशावादी, सदैव प्रसन्न रहने वाला, विश्वसनीय और आत्मविश्वास से भरा होता है। जातक सर्व गुण सम्पन्न होता है। जातक के स्वभाव में अनेक विशेषताएँ पायी जाती है वह गंभीर होता है, सोच समझकर नपी तुली बातें करता है. जन्म पत्रिका में लग्न में स्थित गुरू अत्यंत योगकारक होता है एवं लग्नस्थ गुरू के प्रभाव से जातक न्यायधीश, विद्या अध्ययन संबंधी कार्य करने वाला, शासकीय अधिकारी या उच्च शिक्षा प्राप्त अधिकारी होता है। प्रायः व्यवसाय या कर्मक्षेत्र में जातक को असाधारण सफलता प्राप्त होती है।
- पूर्ण दृष्टिः लग्नस्थ गुरू की पूर्ण दृष्टि सप्तम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक को उत्तम पत्नी सुख प्राप्त होता है। जातक की पत्नी सुंदर, सुशील और गंभीर होती है और परिवार के साथ मधुर संबंध रखती है। जातक को व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है। पंचम स्थान में पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक पढ़ने-लिखने में निपुर्ण एवं सफल होता है। लग्नस्थ गुरू की नवम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती है जिससे जातक धर्मात्मा एवं भाग्यशाली होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में गुरू की स्थिति होने पर जातक का बचपन हर प्रकार से उत्तम होता है। वह धनी और यशस्वी होता है। जातक दीर्घायु और स्वस्थ होता है। उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति समय-समय पर होती है। शत्रु वा नीच राशि में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक दुर्बल होता है। जातक ज्ञान एवं सुख से वंचित रहता है। परेतु गुरू के दृष्टिगत भावों को शुभता अवश्य मिलती है। शत्रु या नीच राशि में गुरू होने से जातक अल्पज्ञानी, धन की न्यूनता और निम्न कोटि के लोगों के साथ व्यवसाय करता है।
- भाव विशेषः लग्नस्थ गुरू के प्रभाव से उसके समुदाय में जातक प्रमुख स्थान प्राप्त करता है। जातक के लग्न में गुरू की उपस्थिति अति शुभ कारक मानी जाती है। जातक ऊंचा-पूरा, सुंदर, कांतिमान और चौड़ी भौंहों वाला होता है। जातक के केश जल्दी ही श्वेत हो जाते हैं। लग्न में गुरू होने से जातक की लंबी आयु होती है। वह विद्वान, समझदार, तेजस्वी, विनीत, पुत्रवान एवं ज्योतिष संबंधी विषयों का ज्ञाता होता है।
शुक्र के लग्न भाव का फल
लग्न में शुक्र की स्थिति से जातक प्रायः उत्तम कोटि के कपड़े पहनना पसंद करता है एवं रहन-सहन में नजाकता नफासत पसंद होता है। जातक अपने सौंदर्य का विशेष ध्यान रखता है एवं सौंदर्य प्रसाधनों का शौकीन होता है। स्त्रियों की जन्म पत्रिका में लग्नस्थ् शुक्र के प्रभाव से वे अति सुन्दर होती है।
- स्वभावः द्वितीय स्थान में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक मिष्ठान प्रिय, यशस्वी, सुखी, कलाप्रिय एवं भाग्यशाली होता है। वह कर्त्तव्य, चतुर और अच्छा वक्ता भी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय शुक्र की पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिससे जातक सामान्य या गुप्त रोगी हो सकता है। जातक कफ व वात रोगों से भी प्रभावित होता है। शुक्र की अष्टम स्थान पर दृष्टि से जातक पर्यटनशील एवं विदेशवासी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः शुक्र के स्व, उच्च या मित्र राशियों में होने से जातक उत्तम सुख प्राप्त करता है। मित्र राशियों में होने से जातक को धन, यश, लोकप्रियता व बड़े कुटुंब की प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में शुक्र के होने पर शुभ फल में न्यूनता आती है। शत्रु राशि का शुक्र होने पर जातक का धन संचय नहा होता। जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति में भी अनेक बाधाएँ आती हैं। जातक के पारिवारिक सुख में भी न्यूनता होती है।
- भाव विशेषः द्वितीयस्थ शुक्र के प्रभाव से जातक धन का अर्जन व बचत करता है। जातक मित्रों के लिए हितैषी होता है। शुक्र के प्रभाव से जातक पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाता है। कला के क्षेत्र में जातक प्रसिद्ध प्राप्त करता है। प्रतिकूल प्रभाव से कुमित्रों की संगति में बर्बाद होता है। जातक में धैर्य नही होता है जिससे वह बिना सोचे समझे निर्णय लेता है एवं अनेक कष्ट उठाता है।
शनि के लग्न भाव का फल
- स्वभावः प्रथम स्थान में शनि के प्रभाव से जातक में कई राजसी गुण होते हैं। जातक के स्वभाव में नियमितता होती है। वह अपने प्रयासों से उच्च स्थान प्राप्त करता है। जातक की य़ोजनाएं दूरगामी होती हैं। प्रायः किसी कार्य अथवा व्यवसाय में प्रथम प्रदर्शक होता है। लग्न में शनि की स्थिति से जातक का रंग सांवला या गहरा होता है। जातक प्रायः नौकरी करता है और उच्चाधिकारियों के सहयोग से उन्नति प्राप्त होती है। संनानिवृत्ति के बाद अवस्था सर्वोत्तम होती है। वृद्धावस्था सुखी व्यतीत होती है।
- पूर्ण दृष्टिः लग्न में स्थित शनि की सप्तम पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के पत्नी से वैचारिक मतभेद होते हैं। शनि की दृष्टि शुभ नहीं होती जिसके प्रभाव से जातक के पत्नी से अनबन बनी रहती हैं। शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि तृतीय स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के छोटे भाई-बहन नही होते हैं। जातक भयभीत होता रहता है। शनि की दशम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को कर्म क्षेत्र में रूकावटें व कठिनाईयां होती है। जातक को कड़ी मेहनत के बाद सफलता मिलती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्वराशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को उच्च पद प्राप्त होता है। जातक संस्थाओं में उच्चाधिकारी होता है। जातक पारक्रमी एवं साहसी होता है। शत्रु व नीच राशि का शनि होने पर जातक झूठ बोलने वाला ओर स्वार्थी होता है। वह किसी की सहायाता न करने वाला होता है। प्रायः ऐसे जातक की मानसिकता अच्छी नहीं होती है। वह झगड़ालू और गरीब होता है। शत्रु व नीच राशि में व्यवसाय में कष्ट, पुत्र और धन की कमी होती है। दोनों एक साथ प्राप्त नहीं होते हैं। दूषित शनि के प्रभाव से जातक कुरूप, मलिन आलसी और अभिमानी होता है।
- भाव विशेषः जातक स्वयं तो कठोर परिश्रमी होता है परन्तु पार्यः दूसरो के काम में गलतियाँ निकालने वाला होता है। जातक थोड़ा हठी स्वभाव का होता है। लग्नस्थ अनि जातक को जिद्दी बनाता है।
राहु के लग्न भाव का फल
- स्वभावः लग्न में स्थित राहु के प्रभाव से जातक दुष्ट एवं नीच कर्म करने वाला होता है। लग्न्स्थ राहु जातक को स्वार्थी बनाता है। राहु के प्रभाव से जातक मनस्वी भी होता है। राहु के प्रभाव से जातक के व्यक्तित्व में उभार आता है। वह अपने आपको अभिव्यक्ति करनें में सक्षम होता है एवं उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है। लग्नस्थ राहु जातक को मस्तक रोगी बनाता है। जातक को मानसिक चिंता व नकारात्मक विचार परेशान करते हैं। जातक अंर्तमुखी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः लग्न में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक कोपत्नी के सुख में न्यूनता आती है। जातक के पत्नी से वैचारिक मदभेद होते रहते हैं।
- मित्र/ शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में होने पर जातक को शत्रु और रोगों से कष्ट नहीं होता। वह विलासिता प्रिय होता है। जातक को मित्रों की सहायाता प्राप्त होती है। शत्रु व नीच राशि में लग्न में स्थित राहु से जातक मस्तक रोगी, दुर्बल एवं अतिकामी होता है। शत्रु राशि में राहु की स्थिति लग्न में होने पर यह जातक के मस्तिष्क में नकारात्मक, नीच एवं दुष्ट विचारों को उत्पन्न करती है। जातक स्वयं से व अपने विचारों से परेशान व भयभीत रहता है।
- भाव विशेषः लग्नगत राहु का जन्म पत्रिका में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसके प्रभाव से जातक दूसरों पर दबाव बनाने वाला होता है। जातक को स्वयं को प्रयासों से सफलता प्राप्त होती है। राहु के प्रभाव से जातक स्वार्थी, क्रूर, झूठा, नास्तिक, अनैतिक, रोगी, दुष्ट, धोखेबाज और कामी होता है। जातक का पत्नी तथा संतान सुख में न्यूनता आती है। जातक में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षक होता है।
केतु के लग्न भाव का फल
- स्वभावः लग्न में स्थित केतु के प्रभाव से जातक दुखी, परिश्रमी और चिंतित होता है। जातक अल्पायु, चंचल स्वभाव एवं व्यवहार कुशल होता है। जातक जातक एकांकी स्वभाव का होता हैं।
- पूर्ण दृष्टिः केतु की दृष्टि नही होती हैं।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित केतु के प्रभाव से जातक को अशुभ प्रभावों में कमी को नौकरी से बर्खास्त होने की संभावना रहती है।
- भाव विशेषः जातक निरूत्साही और निराशावादी भावनाओं से परेशान होता है। जातक बुद्धिमान एवं तेज होता है।
द्वितीय भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में द्वितीय भाव को धन, वाणी, परिवार और कुटुंब का कारक माना जाता है। यह भाव व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, बचत, पारिवारिक सुख, वाणी की मधुरता या कटुता तथा भौतिक संपन्नता को दर्शाता है।
सूर्य के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव का सूर्य जातक को झगड़ा करने वाला, उग्र, उत्तेजित एवं ऊँची आवाज में बोलने वाला बनता है।
- सप्तम दृष्टिः सूर्य के द्वितीय भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि मृत्यु भाव (अष्टम भाव) पर पड़ती है इससे जातक की लंबी आयु होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः द्वितीय भाव में मित्र, स्व व उच्च राशि के सूर्य से जातक धनवान बनता है। उसके पास संपत्ति भी होगी और धन का संचय भी हो पायेगा।शत्रु व नीच राशि का सूर्य द्वितीय भाव में स्थित होने से जातक का धन का नाश होगा। जातक अपनी पैतृक संपत्ति का भी नाश करेगा।
- द्वितीय भाव विशेषः द्वितीय भाव में सूर्य की स्थिति से जातक को पैतृक संपत्ति नहीं मिलती है। द्वितीय भाव में सूर्य से जातक परिवारजनों से विवाद करता है।
चन्द्रमा के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः चन्द्रमा के द्वितीय भाव में होने से जातक बुद्धिमान, उदार, सबसे मित्रता रखने वाला और मधुरभाषी होता है। वह शांत स्वभावका और मिलनसार भी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव में चंद्रमा हो तो उसकी पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव याने मृत्यु स्थान पर होने के कारण जातक को जल घात का भय रहता है इसलिए जल वाले स्थानों में जातक को विशेष तौर से सावधान रहना चाहिये।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, उच्च या मित्र राशि में द्वितीय स्थान में चन्द्रमा होना अति शुभकारी है। जातक के पास धन संपत्ति एकत्र होती है। ऐसा जातक बहुत अच्छा गायक या कवि होता है अथवा इन क्षेत्रों में रूचि रखता है। शत्रु व नीच राशि में द्वितीय भाव में चन्द्रमा होने से विपरीत फल प्राप्त होते हैं। जातक को स्त्रियों से धन हानि होने की संभावना होती है। जातक की आँखो में कष्ट तथा उसे श्वास संबंधित रोग हो सकते हैं।
- द्वितीय भाव विशेषः द्वितीय भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को धनी एवं मधुरभाषी बनाता है। जातक को परिवार का सुख प्राप्त होता है। उसकी समाज में उत्तम स्थिति होती है। जातक परदेश में वास करता है द्वितीय स्थान के चंद्रमा से जातक सहनशील, शांतिप्रिय एवं भाग्यवान होता है। दोषी या ग्रसित चंद्रमा होने पर वाणी में हकलाहट संभव होती है।
मंगल के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय स्थान में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का, असभ्य और कटु वाणी बोलने वाला होता है। जातक निर्बुद्धि, धनहीन और फिजूल के साधनों में अपव्यय करने वाला होता है। खर्च आता रहता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव में स्थित मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक दुःखी हा है। जातक को पेट संबंधी बीमारियाँ हो सकती है। द्वितीय भाव स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिससे जातक को संतान की चिंता रहती है। द्वितीय भाव स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण नवम भाव पर पड़ती है। जिससे जातक को भाग्य में प्रगति होती है।
- शत्रु/मित्र राशिः उच्च स्वराशि व मित्र राशि में स्थित मंगल जातक पराक्रमी एवं परदेशवासी होता हैं। शत्रु व नीच राशि में मंगल के होने पर जातक क्रोधी, चोरी का भय, कटु बोलने वाला होता हैं। और उसे भारी आर्थिक हानि होती है। जातक पैतृक संपत्ति को लेकर हमेशा चिंतित रहता है। जातक निर्बुध्दी एवं धनहीन होता है।
द्वितीय भाव विशेषद्वितीय भाव में मंगल के स्थित होने से जातक की तर्फ शक्ति प्रबल होती है.। इससे विवादों में लाभ प्राप्त होता है। लेन-देन से जातक को सफ लता प्राप्त होती है। जातक कटु तिक्त रस प्रिय होता है। अपार जीवन शक्ति से जातक बिना थके लगातार काम करता है। द्वितीय भाव में स्थित मंगल से जातक को विष व शास्त्र का भय रहता है।
बुध के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक स्वभाव से गुणी, सुखी, कुशलवक्ता, साहसी और सत्कर्म करने वाला होत है। जातक मिष्ठान्न पसंद करता है। जातक की वाणी निर्मल होती है।
- पूर्ण दृष्टिः दूसरे स्थान मे स्थित बुध की पूर्ण दृष्टि आठवें भाव पर होती है। जिसके प्रभाव से जातक दुखी और प्रवासी होता है। व्यर्थ भ्रमण से धन और समय बरबाद होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्वराशि में स्थित बुध के प्रभाव से जातक धन संग्रह करता है। से परिवार का सुख प्राप्त होता है। ऐसा जातक लंबी यात्राओं पर जाता है एवं सुखी होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर जातक को धन संग्रह में परेशानी होती है। परिवारजनों से जातक के संबंध अच्छे नहीं होते हैं। ऐसे जातक को नेत्र और मुख से संबंधित रोग भी हो सकते हैं।
- भाव विशेषः द्वितीय स्थान में स्थित बुध के प्रभाव से जातक गणित व लेखा संबंधित व्यवसाय करता है। जातक दलाली के कार्य में भी सफलता प्राप्त करता है। दूसरे स्थान में बुध के कमजोर होने पर जातक हकलाता है। जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है। जातक को अन्य किसी जगह से धन व संपत्ति प्राप्त होने के योग बनते हैं। जातक नित नयी योजनायें बनाता रहता है।
गुरू के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव में स्थित गुरू जातक को धनी, सहृदय, प्रसिद्ध और यशस्वी बनाता है। जातक विद्वान और बुद्धिमान होता है। जातक को कई अधिकार प्राप्त होते हैं। वह राजमान्य होता है। जातक विद्वत्ता पूर्ण बातें करने के कारण प्रसिद्ध होता है। जातक ईश्वर की आराधना करता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव स्थित गुरू की पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक दीर्घायु होता है। जातक स्वस्थ होता है एवं अपने कर्म स्थल में असाधारण सफलता प्राप्त करता है। द्वितीय स्थान पर गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जात ऋणहीन होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर होने से जातक कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित गुरू अत्यंत शुभ होता है एवं जातक को धनी बनाता है। उसे परिवार का सुख मिलता है। परिवार में जातक की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर जातक का परिवार में विरोध होता है। जातक की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।
- भाव विशेषः दूसरे भाव में गुरू की उपस्थिति से जातक को ससुराल पक्ष से विशेष लाभ रहता है। पत्नी का भी कार्यक्षेत्र एवं आय का स्रोत अवश्य रहता है। द्वितीय स्थान पर गुरू होने से जातक मधुरभाषी, अच्छे कार्य करने वाला, पुण्यात्मा, सदाचारी, भाग्यवान एवं पुत्र युक्त होता है। द्वितीयस्थ गुरू को प्रभाव से जातक को धन की तंगी हमेशा रहती है।
शुक्र के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव में शुक्र स्थित होने पर जातक मधुरभाषी, कला प्रेमी, संगीत व साहित्य में रुचि रखने वाला तथा सुख-सुविधाओं का आनंद लेने वाला होता है। ऐसा जातक सुंदर वाणी का धनी होता है और उसे खानपान में विशेष रुचि होती है। वह अपने व्यवहार से दूसरों का मन मोह लेने में सक्षम होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव में स्थित शुक्र की पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है। इसके प्रभाव से जातक को कभी-कभी गुप्त रोगों या प्रजनन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह दृष्टि जातक को रहस्यप्रिय बनाती है और कई बार जातक को गुप्त धन लाभ या गुप्त शत्रुओं से भी जोड़ती है। कभी-कभी यह पर्यटन और विदेश यात्रा के योग भी बनाती है।
- मित्र/शत्रु राशिः यदि शुक्र स्व, उच्च या मित्र राशि में द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक को भरपूर सुख, धन, यश और पारिवारिक आनंद प्राप्त होता है। शुक्र की शुभ स्थिति जातक को ऐश्वर्यशाली और कुटुंब में प्रतिष्ठित बनाती है। यदि शुक्र शत्रु या नीच राशि में हो तो पारिवारिक क्लेश, आर्थिक परेशानियाँ और धन संचय में बाधाएँ आती हैं। जातक को कभी-कभी वाणी में कटुता और पारिवारिक मतभेदों का भी सामना करना पड़ सकता है।
- भाव विशेषः द्वितीय भाव में शुक्र जातक को धन संचय की प्रवृत्ति देता है। ऐसा जातक सामाजिक रूप से लोकप्रिय होता है और मित्रों व परिवार के लिए हितैषी होता है। शुक्र के प्रभाव से जातक कला, संगीत, अभिनय या सौंदर्य से जुड़े कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। यदि शुक्र प्रतिकूल हो तो जातक गलत संगति में पड़ सकता है और धन का अपव्यय कर बैठता है। जातक में धैर्य की कमी हो सकती है, जिससे वह कई बार अविवेकी निर्णय लेकर परेशानी में पड़ जाता है।
शनि के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में शनि के प्रभाव से जातक का स्वभाव विवेकहीन, अपव्ययी, चिंता से ग्रस्त, दुखी, झगड़ालु एवं दुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करने वाला होता है। वह एकांत प्रिय, गुप्त विद्याओं में रूचि रखने वाला और प्रेम संबंधो से असंतुष्ट होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव में स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अस्वस्थ होता है। उसेशत्रु से कष्ट होता है। धन संग्रह पारिवारिक सुख एवं भाग्य में बाधाएं आती है। द्वादश भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को आमदनी में तथा बचत में कष्ट होते हैं। व्यवसाय होने पर बाधाएँ आती है। सर्विस होने पर प्रमोशन देर से होता है। धन संग्रह भी नही हो पाता है। पारिवारिक सुख में न्यूनता होती है। जातक की शिक्षा-दीक्षा में बाधा आती है। द्वादश भाव में स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाग्य में रूकावटें आती रहती हैं। जातक को सफलता के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्व राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक के व्यय में जातक को शत्रुओं से हानि, अपमान चोरी, दुर्घटना, अग्निकाण्ड इत्यादि से भय होता है।
- भाव विशेषः 12वें भाव में स्थित शनि जातक के सांसारिक पक्ष के लिये अशुभ होता है। पर जातक का धार्मिक जीवन सुखद होता है। वह आध्यात्मिक स्तर पर प्रगति अवश्य करता है। द्वादश भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक के शत्रु या तो होते ही नही एवं होने पर स्वयं नष्ट हो जाते हैं। जातक व्यर्थ पैसा खर्च करने वाला एवं व्यसनी होता है। जातक कटुभाषी व अविश्वासी होता है। द्वादश भाव में स्थित शनि जातक की माता के लिए कष्टकारक होता है।
राहु के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक को धन प्राप्ति परेशानी से होती है। जातक वाचाल, विरोध करने वाला, शत्रुओं से लाभ प्राप्त करने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय स्थान में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी बीमारियाँ हो सकती है। जातक का स्थूल शरीर होता है एवं वह अत्यंत कामुख होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में होने पर राहु शुभ फलदायक होता है। मित्र राशि में द्वितीय स्थान में राहु से जातक की अल्प धन की बचत होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित राहु उत्तराधिकारी से प्राप्त धन में हानि करता है एवं पूर्वजों की संपदा नष्ट होती है। शत्रु राशि पर होने पर जातक घमंड़ी, अंहकारी, चोरी करने वाला, दुर्भाग्यशाली और निम्न कोटि के लोगों की संगत करने वाला होता है। जातक को अत्याधिक परिक्षम करना पड़ता है।
