आइए जानते हैं शरीर के 7 चक्रों के बारे में – शरीर के चक्र
शरीर में मूल रूप से 7 चक्र होते हैं. इन्हें सृष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र माना जाता है. आइए जानते हैं इन चक्रों के बारे में.
मूलाधार चक्र
– यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से के आसपास होता है.
– इस चक्र को कुलकुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है , इसका एक और नाम भौम मंडल भी है.
– यह चक्र चौकोर तथा उगते हुये सूर्य के समान स्वर्ण वर्ण का है.
– भौतिक रूप से सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं.
– आध्यात्मिक रूप से धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है.
– इसका बीजाक्षर है – “लं”
– व्यक्ति के अन्दर अत्यधिक भोग की इच्छा और आध्यात्मिक इच्छा इसी चक्र से आती है
स्वाधिष्ठान चक्र
– जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है,
– इस चक्र का स्वरुप अर्ध-चन्द्राकार है, यह जल तत्त्व का चक्र है
– इस चक्र से निम्न भावनाएँ नियंत्रित होती हैं – अवहेलना,सामान्य बुद्धि का अभाव,आग्रह,अविश्वास,सर्वनाश और क्रूरता
– यह चक्र छह पंखुड़ियों का है
– इसी चक्र से व्यक्ति के अन्दर काम भाव और उन्नत भाव जाग्रत होता है
– इस चक्र का बीज मंत्र है – “वं”
– इस चक्र को तामसिक चक्र माना जाता है.
मणिपुर चक्र
– यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है.
– इस चक्र की आकृति त्रिकोण है, और रंग रक्त के समान लाल है.
– यह चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है , यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचरण होता है.
– यह अग्नि तत्त्व को नियंत्रित करता है और राजसिक गुण से संपन्न है.
– यह चक्र १० पंखुड़ियों का है
– इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं – लज्जा,दुष्ट भाव,ईर्ष्या,सुषुप्ति,विषाद,कषाय,तृष्णा,मोह,घृणा,भय
– मन या शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है.
– इस चक्र का बीज मंत्र है- “रं”
अनाहत चक्र
– ह्रदय के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर स्थित चक्र को अनाहत चक्र कहा जाता है.
– आध्यात्मिक दृष्टि से यहीं से साधक के सतोगुण की शुरुआत होती है. इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएँ और अनुभूतियों की शुरुआत होती है.
– इस चक्र को सौर मंडल भी कहा जाता है. इसका वर्ण हल्का हरा है.
– इसका आकार षठकोण का है.
– इस चक्र में १२ पंखुड़ियां हैं
– इस चक्र से निम्न प्रकार की वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं – आशा,चिंता,चेष्टा,ममता,दंभ,विवेक,विकलता,अहंकार,लोलता,कपटता,वितर्क,अनुताप
– व्यक्ति की भावनाएँ और साधना की आंतरिक अनुभूतियाँ इस चक्र से सम्बन्ध रखती हैं.
– मानसिक अवसाद की दशा में इस चक्र पर गुरु ध्यान और प्राणायाम करना अदभुत परिणाम देता है.
– इस चक्र का बीज मंत्र है – “यं”
विशुद्ध चक्र
– कंठ के ठीक पीछे स्थित चक्र है – विशुद्ध चक्र
– यह चक्र और भी उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूतियाँ देता है , सारी की सारी सिद्धियाँ इसी चक्र में पायी जाती हैं.
– यह चक्र बहुरंगा है और इसका कोई एक ख़ास स्वरुप नही है.
– यह चक्र आकाश तत्त्व और आठों सिद्धियों से सम्बन्