- भाव विशेषः द्वितीय स्थान में स्थित राहु के प्रभाव से जातक क्रोधी एवं कटु शब्द बोलने वाला होता है। जातक के कटु भाषण के कारण कुटुंब से मतभेद व दूरी बनी रहती है। जातक पैतृक संपत्ति अचानक प्राप्त करता है। जातक हमेशा संघर्षशील रहता है एवं कठोर परिश्रम के बाद थोड़े से धन का संग्रह कर पाता है।
केतु के द्वितीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव में स्तिथ केतु के प्रभाव से जातक धनी, सुखी एवं परिवार से प्रेम करने वाला होता है। परंतु वह कर्कश स्वभाव का होता है। द्वितीय स्थान में केतु के प्रभाव से जातक को प्रचुर धन और सुख प्राप्त होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित केतु के प्रभाव से जातक मृदुभाषी, अल्पभाषी और सफलता प्राप्त करता है। शत्रु व नीच राशि का केतु होने से जातक की कर्कश आवाज, आलोचनात्मक, निम्न कोटि के लोगों की संगति और दूसरों पर निर्भर होता है।
- द्वितीयः भाव विशेषः द्वितीय भाव में केतु की स्थिति से जातक को यह चिंता रहती है की शासन उसकी संपत्ति को जब्त न करले जातक मुख के रोगों से ग्रसित व परेशान रहता है।
तृतीय भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में तृतीय भाव को पराक्रम, साहस, छोटे भाई-बहन, संवाद क्षमता, लेखन-कला, यात्रा और प्रयास का कारक माना जाता है। यह भाव व्यक्ति के आत्मविश्वास, साहसिकता और सामाजिक जुड़ाव को दर्शाता है।
सूर्य के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक यशस्वी, रचनात्मक मनोवृत्ति वाला, प्रतापी और पराक्रमी होता है। वह सदैव दूसरो की सहायता के लिए तत्पर रहता है। जातक बुद्धिमान और ज्ञानी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीय भाव में स्थित सूर्य की पूर्ण दृष्टि नवम पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक भाग्यशाली, घार्मिक, आस्तिक एवं कार्यकुशल होता है। उसे उच्चपद की प्राप्ति होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र राशि, स्वराशि अथवा उच्च राशि में तृतीय भाव में सूर्य के होने पर जातक भाइयों के लिए भाग्यशाली होता है। वह अपने पराक्रम से धनार्जन करने वाला होता है। जातक को दूर देशों की यात्रा करना पसंद होता है।शत्रु व नीच राशि में सूर्य तृतीय भाव में स्थित होने पर जातक को चर्म रोग, विष औरअग्नि से भय होता है। जातक को जीवन में कई बार मानहानि का भय होता है। वह अति उग्र प्रवृति का होता है। जातक को भाईयों से सुख एवं सहयोग नहीं मिलता है।
- भाव विशेषः तृतीय स्थान में सूर्य से जातक के परिवारिक संबंध सुदृढ़ होते हैं। सुख-दुख में जातक परिवारजनों का पूरा ध्यान रखता है। शत्रुओं पर जातक को विजय प्राप्त होती है। जातक राजा के समान सर्व सुखों से युक्त जीवन व्यतीत करता है। जातक को यात्राओं में सफलता और आनंद दोनों हा प्राप्त होते हैं। जातक राजा कार्यो में सफल होता है। जातक बलवान होता है।
चन्द्रमा के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय भाव में स्थित चंद्रमा के प्रभाव से जातक तीव्र स्मरण शक्ति वाला होता है। वह साहसी, पराक्रमी एवं धार्मिक कार्यो में रूचि रखने वाला होता है। जातक को यात्रा तथा परिवर्तन प्रिय होता है। जातक प्रसन्नतित रहता है और कम बोलने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जो भाग्य स्थान है। नवम भाव पर चन्द्रमा की दृष्टि होने से जातक का महिलाओं के सहयोग से भाग्योदय होता है। विवाह के बाद पत्नी भाग्योदय का कारक होती है। व्यक्ति विलासी, धार्मिक और सुन्दर शरीर वाला होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च एवं स्वराशि का चन्द्रमा शुभ फलदायक होता है। जातक उच्च कोटि का कला प्रेमी होता है। उसे सर्वत्र सफ लता मिलती है। बहनों का सुख और सहयोग विशेष रूप से प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि का चन्द्रमा रोग कारक होता है। भाईयों व बहनों से बैर कराने वाला तथा भाग्य में न्यूनता लाता है। जातक झगडालू एवं ईष्यालु होता है।
- तृतीय भाव विशेषः जातक की देह वायु प्रधान होती है। प्रायः देह में स्थूलता होती है। चेहरे पर कान्ति होती है। इस भाव में चन्द्रमा भाई-बहनों के सुख में वृद्धि करता है एवं जातक को अपनी बहनों से विशेष लगाव होता है। तृतीय भाव में स्थित चंद्रमा जातक को भाग्यशाली बनाता है। तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को कफ रोगी बनाता है। जातक को शीत संबंधी कष्ट एवं एलर्जी होती है। वायु तथा वात संबंधी रोग जैसे गैस बनना इत्यादि होने की संभावना होती है।
मंगल के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः जातक की जन्म पत्रिका में तृतीय भाव का मंगल प्रबल कारक होता है। तृतीय भाव में स्थित मंगल से जातक साहसी, धैर्यवान, सर्वगुणसम्पन्न, बलवान, शूरवीर और उदार होता है। जातक की प्रवल जठराग्नि होती है अर्थात अधिक भोजन करता है। जातक सारे सुख अपने पराक्रम से प्राप्त करता है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीय स्थान में मंगल की पूर्ण सप्तम दृष्टि नवें स्थान पर पड़ती है। जिसके कारण जातक धनी, पराक्रमी और बुद्धिमान होता है परंतु फलों की प्राप्ति मंगल के शुभ व अशुभ स्थिति पर निर्भर रहेगी। तृतीयस्थ मंगल की पूर्ण चतुर्थ दृष्टि षष्ट भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है। मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक राज्यधिकार व उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र राशि, स्व राशि और उच्च राशि में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक में शौर्य एवं पराक्रम अधिक होता है एवं वह अपने पराक्रम से सब कुठ प्राप्त करते हुए भी सदैव अंसतुष्ट रहता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक को भाइयों से सुख नहीं मिलता है। रूखापन तथा कटुता में वृद्धि होती है। शत्रु राशि में जातक होने से जातक अपनी शक्ति तथा बुद्धि का उपयोग गलत दिशा में कर सकता है। जातक प्रायः विद्रोही स्वभाव का होता है।
- तृतीय भाव विशेषः तृतीय भाव स्थित मंगल के प्रभाव से जातक अपने पुरूषार्थ (प्रयासों) से धन अर्जन करता है। जातक को भाईयों से विशेष सहयोग नहीं मिलता है। जातक अपने भाईयों को लेकर चिंतिच रहता है। जातक में शारीरिक स्फूर्ति अधिक होती है। जातक शस्त्र कला में विशेष रूचि रखता है।
बुध के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः द्वितीय भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक स्वभाव से गुणी, सुखी, कुशलवक्ता, साहसी और सत्कर्म करने वाला होत है। जातक मिष्ठान्न पसंद करता है। जातक की वाणी निर्मल होती है।
- पूर्ण दृष्टिः दूसरे स्थान मे स्थित बुध की पूर्ण दृष्टि आठवें भाव पर होती है। जिसके प्रभाव से जातक दुखी और प्रवासी होता है। व्यर्थ भ्रमण से धन और समय बरबाद होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्वराशि में स्थित बुध के प्रभाव से जातक धन संग्रह करता है। से परिवार का सुख प्राप्त होता है। ऐसा जातक लंबी यात्राओं पर जाता है एवं सुखी होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर जातक को धन संग्रह में परेशानी होती है। परिवारजनों से जातक के संबंध अच्छे नहीं होते हैं। ऐसे जातक को नेत्र और मुख से संबंधित रोग भी हो सकते हैं।
- भाव विशेषः द्वितीय स्थान में स्थित बुध के प्रभाव से जातक गणित व लेखा संबंधित व्यवसाय करता है। जातक दलाली के कार्य में भी सफलता प्राप्त करता है। दूसरे स्थान में बुध के कमजोर होने पर जातक हकलाता है। जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है। जातक को अन्य किसी जगह से धन व संपत्ति प्राप्त होने के योग बनते हैं। जातक नित नयी योजनायें बनाता रहता है।
गुरू के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक शास्त्रज्ञ, लेखक, योगी, आस्तिक, कंजूस, कृतघ्न, विनम्र और जितेन्द्रिय होता है। जातक की रूचि ज्ञान अर्जित करने में होती है। जातक पठन-पाठन का शौक रखता है। जातक स्त्रीप्रिय होता है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीयस्थ गुरू की पूर्ण सप्तम दृष्टि नवम भाव पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक अपने विषय में प्रभावशाली ज्ञान रखने वाला, संतोषी, धार्मिक, संतान और धन से सुखी भाग्यशाली और दानी होता है। जातक ईश्वर, धर्म एवं धार्मिक कार्यो में विशेष आस्था रखता है। तृतीयस्थ गुरू की पूर्ण पंचम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की पत्नी सुशील एवं आज्ञाकारी होती है। तृतीयस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि आय स्थान अर्थात एकादश भाव पर पड़ती है जिससे जातक की स्थिर आय होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व या उच्च राशि में जातक धनी होता है। अपने पराक्रम से सभी सुख अर्जित करता है। मित्र राशइ के गुरू के प्रभाव से जातक को भाईयों का सुख प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि का गुरू होने पर जातक डरपोक होता है एवं भाइयों से कष्ट प्राप्त करता है।
- भाव विशेषः तृतीयस्थ गुरू मुख्यतः जातक के पराक्रम एवं भाईयों से संबंध रखता है। शुभ युति और दृष्टि में उच्च शिक्षा तथा भाईयों से संबंध होते हैं। प्रायः ऐसे जातक को संयुक्त परिवार में रहना पसंद होता है। जातक का बौद्धिक क्षेत्रों में विशेष प्रभाव होता है। अतः जातक बौद्धिक कार्यों जैसे लेखक, साहित्यकार, आलोचक अथवा समीक्षक होता है। शिक्षण कार्य में जातक को विशेष सफलता प्राप्त होती है। जातक के मंदाग्नि रहती है अर्थात जातक कम भोजन खाता है। जातक भ्रमण प्रिय होता है। एवं नित्य देश-विदेशों में भ्रमण व प्रवास करता है।
शुक्र के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय स्थान में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक मनोरंजन प्रिय, सुखी, धनी, यात्रा प्रिय, विद्वान और कला प्रिय होता है। जातक मिलनसार और विपरीत लिंग के व्यक्ति के प्रति सहज रूप से आकर्षित होता है। जातक को बहनों का विशेष सहयोग मिलता है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीय भाव में स्थित शुक्र की पूर्ण दृष्टि नवम स्थान पर होती है जो जातक के लिए शुभ फलदायक होती है। नवम स्थान पर शुक्र की दृष्टि से जातक सरपंच, ग्रामाधिपति व अपने कुल व समाज में उच्च पद व प्रतिष्ठान प्राप्त करता है। जातक की धर्म के प्रति अत्यंत आस्था होती है। जातक की कीर्ति दूर-दूर फैलाती है। रंगमंच, होटल व्यवसाय व मनोरंजन के क्षेत्र में जातक को विशेष सफलता प्राप्त होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है व उसे भाई-बहनों का सहयोग प्राप्त होता है। वह पराक्रमी एवं अपने पुरूषार्थ से सफलता प्राप्त करता है। स्वराशि में जातक लंबी यात्राएं अपने आनंद के लिए करता है। शत्रु व नीच राशि में शुक्र के प्रभाव से विपरीत फल प्राप्त होता है। जातक को भाईयों व बहनों से सहयोग नहीं मिलता है। उसमें साहस कमी होती है।
- भाव विशेषः तृतीय भाव भाई-बहन व पराक्रम से संबंध रखता है इसलिए तृतीय भाव में शुक्र की स्थिति से जातक को भाईयों विशेषकर बहनों का सुख व सहयोग प्राप्त होता है। जातक पराक्रमी होता है एवं अपने स्वयं के पराक्रम से प्रगति करता है। तृतीय स्थान पर शुक्र की स्थिति जातक को भाग्यशाली भी बनाती है। जातक चित्रकारी में विशेष रूचि रखता है। जातक को पर्यटन में विशेष आनंद आता है।
शनि के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय स्थान जातक के पराक्रम को दर्शाता है यहां स्थित शनि के प्रभाव से जातक सजग, साहसी एवं पराक्रमी होता है। वह चंचल होता है। जातक दयालु, तीव्र बुद्धि एवं अहंकारी होता है। जातक की दर्शन शास्त्र, विद्या को ग्रहण करने में तथा लेखन में रूचि होती है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीय भाव स्थित शनि की नवम स्थान पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को भाग्य में रूकावटें आती रहती है। जातक को सफलता को लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। तृतीयस्थ शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की विद्या में रूकावटें आती है। जातक की संतान भी देरी से होती है। तृतीयस्थ शनि की दशम पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का विना किसी कारण के व्यय अधिक होता रहता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्वराशि, मित्र राशि या उच्चराशि में होने पर जातक चतुराई से कार्य करने वाला, जिम्मेदार, तर्क शक्ति से परिपूर्ण, उदार और धनी होत है। भाईयों की सहायता से सफल होता है। यात्राओं से व्यवसाय या कार्यक्षेत्र में लाभ होता है। शत्रु व नीच राशि में शनि की स्थित अशुभ होती है। जातक को भाईयों का सुख व सहायता प्राप्त नहीं होते हैं। स्त्री राशि में जातक का भाईयों से अलगाव शनि के स्थित होने से होता है और आर्थिक कारणों से संबंध खराब होते हैं। संतान देर प्राप्त होती है।
- भाव विशेषः पराक्रम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को हर सफलता प्राप्त करने से पहले अनेक बाधाएं आती हैं, परंतु जातक अपने प्रयासों से उन पर सफलता प्राप्त करता है। उत्तम कोटि की एकाग्रता, प्रबल मानसिक संतुलन और नियमित जीवन जातक की विशेषताएं होती हैं।
राहु के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय भाव में राहु के प्रभाव से जातक की राजनैतिक और शैक्षणिक कार्यों में रूचि होती है। जातक को भाई अगर हो तो उनसे लाभ नही होता है। जातक गर्वीला, पराक्रमी, बुद्धिमान, आशावादी और साहसी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः तृतीय भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के भाग्य में रूकावटें आती है किंतु अचानक व अप्रतियशित तरीके से जातक के कार्य पूर्ण होते हैं। जातक की धर्म के प्रति कम रूचि होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में तृतीयस्थ राहु के प्रभाव से जातक को व्यवसाय में लाभ होता है। वह बलवान और दीर्घायु होता है। स्त्री राशियों में राहु बहनों के लिये अशुभ होता है। पुरूष राशि में होने पर दो भाई साथ-साथ नहीं रह सकते। शत्रु व नीच राशि में राहु के प्रभाव से जातक अपने पराक्रम से दुखी रहता है व कष्ट पाता है। जातक स्वयं के लिए परेशानियाँ खड़ी करता है।
- भाव विशेषः राहु के तृतीय स्थान पर होने से जातक की आवाज कर्कश होती है। जातक की गलत लोगों से संगति होती है। तृतीयस्थ राहु के प्रभाव से जातक जारनीतिज्ञ बनता है। राहु की स्थिति के अनुसार जातक राजनीति करता है। जातक ढृढ़ संकलप वाला होता है एं सोचे काम को करता है। जातक अपने जीवन में परिश्रम से ज्यादा अपनी विचारधारा व कार्यशैली की वजह से प्रतिष्ठा वा पद प्राप्त करता है। जातक के भाई बहनसे जातक को विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होता है।
केतु के तृतीय भाव का फल
- स्वभावः तृतीय भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक बुद्धिमान, साहसी, शत्रु नाशक, कामी, कार्यकुशल, दीर्घायु, यशस्वी, भाग्यशाली और भाईयों से लाभ पाने वाला होता है।
- मित्र शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि का केतु होने पर जातक में धैर्य, पराक्रम, दयालुता आदि गुण होते हैं। जातक को भाईयों से सहयोग प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि का केतु होने पर जातक को अशुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं। जातक मानसिक चिंताओं से त्रस्त होता है। जातक को भाईयों से सहयोग प्राप्त नही होता। जातक को यात्रा में हानि होती है।
- भाव विशेषः तृतीय स्थान में केतु के प्रभाव से जातक चंचल स्वभाव का होता है। जातक को तंत्र जगत में रूचि होती है एवं गुप्त विद्याओं के प्रति जागरूकता रहती है। जातक व्यर्थ की बातें करता रहता है। जातक को वात संबंधी रोग भी होते हैं।
चतुर्थ भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में चतुर्थ भाव को सुख भाव कहा जाता है। यह भाव जातक के घरेलू जीवन, माता, अचल संपत्ति, वाहन, शिक्षा, मानसिक शांति और आत्मिक सुख का प्रतिनिधित्व करता है। चतुर्थ भाव यह दर्शाता है कि व्यक्ति को जीवन में पारिवारिक सुख, संपत्ति और सुरक्षा कितनी प्राप्त होगी।
सूर्य के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्थ स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक बुद्धिमान एवं अच्छी स्मरण शक्ति वाला होता है। जातक प्रवासी होता है। जातक प्रसिद्ध, कठोर और गुप्त विध्या में रूचि रखने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थान पर स्थित सूर्य की पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर पड़ती हैं जिसके प्रभाव से जातक राजमान्य होता है एवं उच्चपद को प्राप्त करने वाला होता है। जातक अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व उच्च व मित्र राशि में सूर्य चतुर्थ भाव में होने पर जातक कला प्रिय, पारिवारिक सुखों को प्राप्त करने वाला, राजमान्य और प्रसिद्ध होता है। शत्रु व नीच राशि में चतुर्थ भाव में स्थित होने पर सूर्य से जातक को माता पिता के सुख में न्यूनता होती है। जातक को किराये के मकान में रहना पड़ता है। व्यर्थ के मुकदमें जातक का धन नष्ट होता है।
- भाव विशेषः चतुर्थ भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को जमीन, मकान एवं वाहन के सुख में न्यूनता आती है। जातक की माता को भी कष्ट होता है। जातक राजमान्य होता है एवं अपने कार्य पक्ष की ओर से सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में स्थित सूर्य जातक के सुख को कम करते हुए जातक को चिंताग्रस्त बनाता है।
चन्द्रमा के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चन्द्रमा के चतुर्थ स्थान में होने से जातक उदार, मानी एवं शांत स्वभाव का होता है।जातक दयालु, बुद्धिमान, विनम्र और मिलनसार होता है। जातक उदार हृदय का, भाग्यशाली एवं सदा प्रसन्न रहने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थान में चंन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर होने से जातक को व्यवसाय में अनुकूल प्रभाव होते हैं। जातक की नौकरी में पदोन्नती होती है और उसे उच्चाधिकारियों का सहयोग मिलता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च और स्वराशि का चन्द्रमा चतुर्थ स्थान में सभी प्रकार का सुख प्रदान करता है। जातक को माता का विशेष सुख प्राप्त होता है उसे भूमि, वाहन, उच्च कोटि का मकान, इत्यादि प्राप्त होते हैं। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को उपरोक्त सुखों में कमी आती है। जातक को किराये के मकान में रहना पड़ता है। जातक का उसकी माता से विरोध होता है। जमीन-जायदाद से जुड़े विवाद होते हैं।
- भाव विशेषः चतुर्थी भाव पर चन्द्रमा से जातक को जल से संबंधित व्यवसाय शुभ फलदाय होते हैं। जातक परिवार और देश के लिये सद्भावना रखता है। जातक सहानुभूति, सुन्दरता का पुजारी तथा उच्च कल्पना शक्ति वाला होता है। चतुर्थी भाव में चन्द्र कारक ग्रह है अतः शुभकारी होता है। जातक को धन, भूमि, भवन, वाहन इत्यादि का सुख अवश्य प्राप्त करता है। जातक अपने परिवार से विशेष कर माता-पिता से अत्यंत प्रेम करता है।
मंगल के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्थ स्थान में मंगल के प्रभाव से जातक का हृदय कठोर होता है। जातकल सुखी, सन्ततिवान, अभिमानी एवं प्रवासी होता है। जातक का अपने पिता से वैचारिक मतभेद रहता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक राजसेवक होता है। प्रायः जातक का अपने पिता से वैचारिक मतभेद रहता है। जातक मेहनती भी होता है। चतुर्थस्थ मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती हैं जिसके प्रभाव से जातक की पत्नी से अनबन रहती है। चतुर्थस्थ मंगल की अष्टम दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है जिससे जातक को भूमि संबंधी कार्यो से आय होती है।
- मित्र/सत्रु राशिः स्व, मित्र या उच्च राशि में होने पर जातक को जमीन, मकान वाहन आदि के सुख प्राप्त होते हैं. यह राज योग कारक होता है। जातक स्वनिर्मित मकान में रहता है। शत्रु व नीच राशि में होने से जातक के घर या व्यवसाय में सदैव अग्नि से भय रहता है। चोरी का भय रहता है। माता को अरिष्ट होता है। जातक जन्म स्थान से दूर गरीबी में रहता है जातक को जमीन, वाहन आदि के सुख प्राप्त नहीं होते।
- चतुर्थ भाव विशेषः चतुर्थ भाव विशेष में मंगल स्थित होने से जातक विशेष रूप से मातृ भक्त होता है। किंतु जातक को मातृ सुख पूर्ण नहीं मिल पाता है। जातक को भूमि एवं वाहन का सुख भी मुश्किल से प्राप्त होता हैं। घरेलू झगड़े होने की संभावना रहती है। चतुर्थस्थ मंगल जातक को भ्रमणशील बनाता हैं। घरेलू झगड़े होने की संभावना रहती है। चतुर्थस्थ मंगल जातक को किसी तकनिकी क्षेत्र में जाता है
बुध के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्थ स्थान में बुध के प्रभाव से जातक स्वभाव से आलसी, संगीत प्रेमी, माता के प्रति स्नेह रखने वाला, बुद्धिमान, विद्वान और दानी होता है। जातक की ज्योतिष में रूचि होती है। जातक एकान्त प्रिय होता है। शिक्षा ठीक रहती है।
- पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थान पर स्थित बुध की दशम स्थान पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक राजमान्य, सुखी, यशस्वी, विद्वान और कुलदीपक होता है। जातक को पिता के व्यवसाय से लाभ प्राप्त होता है। जातक के कार्य क्षेत्र एक से अधिक होते है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, उच्च और मित्र राशि में जातक को शिक्षा एवं धन संपत्ति, वाहन एंव भूमि की प्राप्ति होती है। जातक जीवन के सारे आनंद उठाता है। जातक के निवास स्थान में बार बार परिवर्तन होते हैं। शत्रु व नीच राशि का होने पर शिक्षा में बाधा आती है और जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। जातक को प्राय किराये के मकान में रना पड़ता है।
- भाव विशेषः जातक की भाषा में मधुरता होती है। दूसरों को प्रसन्न करने वाला वचन बोलता है। चतुर्थ स्थान में बुध कारक ग्रह है जिसके प्रभाव से जातक को श्रेष्ठ वाहन सुख प्राप्त होता है। जातक नियम व नीति अनुसार रहता है।
गुरू के चतुर्थ भाव का फल
- व्लभावः चतुर्थ भाव में स्थित गुरू के प्रभाव जातक कुशल वक्ता, विनम्र पढ़ने में विशेष रूचि रखने वाला, माता-पिता का भक्त, यशस्वी और व्यवहारकुशल होता है।
- पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थान से गुरू का सप्तम पूर्ण दृष्टि पत्रिका के दसवें स्थान पर पड़ती है, जिसके प्रभाव से जातक को पिता का सुख प्राप्त होता है। जातक राजमान्य, प्रतिष्ठित और धनी होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि द्वादश स्थान पर होने के प्रभाव से जातक के खर्च नियंत्रित होते है परंतु धार्मिक कार्यो में वह अतिव्यय करता है। गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि अष्टम स्थान पर होती है जिससे जातक दीर्घायु होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि में चतुर्थस्थ बृहस्पति को एक अमूल्य मणि की संज्ञा दी गई है। जातक सर्व सुख प्राप्त करता है जैसे जमीन, भवन और वाहन। जातक को मित्रों लाभ होता है। उसे उच्च पद और अधिकार मिलते हैं। शत्रु व नीच राशि में गुरू के होने से ठीक विपरीत प्रभाव मिलते हैं। माता का सुख व अन्य सुखो में कमी आती है।
- भाव विशेषः जातक को जन्म स्थान में ही कार्य करने पर अधिक लाभ होता है। जातक के पिता उच्च पदाधिकारी अथवा समाज में मान्य व्यक्ति होते हैं। जातक अपनी समस्याओं का समाधान अंतर्निहित शक्तियों से स्वयं करता है। जातक साधनहीन होने पर भी उच्च शिक्षा आसानी से प्राप्त कर उसका उपभोग वा उपयोग करता है। जातक को माता व पिता से विशेष स्नेह व लगाव होता है। जातक को जमीन, जायदाद और वाहन की प्राप्ति होती है। शासन में उच्च पद प्राप्त होता है। जातक को माता-पिता से धन मकान भी प्राप्त होते हैं।
शुक्र के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्त स्थान में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक सुखी, दीर्घायु, सुसंतानों से युक्त, साहित्य प्रेमी, धनी, यशस्वी, पुत्रवान, अपने मकान की साग-सज्जा में विशेष रूचि रखने वाला और प्रसन्नचित्त होता है। जातक को उत्तम वाहन सुख प्राप्त होता है।
- पूर्ण दृष्टिः जातक की जन्म पत्रिका में स्थित चतुर्थ शुक्र की सप्तम दृष्टि दसवें भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक कला, रंगमंच, मदिरालय (बीयर बार) जुआघर (कैसिनों), सौन्दर्य प्रसाधन व स्त्री वस्तु संबंधी व्यापार व व्यवसाय में सफल होता है व स्थिति के अनुसार लाभ प्राप्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व और उच्च काशि में चतुर्थस्थ शुक्र फलदायक होता है। जमीन जायदाद, पिता, माता और वाहन का सुख जातक उत्तम प्राकार से प्राप्त करता है। शत्रु व नीच राशि में व्यर्थ की विलासिता पूर्ण वस्तुओं में जातक अपना अर्जित धन व्यय करता है माता से विशेष प्रेम होने के बाद भी अनबन व वैचारिक मदभेद होने से माता को अपने आप बिना विचार के कष्ट होता है।
- भाव विशेषः चतुर्थस्थ शुक्र के प्रभाव से जातक के माता से अच्छे संबंध होते हैं एवं उसे उनका सहयोग सदैव मिलता रहता है। चतुर्थ स्थान में शुक्र की स्थिति से जातक परोपकारी व व्यवहारदक्ष होता है। जातक पुत्रवान, सुंदर, सुखी एवं दीर्घायु होता है। जातक को समस्त प्रकार के सुख, उच्च कोटी का मकान, श्रेष्ठ वाहन सुख एवं जमीन-जायदाद का सुख चतुर्थ स्थान में शुक्र की स्थिति से प्राप्त होता है।
शनि के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्थ भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक ढगडालू स्वभाव का होता है। वह स्वभाव से दुखी रहता है। प्रायः अपनी माता से वाद-विवाद की स्थिति होती है। जिससे पारिवारिक सुख में न्यूनता आती है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम स्थान पर दृष्टि के प्रभाव से जातक को पिता के सुख में न्यूनता होती है। राज सुख और यश कड़े संघर्ष के बाद प्राप्त होता है। जातक कार्य करने में थोड़ा आलस करता है। चतुर्थस्थ शनि की षष्ठ भाव पर तृतीय पूर्ण दृष्टि पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक, रोग, शत्रु एवं कर्ज से दुखी रहता है। चतुर्थस्थ शनि की लग्न पर दशम पूर्ण दृष्टि पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक जिद्दी एवं हठी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व एवं उच्च राशि में शनि स्थित होने पर जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक नौकरी से धनार्जन करता है। आयु के उत्तरार्ध में भूमि, भवन का सुख प्राप्त करता है। व्यवसाय में प्रारंभ में धीरे-धीरे सफलता प्राप्त होती है। प्रारंभिक संघर्ष के बाद व्यवसाय भी लाभदायक होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को जीवन भर किराये के मकान में रहना पड़ता है। पिता से तनावपूर्ण संबंध होते हैं। वाहन सुख में न्यूनता होती है। जातक का पारिवारिक जीवन दुखी होती है।
- भाव विशेषः शनि के चतुर्थ भाव में स्थित होने पर जातक धनी होता है। उसे वाहन सुख प्राप्त होता है। जीवन में अंत तक सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। जातक कपटी, धूर्त व अपयशी होता है। अशुभ स्थिति में शनि होने से जातक पारिवारिक जीवन में कलह एवं मानसिक तनाव से ग्रस्त होता है। जातक की माता का स्वास्थ्य कमजोर होता है। चतुर्थ भावगत शनि प्रापर्टी, कानूनी मामलों और खनन में कष्टप्रद परिणाम देता है। भयंकर श्रम करने पर थोड़ी सफलता प्राप्त होती है।
राहु के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्थ भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक को अप्रत्याशित रूप से जमीन व जायदाद में लाभ होता है। जातक को असंतोष व दुख रहता है। जातक स्वभाव से क्रूर होता है एवं छल कपट में संलग्न रहता है।
- पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थान पर स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक नीच कार्यो में संलग्न रहता है। जातक के पिता से भी विशेष अच्छे संबंध नही हैं।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में जातक को धन लाभ होता है। जातक को फिर भी पूर्ण रूप से सुख प्राप्त नहीं होता है। जातक के अचानक जमीन जायदाद के योग बनते हैं शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक की माता के लिए कष्ट होता है। जातक दुखी एवं झगड़ालू स्वभाव को होता है।
- भाव विशेषः चतुर्थस्थ राहु विशेषकर माता के लिए अरिष्टदायक होता है। चतुर्थ स्थान पर राहु के प्रभाव से माता को कष्ट होता है या जातक के माता से वैचारिक मतभेद व अनबन रहती है। या जातक स्वयं की माता से दूर रहता है। जातक को जमीन एवं वाहन अचानक प्राप्त होते हैं। जातक असंतोषी, दुखी, क्रूर एवं कपटी होता है। जातक बहुत कम बोलता है।
केतु के चतुर्थ भाव का फल
- स्वभावः चतुर्थ स्थान में केतु जातक का स्वभाव स्वतंत्र विचारों वाला होता है। चतुर्थ भाव में केतु की स्थिति से जातक चंचल, अत्याधिक बोलने वाला, कार्यो को बिना किसी उत्साहित के करने वाला होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में हो तो अनायास ही धन प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में होने पर पारिवारिक मतभेद, माता-पिता का पूर्ण सहयोग न होना, मित्रों द्वारा हानि इत्यादि अशुभ प्रभाव मिलने हैं।
- भाव विशेषः चतुर्थ भाव में केतु की स्थिति से जातक को वाहन, जमीन व जायदाद का सुख प्राप्त होता हैं। जातक की माता का जातक से प्रेम रहता है। जातक कार्यो को टालते जाता है। जातक में उत्साह की कमी रहती है।
पंचम भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में पंचम भाव को बुद्धि, संतान, विद्या, प्रेम संबंध, रचनात्मकता और पूर्व जन्मों के पुण्य का भाव माना जाता है। यह भाव व्यक्ति की मानसिक क्षमता, रचनात्मक विचारधारा, संतान सुख और रोमांटिक जीवन को दर्शाता है।
सूर्य के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक स्वभाव से कुशाग्र, तेजस्वी, तीक्ष्ण बुद्धि और क्रोधी होता है। जातक पढ़ने में अच्छा एवं तीक्ष्ण स्मरण शक्ति वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचमस्थ सूर्य की पूर्ण दृष्टि एकादश स्थान पर होती है जिसका प्रभाव से जातक उच्च कोटि की आय का अर्जन करता है। जातक राजमान्य, यशस्वी और धनी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि का होने पर पंचमस्थ सूर्य के शुभ प्रभावों में उच्चता आती है। जातक को अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। जातक विद्वान, यशस्वी, उच्च पद प्राप्त करने वाला और साहसी होता है। जातक की संतान भी सुख होती है। जातक कोपुत्र होते हैं। शत्रु व नीच राशि में होने पर विध्या में बाधा, संतान कष्ट, निंदा और अन्य कष्टों का सामना करना पड़ता है।
- भाव विशेषः पंचमस्थ सूर्य शुभ राशि में होने पर स्वयं राज योग कारक होता है। पंचमस्थ सूर्य जातक को उच्च शिक्षा प्रदान करता है जिसके प्रभाव से जातक अपनी शिक्षा का उपयोग करते हुए जीवन यापन करता है। जातक सदाचारी औंर बुद्धिमान होता है किंतु उसे शीघ्र क्रोध आता है।
चन्द्रमा के पंचम भाव का फल
- स्वभावः चन्द्रमा के पंचम स्थान में स्थित होने से जातक बुद्धिमान, धैर्यवान और भावुक होता है। जातक मेधावी, तेजस्वी और मीठा बोलने वाला होता है। जातक हर कार्य में शीघ्रता करने वाला और गीत संगीत पसंद करने वाला होता है। पंचम भाव में स्थित चंद्रमा जातक को चंचल बनाता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचम स्थान में स्थित चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि एकादश स्थान पर पड़ती है। जातक इसके प्रभाव से सुखी, लोकप्रिय और दीर्घायु होता है। जातक ईमानदारी से अपनी आय अर्जित करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। जातक को दूध व सफेद वस्तुओं संबंधी कार्यो से अच्छी आय होने की संभावना होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित चंद्रमा षष्ठ भाव जनित अशुभ फलो में कमी करता है। शत्रु एवं नीच राशि में स्थित चंद्रमा जातक को रोगी एवं दुखी बनाता है।
- भाव विशेषः जातक प्रायः कफ रोगो यथा सर्दी जुकाम सं पीडित होता है। साइनस से संबंधित कष्ट भी होता है। जातक के फे फ ड़े कमजोर होता है। साइनस से संबंधित कष्ट भी होता हैं। प्रायः छठे स्थान में स्थित चन्द्रमा जातक को अस्वस्थ बनाये रखता है।
मंगल के पंचम भाव का फल
- स्वभावः जातक की पत्रिका में पंचम स्न में स्थित मंगल के प्रभाव से वह उग्र स्वभाव का क्रोधी, शीघ्र ही व्याकुल होने वाला एवं धैर्यहीन होता है। जातक बुद्धिमान और कपटी होता है। वह ढृढ़ निश्चय से अपना कार्य करता है। जातक जिद्दी वं अपनी मनमानी करने की प्रवृति भी रखता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचम भानृव में स्थित मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है, जो आय का स्थान है जिसके प्रभाव से जातक धनी होता है। पंचमस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि अष्टम भाव में पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी बीमारियाँ होती है। पंचमस्थ गुरू की अष्टम पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक चिंताग्रस्त रहता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च अथवा स्वराशि में मंगल के स्थित होने से जातक धनी तो होता है परंतु संतान सुख में कमी होती है। संतान प्रायः शारीरिक रूप से कमजोर होती है। संबंधियो से भी तनाव होता है। शत्रु व नीच राशि मेंस्थित मंगल जातक को अत्यंत क्रोधी, अंर्तमुखी एवं मानसिक रूप से कष्ट पहुँचाने वाला होता है। जातक की शिक्षा में बाधाएं आती है और संतान की चिंता होती है।
- पंचम भाव विशेषः पंचम भाव का मंगल जातक को विशेष जीवन शक्ति देता है। वह परिश्रमी होता है। शिक्षा मंगल के क्षेत्र से संबंधित विषयों में ही प्राप्त होती है जैसे इंजीनियरिंग, पुलिस कानून इत्यादि। पंचम भाव में स्थित मंगल स्त्री की जन्म पत्रिका में संतान के लिए कष्टप्रद माना गया है। प्रायः पहली संतान का गर्भपात होने की संभावना होती है।
बुध के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचम स्थान में बुध के प्रभाव से जातक हमेशा प्रसन्न रहने वाला, तेजस्वी, कुशाग्र बुद्धि तथा सुख को प्राप्त करता है। जातक सदाचारी होता है। जातक को वाद्य तथा काव्य तथा काव्य में रूचि होती है। जातक व्यापार कुशल होता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचम स्थान पर स्थित बुध की एकादश स्थान पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को अच्छी आय होती है। जातक की आय के एक से अधिक स्रोत होते हैं।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, उच्च और मित्र राशि में बुध जातक को शिक्षा, सुख तथा वैभव दिलाता है। जातक जीवन के सारे आनंद उठाता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक की शिक्षा में बाधा आती है और जीवन सुखमय नही रहता। जातक को प्रायः व्यापार में हानि होती है।
- भाव विशेषः पंचम भाव में अकेला बुध जातक को प्रसन्न्चित्त तथा खुश मिजाज बनाता है। जातक विद्वान होता है तथा उसकी संतान से सुख प्राप्त करता है। जातक को समाज में मान तथा प्रतिष्ठा होती है।
गुरू के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक स्वभाव से आस्तिक, यशस्वी, साहसी, नीतिकुशल और कुल में श्रेष्ठ होता है।
- सप्तम् दृष्टिः पंचमस्थ गुरू की सप्तम दृष्टि एकादश भाव पर होती है जिससे जातक की आय स्थिर होती हैं। गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि भाग्य स्थान पर होने से जातक भाग्यशाली एवं धर्मात्मा होता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि लग्न पर होने से जातक समझदार, विद्वान स्वाभिमानी एवं स्पष्ट वक्ता भी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व और उच्च राशि में जातक की शिक्षा आसानी से होती है। ऐसे जातक भाषा और दर्शन शास्त्र में विद्वान होते हैं। जातक पुत्रवान होता है। शत्रुराशि में गुरू स्थित होने से जातक को प्रायः संतान विलंब से होता है। ऐसे जातक की शिक्षा में भी रूकावटें आती है या शिक्षा पूर्ण नहीं हो पाती है।
- भाव विशेषः पंचम भाव में गुरू होने से जातक उच्चकोटि का सलाहकार और राजमान्य होता है। जातक को पुत्र की प्राप्ति विलंब से होती है। पंचमस्थ गुरू अकेला होने पर पेट में विकार उत्पन्न करता है तथा वायु रोग और कब्ज होने की संभावना होती है। जातक अपने कुल में श्रेष्ठ होता है एवं पूरे कुल का ध्यान रखता है। जातक ज्योतिष व नीति में विशेष रूचि रखता है।वह बुद्धिमान, कला प्रेमी और स्नेही स्वभाव का होता है।
शुक्र के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचम स्थान में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक उदार, कला प्रेमी एवं अनेक संतानों से युक्त होता है। वह चतुर, दयालु, विद्वान, संगीत प्रेमी, स्नेही स्वभाव वाला और मधुर भाषी भी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचम स्थान स्थित शुक्र की सप्तम दृष्टि एकादश स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक की आय में वृद्धि होती है। जातक का स्त्रियों की सहायता से धनार्जन होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि का शुक्र होने पर जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है। उसे कला संबंधी क्षेत्रों में प्रसिद्धि मिलती है। जातक को संतान का सुख प्राप्त होता है। जातक विद्वान होता है। जातक यद्धपि बहुत पढ़ा लिखा नही होता पर उसे विद्वानों सा आदर प्राप्त होता है। जातक सहज और सरल होता है। शत्रु व नीच राशि का शुक्र होने पर जातक की शिक्षा-दीक्षा में बाधाएँ आती हैं। उसे कार्यक्षेत्र में असफलता मिलती है।
- विशेषः पंचमस्थ शुक्र के प्रभाव से जातक को परिवार से लाभ होता है। जातक कला के क्षेत्रो में जैसे संगीत, वादन, इत्यादि में प्रसिद्ध होता है। सुखी, भोगी एवं लाभवान होता है। जातक दूसरों का विशेष ख्याल रखता है। जातक न्या.वान, दानी उदार एवं सद्गुणी होता है। जातक व्यवसायी एवं प्रतिभाशाली होता है।
शनि के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचम भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक अस्थिर का होता है। वह अव्वस्थित, व्यर्थ भ्रमण करने वाला, आलसी, उदासीन, मलिन, ईष्यालु और चिंतित होता है। पंचम भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक शंकालु स्वभाव का और बढ-चढ कर बोलने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचम भाव स्थित शनि की सप्तम दृष्टि ग्यारहवें स्थान पर होती है जिससे जातक को प्रांरभ में अपनी आय अर्जित करने में कठिनाई होती है जातक व्यापार में साधारण लाभ प्राप्त करता है। नौकरी में व्यवसाय से अधिक सफलता मिलने की संभावना होती है। पंचमस्थ शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के पत्नी से वैचारिक मतभेद होते हैं। शनि की दृष्टि शुभ नहीं होती जिसके प्रभाव से पत्नी से अनबन बनी रहती हैं। पंचमस्थ शनि की दशम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिससे जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति में कठिनाई होती है। जातक का कुंटुंबियों से संबंध तनावपूर्ण रहता है।
- मित्र/शत्रु राशिः पंचम स्थआन में स्वराशि, मित्र राशि तथा उच्च राशि में स्थित श्नि के प्रभाव से जातक की शिक्षा पूरी होती हैं। वह बुद्धिमान, पढ़ा लिखा एवं दार्शनिक होता है। जातक को उत्तम संतान होती है। शत्रु व नीच राशि में शनि होने से जातक को अपने प्रयासों से लगातार परिश्रम करने पर अनेक बाधाओं के वाद थोड़ी सफलता प्राप्त होती है। जातक को संतान सुख में न्यूनता होती है। प्रायः उसे प्रेम संबंधों में निराशा का सामना करना पड़ता है।
- भाव विशेषः पंचम स्थान में शनि की स्थिति प्रायः अशुभ होती है। जातक को संतान, विद्या सफलता में न्यूनता होती है। स्त्री जातक में पंचम शनि किसी बड़ी उम्र के व्यक्ति के प्रति रूझान अथवा प्रेम संबंध बताता है। जातक की कला में कोई रूचि नहीं होती। जातक अपने काम से मतलब रखने वाला होता है।
राहु के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचम भाव में राहु के प्रभाव से जातक प्रसिद्ध किंतु अहंकारी होता है। प्रायः व्यवसाय/ विद्या के लिये उचित विषय का चयन नहीं कर पाता। जातक पढ़ाई में बहुत प्रयास के बाद सफलता अर्जित करता है।
- पूर्ण दृष्टिः पंचम भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को आय में अचानक बहुत बड़ा लाभ होता है। कई बार जातक को क्षणों में हानि भी होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि स्थित राहु के प्रभाव से जातक शास्त्रप्रिय होता है। जातक कार्यो को करता है एवं उसके इन कार्यो से उसका भाग्य प्रबल होता है। शत्रु व नीच राशियों का होने पर जातक का पुत्र कुरूप और रोगी होता है। प्रायः जातक को उसके पुत्रों से कष्ट उठाना पड़ता है। शत्रु राशि में राहु के प्रभाव से अवैध संबंध होने की संभावना होती है।
- भाव विशेषः स्त्री जातक की जन्म पत्रिका में पंचमस्थ राहु गर्भाशय संबंधी रोग, पुत्र प्राप्ति में विलंब और मानसिक शांति की न्यूनता का कारक होता है। प्रायः ऐसी जातक पेट संबंधी रोग, निराशा और चिंतायुक्त होता है। पंचमस्थ राहु के प्रभाव से जातक की जे, सट्टे या शेयर बाजार में विशेष रूचि होती है।
केतु के पंचम भाव का फल
- स्वभावः पंचम भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक सुखी, भाग्यशाली और उन्न्ति की ओर बढ़ता है। जातक को विवादास्पद विषयों में लाभ होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में केतु की स्थिति से जातक को विद्या एवं संतान के क्षेत्र में शुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं। शत्रु व नीच राशियों में होने से जातक को संतान सुख में न्यूनता होती है। जातक की कन्याएँ अधिक होती हैं एवं पुत्र कम होते हैं। जात की संतान आज्ञाकारी भी नही होती है।
- भाव विशेष: पंचम भाव में केतु की स्थिति से जातक को अधिक विलासिता पूर्ण जीवन से हानि हो सकती है। जातक की शिक्षा अच्छी होती है। जातक का दुष्ट स्वभाव होता है। जातक को वात जनित रोग होता है।
छठवें भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में छठवें भाव को ऋण, रोग और शत्रु भाव कहा जाता है। यह भाव जातक के संघर्ष, प्रतिस्पर्धा, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता, सेवा कार्य और दुश्मनों से संबंधित स्थितियों का संकेत देता है। छठा भाव यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति जीवन में चुनौतियों का सामना कैसे करता है और उनसे उबरने की क्षमता कितनी है।
सूर्य के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठवें स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक बलवान, तेजस्वी और निरोगी होता है। जातक निडर होता है। उसे शत्रुऔं का जरा भी भय नही होता। जातक में साहस एवं पराक्रम प्रचुरता से होता है।
- पूर्ण दृष्टिः षष्ठ स्थान में स्थित सूर्य की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपव्ययी होता है। धनार्जन में जातक को बाधा आती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक के शत्रुओं का नाश होता है। जातक का विरोध करने वाला असफल होता है। जातक निरोगी होता है। षष्ठ भावमें शत्रु व नीच राशि का होने पर सूर्य के प्रभाव से जातक की मान हानि होती है। जातक के कई शत्रु व्यर्थ ही बन जाते हैं। जातक अपव्यय करने वाला और कुसंगी होता है।
- भाव विशेषः षष्ठ भाव में सूर्य की स्थिति अति शुभ मानी गयी है। षष्ठ भाव में सूर्य प्रबल शत्रुहंता योग बनाता है जिससे जातक शत्रु और रोगों पर समाज रूप से विजय प्राप्त करता है जातक में प्रवल जीवनशक्ति होती है। जातक न्यायवान होता है।
चंद्रमा के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठे भाव में स्थित चंद्रमा जातक को संवेदनशील, भावुक और कभी-कभी अस्थिर स्वभाव का बनाता है। ऐसा जातक रोगों को लेकर चिंतित रहने वाला और स्वास्थ्य के प्रति सजग होता है। छठे चंद्रमा के प्रभाव से जातक सेवा भावी, कर्तव्यनिष्ठ और दूसरों की मदद करने वाला होता है। यह स्थिति जातक को प्रतिस्पर्धात्मक कार्यों में सफलता दिला सकती है, लेकिन मानसिक तनाव भी देती है।
- पूर्ण दृष्टिः छठे स्थान में स्थित चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि द्वादश स्थान पर पड़ती है। इसके प्रभाव से जातक को खर्चों में वृद्धि, विदेश यात्रा या प्रवास के योग बनते हैं। कभी-कभी जातक को नींद से जुड़ी समस्याएँ या मानसिक बेचैनी का भी सामना करना पड़ सकता है। द्वादश भाव पर दृष्टि जातक को गुप्त शत्रुओं से सावधान रहने की प्रेरणा देती है।
- मित्र/शत्रु राशिः यदि चंद्रमा मित्र, स्व या उच्च राशि में हो तो छठे भाव के अशुभ प्रभावों में कमी आती है और जातक को रोग, ऋण एवं शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। वहीं यदि चंद्रमा शत्रु या नीच राशि में स्थित हो तो जातक को बार-बार बीमारियों, मानसिक तनाव और शत्रुओं से परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
- भाव विशेषः छठे भाव में चंद्रमा के प्रभाव से जातक को सर्दी-जुकाम, कफ संबंधी रोग, त्वचा विकार एवं पाचन से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं। ऐसा जातक प्रायः भावनात्मक रूप से अस्थिर होता है और मानसिक तनाव से ग्रस्त रह सकता है। यदि चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो जातक को रोगमुक्ति की शक्ति मिलती है और वह विपरीत परिस्थितियों में भी डटकर मुकाबला करता है।
मंगल के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठे स्थान में मंगल के प्रभाव से जातक यशस्वी, परिश्रमी, चतुर बुद्धि, बलवान, उत्साही और कुशल कार्यकर्ता होता है। जातक प्रत्येक कार्य को करने के लिए अधीर हो जाता है। छठे स्थान में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के अनेक कार्य विवादसेपद होते हैं अतः उसके अनेक शत्रु बन जाते हैं। परंतु वह अपने शत्रुओं पर विजय अवश्य प्राप्त करता है।
- पूर्ण दृष्टिः छठे मंगल की पूर्ण दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र प्रकृति का हो जाता है। जातक के व्यय अधिक होते हैं और उसे धन संग्रह में मुश्किलें आती हैं। छठे मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अभिमानी होता है एवं उसकी धर्म के प्रति रूचि कम होती है। उठे स्थान पर स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का एवं क्रोधी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मंगल के उच्च, मित्र या स्व राशि में होने से जातक शत्रु पर विजय पाता है। वह पराक्रमी और परिश्रमी होता है। प्रायः पुलिस या सेना में सफल अधिकारी होता है। व्यवसायी होने पर भूमि, भवन और वाहन के कार्यो में सफल होता है। शत्रु व नीच राशि में मंगल जातक को अस्वस्थ बनाता है। जातक निर्बल तथा कामी होता है। जातक का अपने खर्चों पर नियंत्रण नही होता है जिससे कर्ज लेने की स्थिति बन बन जाती है। एक बार लिऐ हुए कर्ज जातक के मुश्किल से चुक पाते हैं।
- षष्ठ भाव विषेशः छठवाँ स्थान रोग एवं शत्रु का स्थान है यहाँ पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को रोग हो सकते हैं। जातक को गठिया, वात अथवा हृदय रोग भी होने की संभावना होती है। छठे भाव में मंगल के प्रभाव से जातक प्रायः अपने स्वास्थ्य के प्रति लापारवाह होता है। छोटी बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं। जातक में प्रचंड जीवन शक्ति होती है जिसके प्रभाव से जातक विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नही हारता और अपने जुझारूपन से लक्ष्य को प्राप्त करता है। छठे भाव में स्थित मंगल जातक की जन्म पत्रिका में प्रबल शत्रुहंता योग बनाता है जिसके कारण जातक सदैव शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।
बुध के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठे भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक स्पष्ट वक्ता , अभिमानी, परीश्रमी, वाद विवाद करने वाला और मानसिक रूप से अत्यंत परेशान होता है। जातक को सफलता नही विवाद करने वाला और मानसिक रूप से चिंता बनी रहती है। जातक चंचल और स्त्री प्रिय होता है।
- पूर्ण दृष्टि: छठे स्थान में स्थित बुध की पूर्ण दृष्टि द्वादश स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक का धन निरर्थक कार्यों में व्यय होता है। जातक को प्रायः तनाव और चिंता बनी रहती है। बुध के द्वादश भाव में स्थित होने से जातक जीवन के अंतिम समय में सुखी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि का होने पर जातक शत्रुओं पर विजय पाने वाला, स्वस्थ और निरोगी होता है। उसे पुरस्कार प्राप्त होता है। वह उच्चकोटि का लेखक अथवा अधिकारी होता है। शत्रु व नीच राशि में जातक आलसी, धनहीन, धैर्यहीन, रोगी और शत्रुओं द्वारा पीडित होता है। जातक ऋण युक्त भी होता है।
- भाव विशेषः षष्ठ भाव में बुध के प्रभाव से जातक को अधीनस्थ एवं नौकरों में अति विश्वास करने के कारण हानि होती है। जातक को भागीदारी में साझेदार से नुकसान हा है। दूषित बुध के प्रभाव से जातक को वायु संबंधी विकार होते हैं जैसे गैस, कब्ज, संग्रहणी आदि। प्रायः मानसिक तनाव के कारण होने वाले अन्य रोग भी जातक को प्रभावित करते हैं।
गुरू के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठे भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक मधुर भाषी, विवेकी, प्रसिद्ध, विद्वान, उदार, जग में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला और धैर्यवान होता है। जातक की रूचि सत्कार्यों में होती है। जातक शांत किंतु मानसिक तनाव से युक्त होता है। जातक स्वभाव से थोड़ा आलसी होता है।
- सप्तम् दृष्टिः छठे स्थान में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि बारहवें भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के नेत्र में कष्ट होने की संभावना ही है। द्वादश भाव पर गुरू की दृष्टि से जातक के निंयत्रित खर्चे होते है किंतु जातक धर्म संबंधी कार्यों में व्यय अधिक करता है। छठे स्थान में स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर होने से जातक अपने कार्यक्षेत्र में प्रसिद्धि, ऐश्वर्य एवं सफलता अर्जित करता है। गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव में होने से जातक को पिता की संपत्ति प्राप्त होती है। जातक मृदुभाषी होता है। जातक को ससुराल पक्ष से भी लाभ होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व एवं उच्च राशि में गुरू स्थित होने पर जातक शत्रुओं को पराजित करने वाला, निरोगी एवं दीर्घायु होता है। छठे भाव में शत्रु व नीच राशि में स्थित गुरू अशुभ फलदायक होता है। जातक शत्रुओं से दुखी, कर्ज से घिरा और आर्थिक रूप से दुःखी रहता है।
- भाव विशेषः स्वास्थ्य खराब होने पर जातक की अच्छी सेवा सुश्रुषा होती है। जातक को राजनीतिज्ञों से लाभ है। छठा गुरू जातक को प्रबल शत्रु हंता बनाता है। जातक के शत्रु स्वतः ही जातक से पराजित होते हैं। जातक ऋण मुक्त होता है। जातक का स्वास्थ्य सामान्यतः स्थिर होता है। छठे गुरू के प्रभाव से जातक के मामा को कष्ट होता है। जातक भिन्न प्रकार की सवारियों का शौकीन होता है। दुर्बल गुरू के प्रभाव से जातक प्रायः अस्वस्थ्य रहता है और मानसिक पीड़ा का शिकार होता है।
शुक्र के छठवें भाव का फल
- स्वभावः षष्ठ स्थान में शुक्र के प्रभाव से जातक संकीर्ण मनोवृत्ति वाला होता है। वह गुप्त रोगों से ग्रसित, स्त्री सुख से हीन और फिजूल खर्चीला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः षष्ठ स्थान पर स्थित शुक्र की पूर्ण दृष्टि द्वादश स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक विवादास्पद कार्यो में व्यय करने वाला होता है। जातक का बीमारियों में अधिक व्यय होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः शुक्र के मित्र, स्व व उच्च राशि में होने पर जातक को मध्यम फल प्राप्त होते हैं एवं शत्रु व नीच राशि में होने से अशुभ फल की प्राप्ति होती है। मित्र राशि में शुक्र के होने पर जातक को मामा पक्ष से लाभ होता है। जातक के अनेक मित्र होते हैं। शत्रु राशि के शुक्र से जातक को लाभ होता है। जातक दुखी एवं अस्वस्थ रहता है। जातक को गुप्तरोगी, मूत्ररोग व वीर्य संबंधी रोग हो सकते हैं।
- भाव विशेषः षष्ठ भाव में स्थित शुक्र को प्रभाव से जातक वैभवहीन व दुखी होता है। जातक के शत्रु नही होते और यदि होते हैं तो वे जातक से पराजित होते हैं। जातक स्त्री के प्रति आकर्षित होता है किंतु उसे उसकी पत्नी का सुख पूर्ण प्राप्त नही होता। जातक दुराचारी भी होला है एवं अनैतिक कार्यों मे संलग्न रहता है। स्त्रियों में गर्भाशय संबंधी कष्ठ होते हैं।
शनि के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठे भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक साहसी, शत्रु को पराजित करने वाला जिद्दी, दुर्व्यसनी और उद्योगी होता है। वह दयालु, धनी चतुर और प्रसिद्ध होता है। जातक वाद-विवाद में निपुर्ण एवं हर क्षेत्र में अधिकार रखाता है। जातक के शत्रु उससे डरते हैं।
- पूर्ण दृष्टिः छठे भाव में स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर होने के प्रभाव से जातक मितव्ययी होता है। अपने प्रयासों से संघर्ष कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है। जातक धैर्यवान होता है। छठे स्थान पर स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है। जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी कष्ट रहता है। जातक को प्रयः जानवरों से भय रहता है। छठे स्थान पर स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के छोटे भाई-बहन नहीं होते हैं। जातक भयभीत होता रहता है।
- मित्र/शक्षु राशिः स्व, मित्र एवं उच्च राशि में उत्तम स्थिति का शनि होने पर जातक को राजनीति में सफलता प्राप्त होती है। जातक शत्रुओं पर विजय पाता है। जातक को निरोगी काया, पुत्र सुख, धन और वैभव प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि स्थान में होने पर जातक के परिवार में कलह होती है। वह अहंकारी, रोगी, कर्ज से घिरा हुआ होता है। जातक को संतान सुख में न्यूनता होती है। जातक का जीवन निराशा से घिरा हुआ होता है।
- भाव विशेषः छठवें स्थान में शनि की उपस्थिति प्रायः शुभकारी होती है। कई तरह के लाभ, शत्रु पर विजय, निरोगी, धन, चतुराई, राजनैतिक सफलता इत्यादि जातक को प्राप्त होते हैं संतान उत्तम कोटि की होती है। नौकरों का सुख होता है। जातक को स्वादिष्ट भोजन के प्रति असीम लगाव होता है। जातक छोटी-छोटी बातों में मीन मेख नालने वाला होता है। जातक को श्वास या कंठ में रोग हो सकते हैं।
राहु के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठे भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक साहसी, दीर्घायु, शत्रुओं पर विजय पाने वाला, विश्वासनीय और ईमानदार होता है। जातक के पास अपार शारीरिक और मानसिक शक्तियां होती हैं। जातक असाधारण मानसिक और शारीरिक श्रम करने में सक्षम होता है।
- पूर्ण दृष्टिः छठे स्थान में राहु की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक लोगों को ठग कर धन अर्जित करता है। ऐसा जातक धूर्त भी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में षष्ठ भाव में स्थित राहु, जातक को बड़े-बडे कार्य करने वाला बनाता है। जातक प्रबल शत्रुहंता होता है अर्थात जातक के शत्रु होते नहीं है अगर होते हैं तो हमेशा जातक से परास्त होते हैं। जातक संघर्षों में विजय प्राप्त करता है। शत्रु एवं शत्रु राशिगत राहु के प्रभाव से जातक का नाना व मामा पक्ष दुखी रहतें है। शत्रु कर्जयुक्त होता है।
- भाव विशेषः छठवें स्थान में राहु की स्थिति शुभ फल जैसे धन सम्मान, सुख, एवं शत्रु की पराजय कराती हैं। छठवें राहु के प्रभाव से जातक बलवान, निरोगी एवं पराक्रमी होता है जातक को पीठ में दर्द, दांत, अल्सर और घावों से कष्ट होता है।
केतु के छठवें भाव का फल
- स्वभावः छठवें भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक अपने उदेश्यों का निधार्रण कर कार्य करता है। जातक का स्वास्थ मध्यम होता है। वह बचपन में दुखी होता है और कष्ट पाता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित षष्ठ भाव में केतु के शुभ प्रभाव से जातक परिवार एवं समाज द्वारा आदरणीय होता है। जातक कर्जहीन होता है। शत्रु व नीच राशि में केतु के होने पर जातक को अशुभ फल प्राप्ति होती है। जातक के परिवारजनों और मित्रों से संबंध खराब होते हैं। जातक शत्रुओं से परेशान रहता है।
- भाव विशेषः षष्ठ भाव में स्थित केतु सभी प्रकार के अरिष्टों को समाप्त करता है एवं जातक को सुखी बनाता है। किंतु जातक रोगी होता है एवं रोगों के कारण परेशान रहता है। जातक झगड़ालू प्रवृति का होता है। जातक अपने ज्ञान और विद्वान से सम्मान प्राप्त करता है। जातक वाद-विवाद में हमेशा सफलता होता है एवं उसका शत्रु पराजित होता है।
सप्तम भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में सप्तम भाव को विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी, सार्वजनिक जीवन और वैवाहिक सुख का भाव माना जाता है। यह भाव न केवल दांपत्य जीवन बल्कि व्यापारिक साझेदारी, समाज में प्रतिष्ठा और जीवनसाथी के गुण-दोषों को भी दर्शाता है। सप्तम भाव से यह जाना जाता है कि जातक का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा और साझेदारी से उसे लाभ या हानि होगी।
सूर्य के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सप्तम स्थान में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक प्रभावशाली, साहसी, यशस्सी, तीक्ष्ण स्वभाव वाला, कठोर और प्रखर होता है। जातक के हाव भाव एवं स्वभाव में गंभीरता होती है। पूर्ण दृष्टिः लग्न पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक प्रतिभाशाली, राजमान्य, सफल एवं अहंकारी होता है। वह किसी भी प्रकार के दबाब का विरोध करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः सप्तम भाव में स्व, मित्र और उच्च राशि में स्थित सूर्य प्रबल होता है जिससे जातक ईमानदार, धनी और जीवन के सुखों का आनंद उठाता है। जातक की पत्नी अतिथि सत्कार में कुशल होती है किंतु जातक का उसकी पत्नी से झगड़ा होता रहता है। शत्रु राशि व नीच राशि में सप्तम भाव में स्थित सूर्य अशुभ फल देता है। जातक के वैवाहिक जीवन पर इसका बुरा प्रभाव होता है। जातक स्वतंत्रता प्रिय होता है। जातक को किसी प्रकार का बंधन अथवा रोक-टोक पसंद नही होती।
- भाव विशेषः सप्तम स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक की अपनी पत्नी से संबंधो में खटास होती है एवं उसका तनाव पूर्ण वैवाहिक जीवन होता है। यह जातक को ईष्यालु भी बनाता है। सप्तम स्थान पर सूर्य जातक को कठोर एवं स्वाभिमानी बनाता है। जातक अपमानित होता है एवं हमेशा चिंतायुक्त रहता है।
चन्द्रमा के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सप्तम् भाव में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक धैर्यवान, सोच समझकर काम करने वाला और कीर्तिमान होता है। वह स्वभाव से शांत और सभ्य होता है। उसे अपने रूप और गुणों पर अभिमान करने वाला जीवन साथी प्राप्त होता है। जातक को प्रायः भ्रमण करना अच्छा लगता है।
- पूर्ण दृष्टिः चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है, जो जातक के लिए शुभकारी होती है। इस दृष्टि के प्रभाव से जातक विनम्र और प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी होता है। जातक के स्वभाव में अस्थिरता आती है। वह अति भावुक हो जाता है और किसी भी विषय पर बहुत देर तक सोचता रहता है। जातक सभ्य, धैर्यवान, कीर्तिमान व स्फूर्ति वाला होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, उच्च अथवा मित्र राशि में स्थित चन्द्रमा जातक के लिए सर्व सुख कारक होता है। जातक की पत्नी सुन्दर और धार्मिक होती है। जातक को व्यक्तित्व में एक आकर्षण होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित चन्द्रमा जातक को व्यभिचारी बनाता है। जातक का वैवाहिक जावन मध्यम होता है। प्रायः वैचारिक मतभेद या अति भावुकता के कारण जातक अपने जीवनसाथी के साथ सुखी नही होता है।
- सप्तम भाव विशेषः सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा से जातक में विपरीत लिंङ के प्रति सहज आकर्षण होता है। जातक को पत्नी द्वारा धन लाभ है और उसका गृहस्थ जीवन सुखी रहता है। जातक को सुंदर जावन साथी मिलता है। जातक जल यात्रा करता है।
मंगल के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सप्तम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक साहसी एवं परिश्रमी स्वभाव का होता है। जातक की वाणी में कठोरता होती है। वह क्रोधी स्वभाव का होता है एवं उसे क्रोध जल्दी ही आता है। जातक आवेश में अपना धैर्य खो बैठता है। जातक के स्वभाव में धूर्तता और ईष्या भी होती है परंतु जातक बुद्धिमान, पौरूष से पूर्ण और प्रभावशाली होता है।
- पूर्ण दृष्टिः मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का होता है। सप्तमस्थ मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को राज्यधिकार प्राप्त होता है। सप्तमस्थ मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिससे जातक को पैतृक संपत्ति मिलने में कठिनाई होती है एवं कुटुंब से जातक के मतभेद बने रहते हैं।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में मंगल स्थित होने पर मंगल के कुप्रभावों में कमी आती है। वैवाहिक जीवन मध्यम होता है परंतु जीवनसाथी सं मदभेद अवश्य होते हैं। यात्राओं से धन लाभ होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल जातक के लिए अत्यंत कष्टप्रद होता है। जातक का वैवाहिक जीवन दुखी होता है। पत्नी की मृत्यु या अलगाव होने की प्रबल संभावनाएँ होती है। स्त्री की पत्रिका में सप्तम मंगल शत्रु राशि का होने पर पति वियोग की संभावना होती है।
- सप्तम् भाव विशेषः सप्तम भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को मध्य आयु मं बहुत अधिक संघर्ष और परिश्रम करना पड़ता है। जातक वात रोगी होता है। जातक अपने धन का नाश करता है। पत्नी के सुख में निश्चित रूप से न्यूनता होती है। प्रायः जातक की पत्नी तेज स्वभाव की होती है जिससे वैवाहिक जीवन संतुष्टिकारक नही होता है। सप्तम भाव में स्थित मंगल से जातक के वैवाहिक सुख में न्यूनता होती है। पति अथवा पत्नी से अलगाव या किसी की मृत्यु होने की संभावना होती है।
बुध के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सातवें स्थान में स्थित बुध के प्रभाव से जातक वाचाल, स्पष्टवक्ता, स्त्रियों सं शीघ्र प्रभावित होने वाला, बुद्धिमान, विद्वान, कुलीन, उदार और धार्मिक होता है। जातक भोग विलास का जीवन व्यतीत करना चाहता है।
- पूर्ण दृष्टिः सातवें स्थान में स्थित बुधकी पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक गणितज्ञ, व्यवहार कुशल, व्यवसायी , सबसे मिल-जुलकर रहने वाला, सामाजिक, विनम्र और प्रतिष्ठित होता है। जातक एक से ज्यादा कार्य करने की सोचता है एवं निर्णय लेने में देर लगाता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च और स्व राशि में बुध शुभ कारक होता है। जातक का वैवाहिक जीवन सुखी होता है। जातक हस्तकला में प्रावीण होता है। जातक को भागीदारी के व्यवसायों में सफलता प्राप्त होती हैं। जातक का प्रभावशाली व्यक्तित्व होता है। शत्रु व नीच राशि के प्रभाव से जातक का वैवाहिक जीवन कष्टप्रद होता है। उसे भागीदारी से हानि उठानी पड़ती है।
- भाव विशेषः सप्तम बुध के प्रभाव से जातक आधुनिक विचारों वाला होता है। वह परंपरावादी नहीं रहता। जातक विलासी और दीर्घायु होता है। उसे सुख-सुविदा के समस्या साधान एकत्र कर उसका उपयोग करना पसंद होता है। महिलाओं संबंधी कार्यो में जातक विशेष रूचि रखने वाला होता है। सप्तम बुध स्त्री जातक को सुंदर और बुद्धिमान बनाता है। जातक में स्त्रियोचित्त गुणों की वृद्धि होती है।
गुरू के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सातवें भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक दयालु, बुद्धिमान, धार्मिक और चंचल स्वभाव का होता है। जातक नम्र कांतिवान, वाचाल, स्पष्टवक्ता, भावुक और सुखी होता है। जातक भाग्यशाली होता है।
- पूर्ण दृष्टिः सप्तम भाव में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि लग्न पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक धर्मात्मा, यशस्वी, दनी, कुलिन, सुंदर और सुशील एवं शांत स्वभाव का होता है। सप्तम भाव में स्थित गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि तृतीय स्थान पर होने से जातक को भाईयों का सहयोग प्राप्त होता हैं एवं जातक स्वयं के पराक्रम से सफलता अर्जित करता है। गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि एकादश भाव में होती है जिससे जातक की स्थिर आय होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व और उच्च राशि में गुरू का प्रभाव अति शुभकारी होता है जातक की पत्नी सुंदर, कुलीन परिवार की और धनी होती है। जातक का विवाह सर्वगुण संपन्न कन्या से होता है एवं जातक का विवाह के बाद भाग्योदय होता है। शत्रु व नीच राशि का गुरू होने पर जातक शत्रुओं से पीड़ित एवं दुखी होता है। उसे पत्नी सुख में न्यूनता होती है।
- भाव विशेषः गुरू की सप्तम भाव में स्थिति वैवाहिक संबंधों के लिये बहुत सुखद नहीं मानी जाती है। जातक के लिए साझेदारी में विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। सप्तमस्थ गुरू के प्रभाव से जातक की स्थिति धन एवं यश में उत्तम होती है। जातक उच्चकोटि का व्यवसायी होता है।
शुक्र के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सप्तम भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक स्नेही, धनी, सौंदर्य प्रेमी और सुखी होता है। जातक सुखी वैवाहिक जीवन वाला, साहित्य प्रेमी, जीवन के सभी सुखों का आनंद उठाने वाला होता है। जातक के अनेक मित्र होते हैं और वह मिलनसार होता है। सप्तम भाव में शुक्र के प्रभाव से जातक बुद्धिमान, चंचल और वह स्त्री प्रेमी भी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः शुक्र की पूर्ण दृष्टि लग्न पर होती है जिसके प्रभाव से जातक सुन्दर, भाग्यवान, चतुर, भोग-विलास में रूचि रखने वाला और स्त्रीपक्ष की ओर विशेष आकर्षण रखता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक का स्वतंत्र व्यवसाय होता है। स्त्री राशि का होने पर स्त्री जातक अति सुंदर होती है। जातक को व्यापार व व्यवसाय दोनों से ही लाभ होता है, परंतु साझेदारी में प्रायः हानि उठाना पड़ता है। शत्रु व नीच राशि का शुक्र होने पर जातक चरित्रवान होता है और उसे शत्रुओं से कष्ट उठाने पड़ते हैं। जातक को स्त्री से सुख में भी कमी-आती है।
- भाव विशेषः सप्तम स्थान के शुक्र की स्थिति से जातक का स्वतंत्र व्यवहार और किसी के दबाव में न रहने का स्वभाव होता है। जातक सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व और सेक्स के प्रति अधिक रूचि रखता है। जातक बुद्धिमान, सहज, धैर्यवान और दूसरो के सहज ही मोहीत कर लेता है। जातक उदार और लोकप्रिय होता है। जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है। जातक भाग्यवान, विलासी एवं चंचल होता है।
शनि के सप्तम भाव का फल
सप्तम भाव में शनि को दिग्बल प्राप्त होता है। केन्द्र में दिग्बल होने से शनि अधिक शक्तिशाली हो जाता है।
- स्वभावः सप्तम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक महत्वाकांक्षी, व्यवहार कुशल एवं कुशल व्यवसायी होता है। जातक आत्मसम्मान के प्रति विशेष सजग होता है। जातक भ्रमण का इच्छुक, विदेशों से लाभ प्राप्त करने वाला ओर स्वार्थी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः सप्तम भाव में स्थित शनि की पूर्ण सप्तम दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक आत्मकेंद्रित हो जाता है। अपनी प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक प्रायः अपने प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक प्रायः अपने जन्म स्थान से दूर नौकरी करता है। जातक को क्रोध भी आता है। सप्तम भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाग्य में रूकावटें आती रहती हैं। जातक को सफलता के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। सप्तम भाव में स्थित शनि कीदशम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को सुख में कमी आती है। शनि की दृष्टि जातक की माता के लिए कष्टकारी होती है।
- मित्र/ शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्व राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को विवाह के बाद जावन में सफलता प्राप्त होती है। जातक की इच्छा शक्ति प्रवल होती है। शत्रु व नीच राशि का शनि होने पर जातक विशाल हृदय वाला और खर्चीला होता है। उसे शीघ्रता से क्रोध आता है। प्रायः अहंकारी होता है। जातक के आत्म सम्मान की कमी होती है।
- भाव विशेषः सप्तम स्थान स्त्री का कारक है इसलिए सप्तम भाव में स्थित शनि से जातक स्त्री भक्त होता है। शनि की इस स्थान पर स्थिति जातक को कामी और विलासी भी बनाती है। जातक आलस करता है और नीच प्रकार का कर्म करता है।
राहु के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सप्तम भाव में स्थित राहु के प्रथम से जातक अपनी इच्छानुरूप कार्य करने वाला गर्वीला, स्वतंत्र, चतुरस विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित और उनसे लाभ उठाने वाला होता है। जत का जीवन साथी चतुर होता है।
- पूर्ण दृष्टिः सप्तमस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक क्रूर एवं स्वार्थी होता है। जातक की सोच नकारात्मक होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित राहु सप्तम भाव में स्थित होने से दांपत्य जीवन ठीक रहता है। मित्र राशि का होने पर जातक को यात्राओं में सफलता प्राप्त होती है उसे विवाद और निंदनीय कार्यों से सफलता मिलती है। जातक जल्दी क्रोधित होने वाला होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर वैवाहिक जीवन नष्ट होता हैं, यात्रा में हानि उठानी पड़ती है एवं पारिवारिक सुख नष्ट होता है। शत्रु राशि में सप्तमस्थ राहु स्त्री को पीड़ा देता है। जातक को भी स्त्री के कारण पीड़ा होती है।
- भाव विशेषः सप्तम स्थान में स्थित राहु जातक की पत्नी के लिए कष्टकारी होता है। जातक की पत्नी के स्वभाव से व उसकी पत्नी में अनबन बनी रहती है। जातक के लिए व्यापार से ज्यादा नौकरी ठीक रहती है। जातक दुष्कर्मी, लोभी एवं दुराचारी होता है। जातक वात संबंधी रोग से पीड़ित होता है।
केतु के सप्तम भाव का फल
- स्वभावः सातवें स्थान में केतु के प्रभाव से जातक व्यवसायी होता है एवं धन संबंधी कार्यों से लाभ प्राप्त करता है। वह धन व पत्नी से सुख प्राप्त करने वाला होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित केतु के प्रभाव से जातक को आकस्मिक धन लाभ होता है। जातक की पत्नी समझदार होती है। शत्रु व नीच राशि का सप्तम भाव में केतु होने पर वह जातक को दांपत्य सुख में हानि करता है। जातक का दुखी वैवाहिक जीवन होता है।
- भाव विशेषः सप्तम भाव में केतु की स्थिति से जातक को चोरी का भय होता है। जातक को समझदार पत्नी मिलती है एवं जातक अपनी पत्नी से सुख पाता है।
अष्टम भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में अष्टम भाव को आयु, मृत्यु, रहस्य, गुप्त ज्ञान, अचानक होने वाली घटनाएँ, रोग, बाधाएँ और पुनर्जन्म से संबंधित भाव माना जाता है। इसे जीवन की अनिश्चितताओं और गूढ़ पहलुओं का सूचक भी कहा जाता है। अष्टम भाव यह दर्शाता है कि जातक को जीवन में कितनी चुनौतियों और अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
सूर्य के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक अपव्ययी एवं झगड़ालू स्वभाव का होता है। वह रहस्यात्मक विद्याओं में रूचि रखने वाला होता है। जातक कामी, अस्थिर विरारों वाला एवं बातूनी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को पैतृक संपत्ति मिलने में बाधाएँ आती है। जातक के पारिवारिक सुख में भी न्यूनता होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में होने पर सूर्य जातक को सुखी बनाता है एवं अष्टम स्थान पर होने वाले अशुभ प्रभाव को खत्म करता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित सूर्य जातक को चिंतायुक्त बनाता है। जातक में धैर्य की कमी होती है एवं वह बहुत जल्दी अपना धैर्य खोकर क्रोधित हो उठता है।
- भाव विशेषः जातक को अष्टमस्थ सूर्य के प्रभाव से नेत्र पीड़ा विशेषकर दाँये नेत्र में होने की संभावना होती है। हृदय संबंधी रोग भी हो सकते है। अष्टम स्थान पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक रोगी रहता है विशेषकर जातक को पित्त संबंधी कष्ट रहता है। अष्टमस्थ सूर्य जातक को एक तरफ जहाँ लंबी आयु प्रदान करता है वही जातक को यह धनी भी बनाता है। जातक बुद्धि का उपयोग कम करता है।
चन्द्रमा के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम भाव में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक अधिक बोलने वाला होता है। जातक ईर्ष्यालु, आत्मसम्मान से युक्त एवं सदैव चिन्तित रहने वाला होता है। वह कठोर और दूसरों के प्रति अपने मन में दुर्भावना रखता है। जातक प्रायः झूठ भी बोलता है।
- पूर्ण दृष्टिः अष्टमस्थ चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि जन्म पत्रिका के दूसरे भाव पर पड़ती है। सप्तम पूर्ण दृष्टि धन भाव पर पड़ने से जातक को किसी स्त्री द्वारा प्राप्ति के योग बनते हैं। जातक को परिवार का सुख प्राप्त होता है। द्वितीय भाव में चन्द्रमा की दृष्टि होने पर जातक के बहुत अधिक कुटुंबी होते हैं अर्थातत् एक बड़े परिवार में जन्म होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः अष्टम भाव में स्थित मित्र, स्व व उच्च राशि के चंद्रमा से जातक को स्त्री द्वारा धन प्राप्ति के योग बनते हैं। जातक व्यापार में सफलता प्राप्त करता है। जातक स्वाभिमानी भी होता है। शत्रु व नीच राशि के चंद्रमा के अष्टम स्थान में होने से जातक को धन हानि होती है। जातक को व्यपार में हानियाँ होती है। इससे जातक के स्वाभिमान में कमी आती है।
- भाव विशेषः अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को जल से भय उत्पन्न करता है। अष्टम चंद्रमा जातक को विकार व प्रमेह रोग से ग्रसित करता है। जातक प्रायः बंधनों से मुक्त रहता है। जातक को व्यवसाय से सफलता के योग भी अष्टम चंद्रमा बनाता है।
मंगल के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव में कई प्रकार के व्यसन पाये जाते हैं। जातक मानसिक रूप से अस्थिर होता है। प्रायः जातक लंबे समय तक कोई निर्णय नही ले पाता जिसके कारण उसे हानि उठानी पड़ती है।
- पूर्ण दृष्टिः अष्टम भाव पर स्थित मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के धन में न्यूनता आती है। उसे सदैव धन की चिंता बनी रहती है। जातक के पारिवारिक सुख में भी न्यूनता आती है। अष्टम भाव पर स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि एकादश भाव पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भूमि संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है। अष्टम भाव स्थित मंग की अष्टम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी एवं साहसी होता है।
- मित्र/शत्रु रिः अष्टम भाव में स्थित मित्र, स्व एवं उच्च राशि का मंगल कुप्रभावो में न्यूनता लाता है। दुर्घटना में मृत्यु नही होती कई बार ईश्वरीय कृपा से जानबचती है। मित्र राशि में प्रायः दंगे, लड़ाई वाहन दुर्घटना, आगजनी, इत्यादि से कष्ट होने की संभावना होती है। पर जातक को अग्नि भय रहता है।
- अष्टम भाव विशेषः अष्टम भाव में स्थित मंगल अशुभ फलदायी माना जाता है। जो जातक के साथ होने वाली आकस्मिक दुर्घटओं की संभावना को बनाता है। अष्टम भाव में स्थित मंगल से जातक की असमय होने वाली मृत्यु की संभावना होती है। अष्टम मंगल के प्रभाव से जातक में अजीर्ण, रक्तचाप, वायुरोग, पेट रोग और रक्त विकार हो सकते हैं। कभी-कभी शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की भी आवाश्यक होती है। इस भाव में मंगल की स्थिति वाले जातक प्रायः अनीति से धन कमाने की लालसा रखते हैं। जातक को सांसारिक सुख पाने की तीव्र लालसा होती है। जातक हठ योग में सफ लता प्राप्त कर सकते हैं। किसी व्यक्ति की वसीयत पर वाद-विवाद की स्थिति में अतिव्यय की संभावना होती है।
बुध के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम भाव में बुध के प्रभाव से जातक स्वभाव से अभिमानी, मानसिक संताप रखने वाला और मनस्वी होता है। जातक धार्मिक कार्यों में रूचि रखने वाला होता है। जातक की स्मरण शक्ति तीव्र होती है। जातक बलवान, गंभीर और परिवार के साथ रहने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः अष्टम भाव में स्थित बुध की पूर्ण दृष्टि दूसरे भाव पर होती है, जो कि शुभ होकर कहीं अन्य स्थान से धन प्राप्ति के योग बनाती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व एवं उच्च राशियों में स्थित बुध से जातक को लाभ होता है। उसकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा होता है। परिवारजनों से अच्छे संबंध होते हैं। शत्रु व नीच राशि का बुध होने पर जातक को मानसिक चिंताएं, शारीरिक कष्ट तथा झगड़ालू स्वभाव होता है। शत्रु राशि के प्रभाव से जातक अनेक मानसिक रोगों से ग्रस्त होता है।
- भाव विशेषः अष्टम भाव में बुध की स्थिति से जातक को विपरीत लिंग वाले लोगों का विश्वास और सुख प्राप्त होता है। जातक कुशल वक्ता, न्यायाधीश व राजमान्य होता है। जातक की आयु दीर्घ होती है। अष्टम बुध से जातक मानसिक तौर पर दुखी रहता है। बुध के प्रभाव से जातक के पेट और जांघों में कष्ट होता है। मस्तिष्क ज्वर और अन्य मानसिक रोगों से कष्ट होता है।
गुरू के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः जन्म पत्रिका में अष्टम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक लोभी, ईष्यालु एवं उदासीन होता है। जातक अपनी मनमर्जी से कार्य करता है एवं यही स्वतंत्रा उसके कष्टों का कारण होती है। जातक अस्थिर बुद्धि वाला होता है। उसे उचित अनुचित का भेद नहीं होता।
- पूर्ण दृष्टिः अष्टम गुरू की द्वितीय भाव पर पूर्ण सप्तम दृष्टि के प्रभाव से जातक अपने पिता द्वारा अर्जित धन का नाश करता है। जातक संवय अर्जित धन से सुख प्राप्त करता है। अष्टम गुरू की पंचम दृष्टि द्वारा भाव पर होने से प्रायः जातक धर्मिक व परमार्थिक कर्मो में अधिक व्यय का सुख प्राप्त होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र व उच्च राशि में गुरू के प्रभाव से जातक को धन लाभ होता है। जातक स्वस्थ, परिश्रमी, पढ़ा-लिखा और वेदों के प्रति रूचि रखता है। मित्र राशि में गुरू होने पर स्त्री के द्वारा धन प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक दुखी, झगडालू एवं क्रोधी होता है। प्रायः परिवार के रहस्य बाहर पता चलते हैं। शत्रु राशि में गुरू की स्थिति से जातक को परिवार में उचित मान नहीं मिलता है।
- भाव विशेषः अष्टम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता होता है। जातक की आयु लंबी होती है। प्रायः जातक शतायु होते हैं। जातक के शत्रु भी जातक की प्रशंसा करते हैं। जातक रक्त दोषों, हृदय रोग, मानसि तनाव से ग्रस्त होता है। अष्टम गुरू से जातक को अपने मित्रों की संगत प्रिय होती है एवं वह अपने मित्रों पर अधिक धन व्यय करता है।
शुक्र के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक कामी स्वभाव का औ गुप्त कार्यों में रत रहने वाला होता है। जातक आलसी होता है पर प्रसिद्धि प्राप्त करता है। प्रेम संबंधों में जातक को प्रायः असफलता प्राप्त होती है। जातक की रूचि आध्यात्म, तंत्र, मंत्र और गुप्त विद्याओं में होती है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वितीय स्थान पर स्थित शुक्र की पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक परिवार का सुख और धन धान्य को प्राप्त करता है। जातक क्रोधी एवं निर्दयी भी होता है
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र एवं उच्च राशियों में अष्टम भाव में शुक्र जातक को सुखी, धनी तथा सहज बनाता है। जातक का जीवन साथी उससे पूरा सहयोग करता है। जीतक दीर्घायु होता है। शत्रु व नीच राशि का शुक्र होने पर जातक को आर्थिक और शारीरिक कष्ट होते हैं। जातक को व्यवसाय में अव्यवस्था तथा अस्थिरता होती है।
- भाव विशेषः अष्टम भाव स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक ज्योतिष विद्या को प्रति अध्ययनरत रहता है। जातक मनस्वी होता है। जातक का परस्त्री से संबंध व आकर्षण रहता है। अष्टम शुक्र जातक को निर्दयी रोगी एवं दुखी बनाता है। जातक की पर्यटन में विशेष रूचि होती है।
शनि के अष्टम भाव का फल
सप्तम भाव में शनि को दिग्बल प्राप्त होता है। केन्द्र में दिग्बल होने से शनि अधिक शक्तिशाली हो जाता है।
- स्वभावः सप्तम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक महत्वाकांक्षी, व्यवहार कुशल एवं कुशल व्यवसायी होता है। जातक आत्मसम्मान के प्रति विशेष सजग होता है। जातक भ्रमण का इच्छुक, विदेशों से लाभ प्राप्त करने वाला ओर स्वार्थी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः सप्तम भाव में स्थित शनि की पूर्ण सप्तम दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक आत्मकेंद्रित हो जाता है। अपनी प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक प्रायः अपने प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक प्रायः अपने जन्म स्थान से दूर नौकरी करता है। जातक को क्रोध भी आता है। सप्तम भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाग्य में रूकावटें आती रहती हैं। जातक को सफलता के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। सप्तम भाव में स्थित शनि कीदशम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को सुख में कमी आती है। शनि की दृष्टि जातक की माता के लिए कष्टकारी होती है।
- मित्र/ शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्व राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक को विवाह के बाद जावन में सफलता प्राप्त होती है। जातक की इच्छा शक्ति प्रवल होती है। शत्रु व नीच राशि का शनि होने पर जातक विशाल हृदय वाला और खर्चीला होता है। उसे शीघ्रता से क्रोध आता है। प्रायः अहंकारी होता है। जातक के आत्म सम्मान की कमी होती है।
- भाव विशेषः सप्तम स्थान स्त्री का कारक है इसलिए सप्तम भाव में स्थित शनि से जातक स्त्री भक्त होता है। शनि की इस स्थान पर स्थिति जातक को कामी और विलासी भी बनाती है। जातक आलस करता है और नीच प्रकार का कर्म करता है।
राहु के अष्टम भाव का फल
अष्टम भाव में राहु की स्थिति अशुभ होती है विशेषकर मानसिक अवस्था के लिये हानिकारक होता हैं। जातक का पुष्ट शरीर होता है किंतु उसे गुप्त रोग या पेट संबंधी रोग होते हैं।
- पूर्ण दृष्टिः अष्टमस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक स्वयं के कुटुंब द्वारा उपेक्षित होता है। जातक को मृत लोगों से उत्तराधिकार में धन, भवन प्राप्त होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र शत्रु राशि में राहु के अष्टम भाव में होने से जातक धैर्यवान, धनी और समझदार होता है। शत्रु व नीच राशि में अष्टमस्थ राहु कष्टप्रद जीवन एवं जातक को गलत साधनों से धन अर्जन की इच्छा कराता है जिसके परिणामस्वरूप जातक को कारावास की संभावना होती है।
- भाव विशेषः अष्टम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक को नाम और धन अर्जित करने में परेशानी होती है। जीवन में जातक निंदा का पात्र बनता है। प्रायः जातक को जन्मस्थान से दूर रहना पड़ता है। अष्टम अष्टम राहु जातक को क्रोधी व कामी बनाता है। जातक बहुत ज्यादा एवं व्यर्थ की बातें बोलता है। जातक मूर्खतापूर्ण आचारण भी करता रहता है। जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आते हैं।
केतु के अष्टम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक खेलों में प्रतिभा का प्रदर्शन करता है। जातक नौकरी में सफलता है एवं कुशल कार्यकर्ता माना जाता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में केतु के होने पर जातक प्रसिद्ध, शासकीय सेवा एवं शासन से धन लाभ प्राप्त करने वाला होता है। शत्रु व नीच राशि में केतु होने पर जातक को धोखे से हानि की संभावना होती है। अचानक दुर्घटना से जातक को कष्ट हो सकता है। प्रियजनों से जातक का अलगाउ होता है।
- भाव विशेषः अष्टम भाव में केतु के प्रभाव से जातक चालाक, बुद्धिहीन एवं बुद्धि का दुराचारी कार्यों में उपयोग करने वाला होता है। जातक में तेज नही होता है। जातक स्वयं की स्त्री की प्रगति से द्वेष करता है। जातक के पेट में विकार होते हैं और वह गुप्त रोगों से ग्रसित होता है।
नवम भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में नवम भाव को भाग्य भाव कहा जाता है। यह भाव धर्म, भाग्य, गुरु, उच्च शिक्षा, दीर्घ यात्राएँ, नैतिकता और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है। नवम भाव यह बताता है कि जातक का भाग्य कितना प्रबल है और उसका झुकाव धार्मिक या दार्शनिक दृष्टिकोण की ओर कैसा रहेगा।
सूर्य के नवम भाव का फल
- स्वभावः नवम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक का स्वभाव दूसरों की सहायता के लिए सदा तत्प होता है। जातक महत्वाकाँक्षी, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, प्रसिद्ध और आस्तिक होता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवमस्थ सूर्य की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को अपने भाईयों से कष्ट प्राप्त होता है। जातक के कथन को उसके कर्मी का सहयोग नही मिलता अर्थात कहा हुआ कार्य जातक जातक पूर्ण नही करता अतः जातक स्वयं के लिए अनेक परेशानियों का कारण हो जाता है। जातक यशस्वी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व उच्च राशि का सूर्य होने पर जातक साहसी, भाग्यशाली एवं धार्मिक होता है। उसे अपने पुरूषार्थ पर पूरा भरोसा होता है। वह अपने प्रयासों से हर कार्य सिद्ध करता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को भाग्योदय के लिए अनेक संघर्ष का सामना करना पड़ता है। जातक अपमानित होता है और उसे अनेक अप्रत्याशित नुकसान उठाने पड़ते हैं।
- भाव विशेषः नवमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक सदाचारी होता है। जातक के योग, तपस्या व उच्च विचार होते हैं। जातक को वाहन व नौकर का सुख प्राप्त होता है। जातक मृत्यु के बाद यशस्वी होता है। मृत्यु के बाद जातक को उसके कार्यों में ख्याति प्राप्त होती है। नवमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक प्रायः सामाजिक संस्थाओं के कार्यो से जुडा होता है। मंदिर इत्यादि के निर्माण में जातक बढ़-चढ़ के भाग लेता है।
चन्द्रमा के नवम भाव का फल
- स्वभावः नवम् भाव भाग्य और धर्म का है अतः इस भाव के शुभ फल जातक के स्वभाव में होते हैं। जातक सुख-सम्पत्ति से पूर्ण, धार्मिक, मेहनती, न्यायी ओर विद्वान होता है। जातक में साहस अधिक होता है। जातक प्रकृति प्रेमी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवम भाव के चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के भाई तो कम होते हैं पर बहनों की संख्या अधिक होती है। जातक को बहनों से विशेष सहयोग भी मिलता है।
- मित्र/शत्रु राशिः चन्द्रमा मित्र, स्व या उच्च राशि का होने पर जातक के भाग्य को प्रबल बनाता है। जातक को सभी प्रकार के सुख, धन आदि प्राप्ति होते हैं। जातक धार्मिक कार्यो में रूचि रखता है। चन्द्रमा शत्रु व नीच राशि में होने पर निर्बल होता है। ऐसा जातक गरीब और धर्महीन व्यवहार करता है। भाग्य उसका साथ नही देता है एंव जातक को हमेशा रूकावटें आती रहती हैं।
- नवम भाव विशेषः नवम भाव में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक भाग्यशाली होता है। महिलाओं के सहयोग से या विवाह के बाद जातक का भाग्योदय होता है। इसके बाद जातक अपने पराक्रमा और परिश्रम से आसानी से प्रगति की ओर बढ़ता है एवं यश और धन अर्जित करता है। जातक कुछ वहमी या अंधविश्वासी होता है। जातक न्याय संगत एवं विद्धवान होता है। स्त्रियों की जन्म पत्रिका में नवम स्थान का चन्द्रमा उन्हें दार्शनिक बनाता है। वे प्रायः गृहकार्य से उदासीन हो धार्मिक कार्म में अधिक रूचि रखती है।
मंगल के नवम भाव का फल
- स्वभावः नवम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक यशस्वी, अभिमानी, तेजस्वी और उत्साही होता है। जातक की धर्म के प्रति विशेष आस्था नहीं होती है। जातक एक ही समय में कई कार्य करना चाहता है और वह अपने काम में हस्तक्षेप पसंद नही करता। मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव में कठोरता होती है। वह विद्रोही स्वभाव का हो जाता है और हर बात में शंकाएँ व्यक्त करता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवम भाव स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी, भाग्यवान होता है किंतु उसे भाईयों के सुख में कमी होती है। नवम भाव स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि द्वारा भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र प्रकृति का हो जाता है। जातक के व्यय अधिक होते हैं और उसे धन संग्रह में मुश्किलें आती हैं। नवम भाव स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जो की माता के लिए कष्कारी है। जातक मातृभक्त होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः नवम भाव में स्थित मंगल यदि मित्र, उच्च और स्व राशि में हो तो जातक को कीर्ति और धन वान प्राप्त होता है। जातक का भाग्योदय अवश्य होता है। उसके यश, मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। शत्रु राशि में स्थित मंगल अपर्कीति फैलाता है। जातक का भाई से क्लेश होता है। जातक को व्यवसाय और लाभ में कमी होती है। उसे प्रायः उद्योग एवं धंधों में हानि होती है।
- भाव विशेषः नवम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को वाहन, भवन, भूमि संबंधी कार्यों से विशेष लाभ होता है। नवम भाव पर मंगल के प्रभाव से जातक धर्म कर्म में कम आस्था रखता है। उसकी आध्यात्मक और धर्म में विशेष श्रद्धा नहीं होती है। जातक आधुनिक दृष्टिकोण रखता है। आत्म नियंत्रण न होने के कारण वह सभी परम्पराओं को तोड़ देना चाहता है। जातक ऊँचे पद पर अधिकारी होता है। विदेश यात्रा में या प्रवास में जातक के दुर्घना के योग बनते हैं। अशुभ योगों के प्रभाव से प्रायः जातक नियमों और कानून का उल्लंघन करता है।
बुध के नवम भाव का फल
- स्वभावः नवम भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक विद्वान, धार्मिक, भाग्यवान, पढ़ने-लिखने में रूचि रखतने वाला और काव्य प्रेमी होता है। जातक सदाचारी, धनी और संतान से सुख प्राप्त करता है। जातक अपनी वाक पटुता के लिये प्रसिद्ध होता है। जातक लेखन, पठन और पाठन में रूचि के कारण अच्छा लेखक बनता है। जातक गणितज्ञ अथवा ज्योतिषी में रूचि रखता है। जातक उच्चकोटि का व्यवसायी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवमस्थ बुध की पूर्ण दृष्टि तीसरे भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाई बहनों का सुख प्राप्त होता है। जातक की दूरस्थ देशों की यात्रा होती है और वह प्रवासी होता है।
- मित्र/ शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि में जातक भाग्यशाली होता है। जातक धन धान्य से परिपूर्ण होता है। शत्रु व नीच राशि में बुध के प्रभाव से जातक अनिश्चय का शिकार होता है। प्रायः उसकी धर्म के प्रति आस्था कम होती है। अधिक चिंता और घबराहट से स्थितियां जातक के नियंत्रण के बाहर हो जाती हैं जिससे जातक को अनेक कष्ठ उठाने पड़ते हैं।
- भाव विशेषः नवमस्थ बुध के प्रभाव से जातक भाग्यशाली होता है। वेद, पुराण अथवा तंत्र-मंत्र में जातक की रूचि होती है। जातक अनेक लंबी यात्राएं करता है। नवम भाव में बुध की स्थिति से जातक कवि, गायन, संपादन, लेखन, ज्योतिष व व्यवसाय में सफल होता है। जातक जिसके लिए कार्य या नौकरी करता है उसे विशेष लाभ होता है। अतः अधिकारी मालिक का विशेष प्रेम जातक प्राप्त करता है। चर राशि में होने पर जातक यात्रा प्रेमी होता है। दूर-दूर के क्षेत्रों में व्यवसाय और आनंद के लिये यात्रा करता है। वायु राशियों में होने पर वैमानिकी के प्रति आकर्षित होता है।
गुरू के नवम भाव का फल
- स्भावः नवम भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक भाग्यशाली, कुलीन, स्वतंत्र विचारों वाला, धर्मात्मा, दानी, यशस्वी ओर परोपकारी होता है। वह तीर्थ यात्राएं करने वाला, भक्त दार्शनिक, प्रतिभाशाली और विद्वान होता है। जातक पराक्रमी और राजमान्य होता है। जातक की ज्योतिष में विशेष रूचि होती है।
- पूर्ण दृष्टिः नवमस्थ बृहस्पति की सप्तम पूर्ण दृष्टि तीसरे भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी और दूर देशों की यात्रा करता है। जातक भाई को सुख सुख देने वाला होता है। नवमस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर होने से जातक पुत्रवान व शिक्षावान होता है। जातक की संतान उत्तम होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः नवमस्थ गुरू उच्च, स्व एवं मित्र राशियों में शुभ फलदायक होता है। जातक उच्च चरित्र वाला और सद्विचारों से युक्त होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज में आदरणीय स्थिति अर्जित करता है। जातक शिक्षा से संबंधित कार्यों में सफल होता है। शत्रु एवं नीच राशि का गुरू होने से जातक का भाग्य उसका साथ नही देता जातक के कार्य, रूकावटों व अधिक परिश्रम के बाद पूरे होते हैं। जातक स्वभाव से डरपोक हो जाता है।
- भाव विशेषः जातक की जन्म पत्रिका में नवम स्थान का गुण सर्वोत्तम माना जाता है। जातक को जीवन के किसी भी अवसर में कठिनाई होने पर इश्वरीय मदद प्राप्त होती है। जातक उच्चकोटि की सफलता उच्च पद और यश अर्जित करता है। जातक सामाजिक स्तर पर विख्यात होता है। जातक का चरित्र उत्तम होता है। वह सबकी सहायता करने की भावना रखता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। वह उसका उपयोग उच्चाधिकारी बनकर अथवा उच्चकोटि के शिक्षा से संबंधित व्यवसाय से प्राप्त करता है। जातक मुद्रक, प्रकाशक या संपादक भी हो सकता है।
शुक्र के नवम भाव का फल
- स्वभावः नवम भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक आस्तिक, गुणी और मनोरंजन प्रिय होता है। वह यशस्वी, प्रतिभाशाली, उदार एवं सबके प्रति सहानुभूति रखता है। जातक आशावादी और सर्वसुख प्राप्त करने वाला होता है। जातक बुद्धिमान, चंचल और भाग्यशाली होता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवम भाव में स्थि शुक्र की तृतीय स्थआन पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक महत्वाकाँक्षी, अधिक बहनों वाला, सुखी तथा पराक्रमी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र एवं उच्च राशियों में स्थित शुक्र जातक के लिए शुभ फलदायक होता है। जातक का विवाह के बाद भाग्योदय होता है। व्यवसाय के लिए महिलाओं सें जातक को विशेष सहयोग प्राप्त होता है। शत्रु एवं नीच राशिगत नवम शुक्र जातक को भाग्यहीन बनाता है। जातक को सुख प्राप्त नहीं होता।
- भाव विशेषः जातक नवमस्थ शुक्र के प्रभाव से अत्यंत आशावादी, उच्चाधिकारियों का कृपापात्र और सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करने वाला होता है। जातक का भाग्य पूर्ण रूप से उसका साथ देता है। जातक को नवमस्थ शुक्र के प्रभाव से पत्नी एवं संबंधियो द्वारा धन प्राप्त होता है। विदेश से व्यापारिक संबंधो से विशेष लाभ होता है। कलात्मक और साहित्यिक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। जातक आस्तिक, दयालु, गुणी एवं तीर्थ यात्राएँ करता हैं।
शनि के नवम भाव का फल
- स्वभावः अष्टम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक रोगी, निर्धन, अधिक परिश्रमी, उदासीन, कपटी, वाचाल, डरपोक, धूर्त, विद्वान और दुखी होता है। वह नीच स्त्रियों से संबंध रखने वाला होता है। जातक चतुर, शत्रुओं से व्यथित और गुप्त कार्य करने वाला होता है। प्रायः जातक नौकरी या व्यवसाय के कारण प्रवासी जीवन व्यतीत करता है।
- पूर्ण दृष्टिः अष्टम भाव स्थित शनि की सप्तम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जसके प्रभाव से जातक को आमदानी में बचत में कष्ट होते हैं। व्यवसाय होने पर बाधाएँ आती है। सर्विस होने पर प्रमोशन देर से होती है। धन संग्रह भी नही हो पाता है। पारिवारिक सुख में न्यूनता होती है। जातक की शिक्षा-दीक्षा में बाधा आती है। अष्टम भाव स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पिता के सुख में न्यूनता होती है। राज सुख और यश कड़े संघर्ष के बाद प्राप्त होता है। जातक कार्य करने में थोड़ा आलस करता है। अष्टम भाव स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक की विद्या में रूकावटें आती है। जातक की संतान भी देरी से होती है।
- मित्र/शत्रु राशिः अष्टम भाव में स्थित शनि निराशाजनक फल ही देता है परंतु मित्र राशि में जातक दीर्घयु अवश्य होता है। जातक को व्यवसाय, धन, संतान पक्ष से संतोष प्राप्त नहीं होता। अशुभ प्रभाव में होने पर स्वयं जातक के माता-पिता उसका तिरस्कार करते हैं।
- भाव विशेषः अष्टम भाव में शनि की स्थिति शुभकारी नहीं होती है। जातक दीर्घायु अवश्य होता है वृद्धावस्था में शांतिपूर्वक मृत्यु होती है। जावन का पूर्वाद्ध सुखी होने पर उत्तरार्ध में कष्ट और पूर्वाद्ध दुखी होने पर उत्तरार्ध में सुख प्राप्त होता है। दूषित शनि के प्रभाव से जातक को कारावास भी हो सकता है। जातक को कुष्ठ गुप्त रोग सकते हैं। जातक का स्थूल शरीर होता है। जातक डरपोक भी होता है। जातक रोगी श्वास रोग, वायु रोग, गुप्त रोगों से पीडित एवं दीर्घायु होता है।
राहु के नवम भाव का फल
- स्वभावः नवम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक की दुष्ट बुद्धि होती है। जातक निश्चित उदेश्य लेकर कार्य करने वाला होता है। जातक यात्राएं करने वाला एवं निदेशों में सफल होता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवम भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जो कि पराक्रम व भाईयों से संबंधित हैं। तृतीय भाव पर राहु की दृष्टि से जातक के भाईयो से मध्यम संबंध होते है जातक हालांकि पराक्रमी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित राहु जातक को भाग्यवान और धनी बनाता है। जातक की धर्म के प्रति थोड़ी आस्था होती है। जातक का भाइयों से अलगाव होता है। राहु के नवम भाव में शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर विपरीत प्रभाव मिलते हैं जातक दुखी नास्तिक एवं भ्रमण करने वाला होता है।
- भाव विशेषः नवम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक की दुष्ट बुद्धि होती है। जातक को दूसरों को सताने में व दूसरो की परेशानी देखकर खुशी होती है। ऐसे जातक का भाग्योदय विशेष स्थिति में ही हो पाता है।
केतु के नवम भाव का फल
स्वभावः नवम भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक विदेशियों से लाभ पाने वाला, संतुष्ट, यशस्वी, दयालु, धार्मिक और विद्वान होता है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि का केतु नवम भाव में होने पर केतु के प्रभाव से जातक को कई प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। ऐसा जातक उच्चपदाधिकारी अथवा राजनेता के समान सुख प्राप्त करता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को विदेशों में यात्रा के समय कष्ट होता है। जातक नास्तिक हो जाता है एवं धार्मिक कार्यों में उसकी आस्था नही होती है।
स्वभावः नवम भाव में केतु के प्रभाव से जातक का परिश्रम व्यर्थ कार्यों में लगा रहता हैं जिसके कारण जातक को सफलता पाने में कठिनाइयाँ होती है और उसे अपयश प्राप्त होता है। जातक सुख की अभिलाषा करता है एवं सुख पाने के प्रति प्रयासरत रहता है। जातक पराक्रमी होता है पर मित्रों की न्यूनता होती है।
दशम भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में दशम भाव को कर्म भाव कहा जाता है। यह भाव जातक के कार्यक्षेत्र, व्यवसाय, सामाजिक प्रतिष्ठा, यश, पद-प्रतिष्ठा और जीवन में मिलने वाली उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करता है। दशम भाव यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपने जीवन में किस प्रकार की नौकरी या व्यवसाय करेगा और समाज में उसकी क्या पहचान बनेगी।
सूर्य के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक महत्वकाँक्षी, साहसी और स्वयं को केन्द्र में रखने का इच्छुक होता है। वह धनी, प्रसिद्ध, साहसी और लगातार सफलता प्राप्त करने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम सूर्य की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपनी माता के स्वास्थ के लिए चिंतित रहता है। जातक साधु संतो का मान-सम्मान करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक उच्च पदाधिकारी होता है। जातक परिवार से सुखी होता है एवं कानूनी विषयों में सफलता प्राप्त करना है। जातक लंबी यात्राएं करता है। वह विदेशों में कष्ट प्राप्त करता है। जातक को कर्म क्षेत्र में असफलताओं का सामना करना पड़ता है।
- भाव विशेषः दशमस्थ सूर्य योग कारक है जिसके प्रभाव से जातक को अपने व्यवसाय में उच्च कोटि की सफलता, यश एवं धन प्राप्त होता है। क्योंकि जातक अत्यंत जिद्दी होता है एवं पिता ऐश्वर्यशाली बनाता है। जातक उदार एवं प्रतापी होता है। जातक की कार्य कुशलता उसे व्यवसाय व व्यापार में प्रसिद्ध व सुख दिलाती है।
चन्द्रमा के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाव में स्थित चन्द्रमा का प्रभाव से जातक यशस्वी, सुखी, बुद्धिमान, प्रसन्नचित्त एवं विलासी होता है। जातक के नई मित्र होते हैं। जातक महत्वाकांक्षी होता है एवं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करता है। जातक नित नये विचारों एवं तरीको की खोज में संलग्न रहता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम भाव में स्थित चन्द्रमा की चतुर्थ स्थान पर पूर्ण दृष्टि से जातक विशेष रूप से मातृ भक्त होता है। उसे जमीन, जायदाद, मकान आदि का सुख प्राप्त होता है।
- मित्र/ शत्रु राशिः मित्र, स्व या उच्च राशि में होने पर चंद्रमा के दशम स्थान में शुभ फल बढ जाते हैं। जातक को कार्य या व्यवसाय में उच्च कोटि की सफलता मिलती है। जातक को यश, मान और सम्मान की प्राप्ति होती है। जातक को माता पिता का सुख प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक को बार-बार व्यवसाय में हानि होती है। उसे महिलाओं से सहयो नहीं मिलता हैं। जातक को पिता द्वारा लिये हुए ऋण चुकाना पड़ता है।
- भाव विशेषः दशम स्थान में चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को किसी स्त्री मित्र के कार्यस्थल में सहयोग से प्रगति होती है। दशम भाव जातक की जन्म पत्रिका में राज्य सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य और पिता के सुख का कारक होता है। जातक अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ होता है। दशम भाव में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक को सफेद वस्तु के व्यवसाय से विशेष लाभ होता है। चंद्रमा के प्रभाव से जातक अपने व्यवसाय में बार-बार परिवर्तन करता रहता है। दशम भाव में चन्द्रमा वाले जातक को कुल दीपक की संज्ञा दी गयी है। जातक धार्मिक, सहिष्णु और माता-पिता की सेवा करने वाला होता है।
मंगल के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक चपल स्वभाव का, महत्वकांक्षी, बलवान, धनवान, सुखी और यशस्वी होता है। जातक विख्यात, साहसी, उत्साही और पराक्रमी होता है। जातक अत्यंत स्वाभिमानी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम भाव में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर होती है जिससे जातक को उत्तम वाहनौं का सुख व धन की प्राप्ति होती है। दशम भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि लग्न पर होती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का होता है। दशम भाव में स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि षष्ट भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व एवं उच्च राशि में दशम भाव में स्थित मंगल अति शुभ फलदायक होता है। जातक को कम प्रयासों से ही अधिक उन्नति प्राप्त होती है। जातक अपने कार्य क्षेत्र में सफल होता है। जातक उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ भी बनता है। जातक को धन, मान सम्मान, भूमि वाहन इत्यादि सुखों की प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल शुभ प्रभावों में न्यूनता लाता है। जातक को माता पिता का सुख पूर्णतः नही मिल पाता है। जातक को व्यवसाय में संघर्ष करना पड़ता है।
- भाव विशेषः जातक का प्रायः अपने पिता से वैचारिक मतभेद होता है जिससे पितृ सुख में कमी होती है। जातक अपने प्रयासों से समस्त कठिनाईयों पर विजय प्राप्त करता है। जातक उदार होता है और अन्य लोगों द्वारा प्रशंसा प्राप्त करता है। अपने कार्य के प्रति समर्पित होता है। जातक को संतान के प्रति चिंता होती है।
बुध के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाम में स्थित बुध के प्रभाव से जातक विनम्र, तीव्र बुद्धि से अलंकृत, सत्यवादी, विद्वान, व्यवहार कुशल, न्यायप्रिय, भाग्यशाली, राजमान्य और साहसी होता है। जातक माता-पिता के प्रति विशेष आदर रखता है। वह अपने पुरूषार्थ से उच्च स्थिति प्राप्त करता है। जातक की तीव्र स्मरण शक्ति होती है। जातक अच्छे विचारों वाला, चिंतक और यशस्वी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम बुध की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव में होने से जातक को माता, भूमि, भवन और वाहन से सुख प्राप्त होते हैं। जातक अपने बनाये मकान में रहता हैं।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि में बुध के प्रभाव से जातक को अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं। उसे भाषा और गणित में अद्भुत सफलता प्राप्त होती है। जातक धीर गंभीर, प्रसिद्ध और धार्मिक कार्य करता है। शत्रु व नीच राशि मे बुध के होने पर जातक अशुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक मूर्खता पूर्ण कार्य करता है। जातक कृपण होता है और व्यर्थ समय बर्बाद करता है।
- भाव विशेषः दशम भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक को उसके द्वारा किये गये कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। जातक को पिता से धन, भूमि और भवन प्राप्त होता है। जातक को अपने कुशल व्यवहार और अच्छे आचरण से नाम, यश, धन और वैभव प्राप्त होता है। जातक अच्छा वक्ता होता है। दलाली, संपादन, लेखा, गणित और लेखन कार्य में जातक को सफलता प्राप्त होती है। जातक के कार्य क्षेत्र एक से अधिक रहते हैं। बुध के प्रभाव से जातक व्यवसायी हो सकता है।
गुरू के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाव में गुरू के प्रभाव से जातक यशस्वी, भक्तिभाव से पूर्ण, वेदान्ती, भाग्यशाली, साहसी, सत्यचरित्र, सत्यवादी, शत्रुओं से रहित, स्वतंत्र विचारों वाला और धनी होता है। जातक किसी धार्मिक संस्था का प्रधान, महत्वाकांक्षी और प्रसिद्ध पुण्यात्मा होता है। जातक का रहन-सहन उच्च स्तरका होता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम भावगत गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि चतुर्थस्थान पर होती है, जिसके प्रभाव से जातक को भूमि, भवन और वाहन का सुख प्राप्त होता है। जातक को माता पिता से विशेष प्रेम, सुख, सहयोग एवं धन मिलता है। जातक माता –पिता का आदर्श पुत्र होता है। दशम भाव स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव में होने से जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। जातक को ससुराल पक्ष से भी विशेष लाभ होता है। दशम भाव स्थित गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि छठे भाव पर होने से जातक कर्जमुक्त व शत्रुनाशक होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः उच्च, स्व एवं मित्र राशियो में गुरू के शुभ प्रभावों में वृद्धि होती है। जातक सफल होता है। जातक को यश, धन एवं अधिकारों की प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में गुरू के होने से जातक को पिता के सुख में कमी होती है। व्यवसाय में जातक को कठिनाईयों एवं अस्थिरता की संभावना होती है।
- भाव विशेषः दशमस्थ गुरू के प्रभाव से जातक जन सहयोग से उच्च पद प्राप्त करता है जातक को उत्तम कोटि का मकान और वाहन सुख प्राप्त होता है। दशमस्थ गुरू उच्च राशि में होने से माता पिता से प्राप्त सुखों को श्रेष्ठता प्रदान करता है। दशमस्थ गुरू व्यवसाय में अपार सफलता देता है। जातक को प्रचुर धन प्राप्त होता है। राजनीति में भी अति शुभ फलदायी है। जातक को मान सम्मान प्राप्त होता है। किसी भी क्षेत्र में किये गये व्यवसाय के लिए दशमस्थ गुरू शुभ प्रभाव देता है।
शुक्र के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक विद्वान और तर्क वितर्क में कुशल होता है। जातक मातृ पितृ भक्त, धार्मिक कार्यो में रूचि रखने वाला, विलासी, भाग्यशाली, पराक्रमी, गुणी, दयालु, न्यायप्रिय, धनी और संपत्ति से युक्त होता है।
- पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थआन में स्थित शुक्र की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक सुखी होता है। जातक को माता का उत्तम सुख व कृपा प्राप्त होती है। जातक उत्तम प्रकार के भवन व वाहन का सुख प्राप्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक की उन्नति होती है। स्त्रियों से विशेष कर माता से जातक को धन की प्राप्ति अवश्य होती है। स्त्री राशि में होने पर जातक का भाग्योदय विवाह के बाद होता है। जातक स्वयं के व्यवसाय से लाभ प्राप्त करता है। शत्रु व नीच राशि का शुक्र स्त्रियों द्वारा धनहानि करवाता है। जातक कई प्रकार के व्यवसाय करना पसंद करता है। सभी व्यवसायों में जातक को सफलता प्राप्त नही होती। जातक के पिता से तनावपूर्ण संबंध होते हैं।
- भाव विशेषः दशमस्थ शुक्र जातक के राज्य भाव में वृद्धि करता है। व्यापार व व्यवसाय में स्त्रियों से व स्त्रियों द्वारा लाभ होता है। जातक को व्यवसाय में अपनी माता से भी सहायता प्राप्त होती है। सौंदर्य प्रसाधन, अभिनय, इत्यादि संबंधी कार्यो में जातक को विशेष सफलता प्राप्त होती है।
शनि के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम स्थान में स्थित शनि के प्रभाव से जातक सुखी, प्रवासी, बलवान, साहसी, पराक्रमी एवं भावुक होता है। जातक महत्वाकांक्षी एवं सफल व्यवसायी होता है। जातक न्यायप्रिय, भाग्यशाली, उदार और धनवान होता है। जातक में लोगों का नेतृत्व करने का स्वभाविक गुण होता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशम भाव स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को परिवार, माता एवं पत्नी के साथ मतभेदो का सामना करना पड़ता है। प्रारंभिक स्थिति में संघर्ष के बाद जातक को उच्चकोटि की सफलता प्राप्त होती है। दशम भाव स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक मितव्ययी होता है। अपने प्रयासों से संघर्ष कर जीवन में सफलता प्राप्त करता है। जातक धैर्यवान होता है। दशम भाव स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक के पत्नी से वैचारिक मतभेद होते हैं। शनि की दृष्टि शुभ नहीं होती जिसके प्रभाव से पत्नी से अनबन बनी रहती है।
- मित्र/शत्रु राशिः शुभ राशि, उच्च और स्व राशि में शनि अति शुभ फलदायक होता है। जातक निरंतर प्रगति करता है। व्यवसाय में उच्चता प्राप्त करता है। नौकरी में उच्चधिकारी का पद मान-सम्मान और धन की प्राप्ति होती है। जातक का पिता से लगाव होता है। शनि के शत्रु व नीच राशिगत होने पर जातक को सफलता के बाद अपयश मिलता है। अच्छे अवसर नही प्राप्त होते हैं। भाग्य साथ नही देता जातक को आर्थिक कष्ट, शोषण, अपमान और परिवार में क्लेश होता है।
राहु के दशम भाव का फल
- स्वभावः नवम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक की दुष्ट बुद्धि होती है। जातक निश्चित उदेश्य लेकर कार्य करने वाला होता है। जातक यात्राएं करने वाला एवं निदेशों में सफल होता है।
- पूर्ण दृष्टिः नवम भाव में स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जो कि पराक्रम व भाईयों से संबंधित हैं। तृतीय भाव पर राहु की दृष्टि से जातक के भाईयो से मध्यम संबंध होते है जातक हालांकि पराक्रमी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में स्थित राहु जातक को भाग्यवान और धनी बनाता है। जातक की धर्म के प्रति थोड़ी आस्था होती है। जातक का भाइयों से अलगाव होता है। राहु के नवम भाव में शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर विपरीत प्रभाव मिलते हैं जातक दुखी नास्तिक एवं भ्रमण करने वाला होता है।
- भाव विशेषः नवम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक की दुष्ट बुद्धि होती है। जातक को दूसरों को सताने में व दूसरो की परेशानी देखकर खुशी होती है। ऐसे जातक का भाग्योदय विशेष स्थिति में ही हो पाता है।
केतु के दशम भाव का फल
- स्वभावः दशम भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है। वह सामाजिक, धनी, साहसी और दूर-दूर की यात्रा करने वाला होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में केतु के प्रभाव से जातक सर्वोत्तम सम्मान प्राप्त करता है। वह विख्यात, अति बुद्धिमान एवं कला क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर विपरीत प्रभाव मिलते हैं। प्रायः जातक को असफलता एवं पिता से दुख मिलता है। जातक की व्यर्थ यात्राएं होती है। जातक को कार्यक्षेत्र में अनेक बाधाएं आती है।
- भाव विशेषः दशम भाव में केतु की स्थिति से जातक को पिता का सुक प्राप्त होता है किंतु जातक की उसके पिता से वैचारिक मतभेदता रहती है। जातक परिश्रम करता है जो की व्यर्थ होता है। जातक अभिमानी होता है एवं जातक का भाग्य उसका पूर्ण रूप से साथ नहीं देता है।
एकादश भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है। यह भाव आय, लाभ, इच्छाओं की पूर्ति, सामाजिक दायरा, मित्र मंडली और बड़े भाई-बहनों से संबंधित होता है। एकादश भाव यह दर्शाता है कि जातक को जीवन में धन, मान-सम्मान और सामाजिक समर्थन कितना प्राप्त होगा।
सूर्य के एकादश भाव का फल
- स्वभावः एकादश भाव में स्थित सूर्य से जातक सद्गुणी, यशस्वी, धनी, प्रसिद्ध एवं विद्वान होता है। जातक सदैव सत्य का समर्थन करने वाला होता है। जातक स्वाभिमानी , सुखी, बलवान, योगी एवं सदाचारी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः एकादश सूर्य की सप्तम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को संतान सुख में न्यूनता प्राप्त होती है। जातक की संतान अल्पायु, मूर्ख एवं झगड़ालू होती है परंतु जातक कुशाग्र होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक मेधावी, उच्चपद प्राप्त करने वाला, महत्वकांक्षी एवं धनी होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को संतान सुख में न्यूनता होती है। पुत्रों की अल्पायु होती है। आय में बाधाएँ आती है।
- भाव विशेषः जातक प्रायः अपने व्यवसाय में सफल होता है क्योंकि एकादश भाव में सूर्य कारक होता हैं। सूर्य के शुभ प्रभाव से जातक अत्यंत धनी होता है। जातक की आय के स्रोत उत्तम होते हैं। जिस तरह सूर्यास्त के समय सूर्य निस्तेज हो जाता है उसी प्रकार एकादश भाव में स्थित सूर्य वाला जातक भी वृद्धावस्था में तेजहीन हो जाता है। जातक बीमारियों से पीड़ित एवं शासन द्वारा उपेक्षित होता है। जातक अपनी विध्या एवम् बुद्धि का उपयोग करता है। अल्पायु से ही जातक धनार्जन करता है। जातक सुखी होता है।
चन्द्रमा के एकादश भाव का फल
- स्वभावः चन्द्रमा के एकादश स्थान में स्थित होने से जातक कला और साहित्य का प्रेमी, साहसी, संयमी, धनी और राजकार्य में निपुण होता है। जातक अनेक गुणों से परिपूर्ण और यशस्वी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः एकादश भाव में स्थित चन्द्रमा की पंचम स्थान पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक व्यवहारकुशल, बुद्धिमान और कला प्रिय होता है। कन्याओं की अधिकता होती है। जातक उच्च शिक्षित होता है और गायन, वादन इत्यादि में विशेष रूचि रखता है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च रि में चंद्रमा के होने पर जातक को नित्य अनेक स्रोतों से धन का अर्जन होता है। वह कला और साहित्य का प्रेमी होता है। जातक स्त्रियों में लोकप्रिय होता है एवं उनके सहयोग से आय अर्जित करता है। शत्रु व नीच राशि में चंद्रमा निर्बल होता है। चन्द्रमा के शुभ फलों में न्यूनता आती है। जातक को व्यवसाय व आय में कठिनाई मिलती है।
- एकादश भाव विशेषः चंद्रमा के एकादश भाव में स्थित के प्रभाव से जातक को आकस्मिक रूप से व्यवसाय से आय होती है। किसी स्त्री का संरक्षक जातक को प्राप्त होता है। जातक चंचल होता है। जातक गुणवान, लोकप्रिय, यशस्वी औंर राज्य संबंधी कार्यों में दक्ष होता है। जातक को यात्रा करना भी अच्छा लगता है। जातक प्रायः लाँटरी और सट्टे से धन कमाने की इच्छा रखता है।
मंगल के एकादश भाव का फल
- स्वभावः एकादश भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक का स्वभाव सुशील, सज्जन, प्रतापी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है। जातक साहसी, न्यायवान, धैर्यवान एवं ईमानदार होता है। जातक में प्रबल उत्साह होता है जिससे वह कठिन कार्य भी आसानी से करता है।
- पूर्ण दृष्टिः एकादश से सप्तम् अर्थात् पंचम स्थान पर मंगल की दृष्टि के प्रभाव से जातक को संतान कष्ट होता है। जातक की विद्या में रूकावटें आती है। प्रायः कर्ज लेने की स्थिति बनती है। एकादश भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के धन में न्यूनता आती है। एकादश भाव में स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व एवं उच्च राशि का मंगल एकादश स्थान में होने पर जातक में कई असाधारण गुण होते हैं। वह अत्यंत साहसी एवं उत्तम चरित्र वाला होता है। जातक की अधिकाँश इच्छाएँ पुरी हो जाती हैं। मित्रों से अच्छे संबंध होते हैं और उनसे लाभ होता है। जातक सत्यवादी होता है। शत्रु एवं नीच राशि का मंगल एकादश भाव में होने पर विपरीत प्रभाव होते हैं। जातक को मित्रों से हानि होती है। जातक की आय में रूकावट होती है।
- विशेषः एकादश स्थान में स्थित मंगल डाँक्टर और सर्जनों के लिए विशेष शुभ फलदायक है जो उन्हें उनके कार्यक्षेत्र में कार्यकुशल, यशस्वी तथा धनी बनाता है। वकील, इंजीनियर, सुनारों और लोहे का व्यापार करने वाले जातकों को जन्म पत्रिका में एकादश मंगल होने पर उन्हें अधिक लाभ होता है। पुलिस व सेना की नौकरी से आय या व्यवसाय की स्थिति में भूमि संबंधी कार्यों से आय होगी।
बुध के एकादश भाव का फल
- स्वभावः एकादश भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक धनी, वैभव से परिपूर्ण, स्वाभिमानी, उदार हृदयवाला, दीर्घायु, योगी, सदाचारी, प्रसिद्ध, ईमानदार और विचारवान होता है। जातक गायन वादन और काव्य प्रिय होता है।
- पूरक्ण दृष्टिः बुध की एकादश स्थान से पांचवे स्थान पर पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को पहली संतान पुत्र रूप में प्राप्त हो सकती है। जातक धनवान, गुणवान और विद्वान होता है। जातक कुशल शिल्पकार होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित बुध के प्रभाव से जातक भाग्यशाली, उच्च आय वाला एवं सुखी होता है। शुभ प्रभाव में जातक को विज्ञान अथवा साहित्य में रूचि रखने वाले मित्रों से सहायता प्राप्त होती है। शुभ कार्यों से धन प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक की आय में बाधाएं आती हैं। गलत उपयोग से धन नाश होता है। जातक अविश्वनीय होता है। उसके मित्र ही झगडों के कारण होते हैं।
- एकादश भाव विशेषः एकादश भाव में स्थित बुध के प्रभाव से जातक को धन ईमानदारी से प्राप्त होता है। जातक की ईमानदारी के कारण उसे प्रसिद्ध मिलती है। प्रायः जातक के आय के स्रोत एक से अधिक होते हैं।
गुरू के एकादश भाव का फल
- स्वभावः एकादश भाव में स्थित गुरू के प्रभाव से जातक वैभवशाली, प्रभावशाली, उच्च स्तरीय मित्रों से युक्त, दानी और विख्यात होता है। जातक यशस्वी, विद्वान, सत्यवादी, स्त्री से प्रभावित, सदव्ययी और पराक्रमी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः ग्यारवें स्थान में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि पंचम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक धनी, भाग्यशाली, पढ़ा-लिखा, विद्वान और उत्तम पुत्रों को प्राप्त करता है। एकादश स्थान में स्थित गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव पर होती है जिससे जातक पराक्रमी एवं भाईयों से सहयोग व सुख प्राप्त करता है। एकादश भाव में स्थित गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को स्त्री का सुख प्राप्त होता है।
- मित्र/ शत्रु राशिः मित्र उच्च एवं स्व राशि में गुरू जातक को समस्त सुखों को प्राप्त करता है। जातक की शत्रुओं पर विजय, कई स्रोतों से आय, उत्तम पुत्र, मान सम्मान इत्यादि होता हैं। शत्रु व नीच राशि में स्थित गुरू के प्रभाव से फल प्रतिकूल होते हैं। पुत्रों से विवाद होता है। व्यवसाय में हानि, बदनामी और गरीबी के कष्ट उठाने पड़ते हैं।
- भाव विशेषः एकादश भाव में गुरू के शुभ प्रभाव से जातक को पत्नी से लाभ एवं धन प्राप्त होता है। जातक की आय का स्रोत अनियमित रहता है। जातक को व्यवसाय में अद्भूद सफलता प्राप्त होती है। यश प्रचुर मात्रा में मिलता है। आमदनी का स्रोत नियमित रहता है। किसी स्त्री की जन्म पत्रिका में एकादश भाव के गुरू होने से उसका विवाह उच्च श्रेणी के अधिकारी अथवा व्यवसायी से होता है। विवाह के बाद उसका पति उच्च पद एवम् सफलता प्राप्त करता है।
शुक्र के एकादश भाव का फल
- स्वभावः ग्यारहवें स्थआन में शुक्र के प्रभाव से जातक गुणवान, धनवान, यशस्वी, पुत्रवान, प्रभावशाली, उदार कलाप्रिय और मित्रों से युक्त होता है। जातक ईश्वर से प्रीति रखने वाला और भौतिक जीवन में सफल होता है।
- पूर्ण दृष्टिः एकादश स्थान पर शुक्र की पूर्ण दृष्टि पंचम स्थआन पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक संतान और विद्या से परिपूर्ण और कई पुत्रों का पिता होता है। जातक गुणवान होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि का शुक्र जातक के लिए उन्नति दायक और आय को बढ़ाने वाला होता है। जातक की आय व कर्च दोनों ही अधिक होते हैं। जातक अनुशासित जीवन व्यतीत करता है। शत्रु व नीच राशि में शुक्र होने से आय और यश दोनों में न्यूनता होती है। जातक अनावश्यक खर्च करता है। मित्रों से जातक को हानि उठानी पड़ती है।
- भाव विशेषः एकादश भाव स्थित शुक्र जातक को स्थिर लक्ष्मीवान बनाता है। जातक धनवान, परोपकारी एवं लोकप्रिय होता है। जातक विलासी एवं कामी भी होता है। जातक को पुत्र सुख होता है। जातक कर्म क्षेत्र में महिला पक्ष का विशेष सहयोग मिलता है जिससे आय के क्षेत्र में विशेष उन्नति होती है। ग्यारहवें स्थान में स्थित शुक्र के प्रभाव से कला के विभिन्न क्षेत्रों से जातक धनार्जन करता है। लेखन, कविता लेखन, पाठन, व्यंगकार, नाटक तथा अभिनय में रूचि रखने वाला होता है। प्रायः अभिनेता, अभिनेत्री, फिल्म निर्माता तथा इस क्षेत्र से संबद्ध लोगों की पत्रिका में एकादश शुक्र होता है। प्रायः अभिनेता, अभिनेत्री, फिल्म निर्माता तथा इस क्षेत्र से संबद्ध लोगों की पत्रिका में एकादश शुक्र होता है। श्वेत होता है। श्वेत वस्तुओं तथा रत्नों के व्यापार से भी जातक को लाभ होता है।
शनि के एकादश भाव का फल
- स्वभावः एकादश भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक धनी, विश्वस्त संपत्तिवान, कम मित्रवान विद्वान और बलवान होता है। जातक साहस पराक्रम परिपूर्ण, सम्माननीय, राजनैतिक स्तर पर माननीय, दीर्घायु और प्रभावशाली होता है।
- पूर्ण दृष्टिः एकादश भाव में स्थित शनि की दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक संतान पक्ष से दुखी, संतान विहीन और निम्न कार्यो करने वाला होता है। जातक की विद्या अध्ययन में बाधाएं आती हैं। जातक का व्यवहार निराशावादी होता जाता है। एकादश भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक आत्मकेंद्रित हो जाता है। अपनी प्रगति के लिए वह दूसरों को भी हानि पहुँचाने की भावना रखता है। जातक को क्रोध भी आता है। एकादश भाव में स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को पेट संबंधी कष्ट रहता है। जातक को प्रायः जनावरों से भय रहता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व एवं उच्च राशि में शनि जातक को प्रचुर धन, जमीन, भवन, शासन से सम्मान, विद्या, भाग्य और वाहन सुख देता है। जातक को सफलता जीवन के उत्तरार्ध में मिलती है। मित्र कम पर विश्वासनीय होते हैं। जातक का तन मन और मस्तिष्क स्वस्थ होता है। शत्रु व नीच राशि में शनि होने पर जातक की आय मे निरंतर बाधाएं आती हैं। एकादश भाव में स्थित शनि जातक को मेहनती बनाता है। जातक शनि से संबंधित वस्तुओं यथा लोहा, तेल मशीनरी और खनन के व्यवसायो में सफलता होता है एवं नार्जन करता है।
राहु के एकादश भाव का फल
- स्वभावः दसम भाव में स्थित राहु के प्रभाव से जातक भयहीन एवं सोच समझकर कर्च करने वाला होता है। वह स्वभाव से चिंतित, कार्य में समर्थ एवं चतुर होता है। जातक संघर्ष प्रिय होता है। जातक कार्य पूर्ण होने तक शांत नहीं बैठता है।
- पूर्ण दृष्टिः दशमस्थ राहु की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को माता के सुख में कमी होती है। जातक को भूमि, वाहन, इत्यादि भी थोड़े से ही प्राप्त होते हैं।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च् राशि का होने पर जातक राजमान्य, धनी और भूमि, भवन का सुख प्राप्त करता है एवं उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं। शत्रु राशि का होने पर राहु के दुष्प्रभाव से जातक चरित्रहीन, झगडाडलू, कामी, बेईमान, वाचाल होता है और उसे काम का उचित परिणाम प्राप्त नहीं होता। प्रायः नौकरी या व्यवसाय में परिवर्तण होता है। वह अस्थिर, भाग्यहीन, माता और पिता के लिये कष्ट कारक होता है।
- भाव विशेषः दशमस्थ राहु विशेष व शुभ स्थिति में राजयोग कारक होता है। दशम राहु के प्रभाव से जातक की कार्यशैली अव्यवस्थित एवं अनियमित रहती है। दसवे भाव पर स्थित राहु जातक को आलसी बनाता है। जातक क्लेश कारक होता है।
केतु के एकादश भाव का फल
- स्वभावः एकादश भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक धनी, प्रसिद्ध, उच्च अधिकारी, सफलता और लाभ प्राप्त करने वाला होता है। वह अच्छे कर्म करता है और सर्वत्र आदर सम्मान प्राप्त करता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में केतु के स्थिति होने से जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक को कम प्रयासों से अधिक सफलता प्राप्त होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित केतु के प्रभाव से पुत्र सुख में न्यूनता होती है। मित्रों से धोखा होता है और कई अवसर हाथ से निकलते हैं। जातक की आय के अर्जन में भी कठिनाइयाँ होती हैं।
- भाव विशेषः एकादश भाव में स्थित केतु अरिष्टनाशक होता है। जातक की स्थिर आमदानी होती है। जातक की जरूरते केतु के प्रभाव से पूर्ण होती है। ईश्वर की कृपा जातक पर सदैव होती है।
द्वादश भाव में 9 ग्रहों के फल
ज्योतिष शास्त्र में द्वादश भाव को व्यय भाव कहा जाता है। यह भाव हानि, खर्च, विदेश यात्रा, मोक्ष, आध्यात्मिकता, बिस्तर सुख, कैद या अस्पताल जैसे जीवन के छिपे हुए पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है। द्वादश भाव यह दर्शाता है कि जातक को जीवन में आर्थिक या मानसिक स्तर पर किस प्रकार के व्यय और त्याग का सामना करना पड़ेगा।
सूर्य के द्वादश भाव का फल
स्वभावः जातक स्वभाव से झगड़ालू अपव्ययी एवं आलसी होता है। वह मित्रहीन एवम् बुद्धिहीन होता है। जातक गुप्त एवं परामानसिक विज्ञान में रूचि रखता है।
पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव में स्थित सूर्य की दृष्टि छठवेम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के शत्रुओं का विनाश होता है परंतु जातक के मित्रों से भी मधुर संबंध नही होते।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में द्वादश भाव सूर्य जातक को धैर्य एवं सहन शक्ति प्रदान करता है। जातक को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जातक स्वतंत्र विचार वाला और धन कमाने के प्रति आकर्षित होता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक घमंडी, भाग्यहीन, सत्ता पर स्थित लोगों से कष्ट प्राप्त करने वाला, प्रियजनों की मृत्यु से और शत्रुओं से दुखी होता है।
भाव विशेषः द्वादश भाव में स्थित सूर्य का प्रभाव जन्म पत्रिका में प्रायः शुभकारी नही होता है जातक अपने हाथों से अपनी हानि करता है। जातक को बायें नेत्र तथा मस्तक में रोग होता है। जातक आलसी एवं उदासीनता होता है। जातक निश्चित, लापरवाह, साहसी एवं लंबी यात्राएँ करने वाला होता है।
चन्द्रमा के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः बारहवें भाव में स्थित चन्द्रमा के प्रभाव से जातक एकान्त प्रिय, चिंताशील, आलसी, मिथ्यावादी, अधिक व्ययी और स्वार्थी होता है।
- पूर्ण दृष्टिः चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि छठे स्थान पर पड़ती है जिससे जातक शत्रुओं एवं कर्जो से दुःख और कष्ट पाता है। प्रायः गुप्त रोग भी जातक की परेशानी का कारण होते हैं। जातक का व्यय अधिक और व्यर्थ होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र राशि में द्वादश भाव का चंद्रमा जातक सेव्यय उपयोगी वस्तुओं के लिए अधिक कराता हैं। मित्र राशि में स्थित चंद्रमा जातक को मृदुभाषी भी बनाता है। शत्रु राशि में द्वादश भाव में चंद्रमा स्थित होने से जातक एकांतप्रिय एवं चिताग्रस्त होता है। जातक को कफ संबंधी रोग भी होते हैं।
- भाव विशेषः द्वादश भाव में चन्द्रमा होने पर जातक अपने व्यवसाय व नौकरी में चन्द्रमा की दशा में धूमकेतु की तरह चमकता है और उच्चकोटि की प्रसिद्धि प्राप्त करता जातक प्रायः चंचल स्वभाव का होता है। जातक को भ्रमण करना अच्छा लगता है।
मंगल के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः बाहरवें भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक झगड़ालू, जिद्दी, अपव्यय करने वाला और नीच कर्म करने वाला होता है। जातक पराये धन की लालसा रखता है। वह चंचल स्वभाव का क्रोधी प्रवृति वाला तथा दुर्व्यसनी होता है। जातक बचपन से ही दूसरे बच्चों पर अपना रौब जमाता है। जातक प्रशंसा न मिलने पर जल्दी ही निराश हो जाता है।
- पूर्ण दृष्टिः बारहवें भाव में स्थित मंगल की दृष्टि छठे भाव पर होती है। जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं से कष्ट पाता है। जातक की धर्म-कर्म में आस्था कम होती है। जातक ऋणी भी होता है। जातक को नेत्र संबंधी परेशानियाँ होती है। जातक का व्यय अधिक होता है। बारहवें भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि तृतीय भाव पर होती है। जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी, भाग्यवान होता है किंतु उसे भाईयों के सुख में कमी होती है। बारहवें भाव में स्थित मंगल की अष्टम दृष्टि सप्तम भाव पर होती है जिसके प्रभाव से प्रायः जातक की उसकी पत्नी से अनबन बनी रहती है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव के दुर्गुण कम होते हैं। जातक प्रसन्न, बलवान, धनी, भ्रमण प्रिय, यात्री तीब्र बुद्धि, एकाग्रिचित्त और सुखी होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर में जातक अनेक प्रकार के नुकसान उठाता है। जातक की जेल जाने की संभावना होती है अथवा अस्वस्थ होने पर उसे अस्पताल जाना पड़ता है।
- द्वादश भाव विशेषः द्वादश स्थित मंगल से जातक का दांपत्य जीवन कष्टप्रद रहता है एवं उसकी पत्नी से अनबन रहती है। द्वादश भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को बाँयी आंख में कष्ट होता है। जातक का बचपन कष्टप्रद होता है। जातक को चोरों, हथियारों और शत्रुओं से कष्ट प्राप्त होता है। शुभ मंगल के प्रभाव में छोटी-छोटी चोटें लगती हैं पर अशुभ मंगल के प्रभाव से हड्डी टूटने के आसार ज्यादा होते हैं। जातक के अनेक गुप्त शत्रु होते हैं।
बुद के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में स्थित बुद के प्रभाव से जातक स्वभाव से आलसी, क्रूर, विद्याहीन, कठोर भाषी और दुःखी होता है। जातक का चित्त चंचल होता है। उसे राजदंड का भय होता है।
- सप्तम दृष्टिः द्वादश भाव में स्थित बुध की सप्तम छठवें स्थान पर होने से जातक को उसके नौकरों के कारण हानि उठानी पड़ती है।
- मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र या उच्च राशि में जातक धनी पर अपव्ययी होता है। वह लोगों का नेता बनता है। जातक में प्रतिनिधित्व के गुण पाए जाते हैं। जातक ज्ञानी और पढ़ा लिखा होता है। जातक धन शुभ कार्यो में खर्च करता है। शत्रु व नीच राशि में जातक को अशुभ फल प्राप्त होते हैं। जातक दुखी और अपव्ययी होता है। प्रायः बीमारियों में जातक का धन व्यय होता है। परिवारजनों से कहल होती है।
- भाव विशेषः द्वादश भाव से जातक के आत्म विवेचना, आध्यात्मिक प्रभाव, एकाग्रता, समझ और आत्म परीक्षा की विवेचना होती है। जातक की अंतः प्रेरणा ही उसे सफ लता की ओर अग्रसर करती है। जातक आरोपों से घिरा रहता है। प्रायः जातक अपने शत्रु स्वयं बनाता है। जातक कई चिंताओं, विद्याओं और अपव्यय से परेशान होता है। जातक की रूचि रसायन, तिलिस्म और गुप्त विद्याओं में भी होती है।
गुरू के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में गुरू के प्रभाव से जातक बिना सोचे विचारे अत्यधिक व्यय करता है। जातक का व्यय प्रायः शुभ कार्यो और परोपकार में होता है। जातक स्वभाव से अकर्मण्य, योगाभ्यासी, शास्त्रज्ञ, लोभी, मितभाषी, प्रवासी और सुखी चित्त वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव में स्थित गुरू की सप्तम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक ऋणमुक्त व शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। द्वादशस्थ गुरू की पंचम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिससे जातक को माता व भूमि, भवन, वाहन इत्यादि का सुख प्राप्त होता है। द्वादशस्थ गुरू की नवम पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिससे जातक दीर्घायु होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः उच्च, मित्र या स्वराशि का होने पर जातक को अपार संपदा मिलती है, परंतु स्वयं के परिवारजनों से विवाद होते हैं। शत्रु व नीच राशि में स्थित होने पर जातक पाप कर्म ,करता है। जातक को शत्रुओं द्वारा हानि होती है। जातक को अपनी लापरवाही से हानि उठानी पड़ती है।
- भाव विशेषः द्वादश गुरू के प्रभाव से जातक प्रबल देश भक्त होता है। जातक को गुप्त संगठनों से लाभ होता है। जातक अहंकारी होता है। जातक की शत्रुओं पर विजय होती है। जातक को ज्ञान या शिक्षा का उचित लाभ नहीं मिलता है। जातक कई चिन्ताओं से ग्रसित, संचित धन नष्ट करने वाला क्रोधी और धूर्त होता है। द्वादश गुरू के प्रभाव से जातक आलसी होता है। जातक निरंतर यात्रा करता रहता है।
शुक्र के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक अत्यंत विलासी पर भाग्यशाली होता है। जातक मनोरंजन ओर स्त्रियों पर व्यय करता है। जातक अत्यंत धनी होता है। साहसी और नित्य नये कार्य करना चाहता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव पर स्थित शुक्र की पूर्ण दृष्टि छठे स्थान पर पड़ने से जातक भाग्यशाली एवं शत्रुओं पर विजय पाने वाला होता है। जातक गुप्त रोगी और वीर्य विकारी होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि का शुक्र शुभ फलदायक होता है। जातक को धन, यश और अन्य सुख प्राप्त होता है। शत्रु व नीच राशि में शुक्र होने पर जातक गरीब, कामी व्यवसायी, दुर्बुद्धि और स्वार्थी होता है। उसकी आय से व्यय अधिक होता है। अतः वह जमीन में कई प्रकार के कष्ट उठाता है।
- भव विशेषः द्वादश भाव में स्थित शुक्र के प्रभाव से जातक राजा के समान उच्च अधिकार प्राप्त होता है। धन, मान सम्मान आदि प्रचुर मात्रा में जातक को प्राप्त होता है। जातक क्षणिक आवेश में बिना सोचे समझे कार्य करता है अतः मानसिक तनाव होते है। सेक्स में जातक विशेष रूचि रखता है। जातक व्यसनी होता है। जातक कटुभाषी, अविश्वाषी एवं आलसी होता है।
शनि के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में शनि के प्रभाव से जातक का स्वभाव विवेकहीन, अपव्ययी, चिंता से ग्रस्त, दुखी, झगड़ालु एवं दुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करने वाला होता है। वह एकांत प्रिय, गुप्त विद्याओं में रूचि रखने वाला और प्रेम संबंधो से असंतुष्ट होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव में स्थित शनि की पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अस्वस्थ होता है। उसेशत्रु से कष्ट होता है। धन संग्रह पारिवारिक सुख एवं भाग्य में बाधाएं आती है। द्वादश भाव में स्थित शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को आमदनी में तथा बचत में कष्ट होते हैं। व्यवसाय होने पर बाधाएँ आती है। सर्विस होने पर प्रमोशन देर से होता है। धन संग्रह भी नही हो पाता है। पारिवारिक सुख में न्यूनता होती है। जातक की शिक्षा-दीक्षा में बाधा आती है। द्वादश भाव में स्थित शनि की दशम पूर्ण दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को भाग्य में रूकावटें आती रहती हैं। जातक को सफलता के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र, उच्च या स्व राशि में स्थित शनि के प्रभाव से जातक के व्यय में जातक को शत्रुओं से हानि, अपमान चोरी, दुर्घटना, अग्निकाण्ड इत्यादि से भय होता है।
- भाव विशेषः 12वें भाव में स्थित शनि जातक के सांसारिक पक्ष के लिये अशुभ होता है। पर जातक का धार्मिक जीवन सुखद होता है। वह आध्यात्मिक स्तर पर प्रगति अवश्य करता है। द्वादश भाव स्थित शनि के प्रभाव से जातक के शत्रु या तो होते ही नही एवं होने पर स्वयं नष्ट हो जाते हैं। जातक व्यर्थ पैसा खर्च करने वाला एवं व्यसनी होता है। जातक कटुभाषी व अविश्वासी होता है। द्वादश भाव में स्थित शनि जातक की माता के लिए कष्टकारक होता है।
राहु के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में स्थित राहु जातक के लिये अशुभ, प्रारंभिक अवस्था में बीमार और दुखी पर बाद में सफलता प्राप्त करता है। जातक धोखेबाज, अपव्ययी, संबंधियों से झगड़ा करने वाला होता है।
- पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव स्थित राहु की पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपने शत्रुओं पर हावी रहता है। जातक अचानक बड़े कर्जे में डूब जाता है।
- मित्र/शत्रु राशिः द्वादश भाव स्थित मित्र व उच्च राशि में राहु के होने पर जातक गुप्त विद्याओं विशेषकर तंत्र शास्त्र में सफलता प्राप्त करता है एवं जातक को गुप्त स्रोतों से आय और अप्रत्याशित लाभ होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर अशुभ प्रभाव में जातक की संपत्ति का नाश, प्रेम संबंधो में हानि होती हैं। जातक व्यर्थ ही व्यय करता रहता है।
- भाव विशेषः जातक अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ नष्ट करता है। जातक प्रायः या6 करने वाला होता है। जातक विवेकहीन, मंदबुद्धि एवं मूर्ख होता है। द्वादश राहु के प्रभाव से जातक व्यर्थ चिंता करता है। जातक किसी के अधीन होता है। जातक अत्यंत परिश्रमी होता है।
- केतु प्रायः एक छाया ग्रह माना जाता है किंतु तृतीय स्थान में, उच्च का अथवा स्व राशि में यह शुभ फलदायक होता है। केतु जन्म पत्रिका में जिस ग्रह के साथ स्थित होता है उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाता है। केतु प्रेम संबंधो, गलत विचारों, असंतोष, भय, कुंठाएं, कामुख स्वभाव, अनैतिक संबंधो, कर्कष वाणी, तीर्थयात्रा, संतान, सुख, दुर्घटना, विलंब और बाधाओं का प्रतिनिधित्व करते है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार केतु वृश्चिक राशि में स्व राशिस्थ, वृष राशि में नीच का और कन्या राशि में मूल त्रिकोण में स्थित होता है।
केतु के द्वादश भाव का फल
- स्वभावः द्वादश भाव में स्थित केतु के प्रभाव से जातक सुंदर आंखो वाला, मृदुभाषी, सुरीले गले वाला, उच्च शिक्षा प्राप्त, राजा के समान कवि और साहित्यकार होता है।
- मित्र/शत्रु राशिः मित्र व उच्च राशि में होने पर केतु के प्रभावों में वृद्धि होती है। जातक कार्यकुशल तथा भाग्यशाली होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक अवै संबंधों में लिप्त होता है। जातक अनैतिक कार्यो में धन का व्यय करता है।
- भाव विशेषः द्वादश भाव में शुभ राशि में स्थित केतु को मोक्ष दायक माना जाता है। जातक तंत्र व गुप्त विद्याओं के प्रचार से धन अर्जित करता है। जातक चंचल एवं दूसरों पर विश्वास नहीं करता है। जातक धूर्त होता है एवं लोगों को ठग कर व गुमराह कर धन अर्जित करता है जातक अपने गुप्त शत्रुओं से परेशान रहता है।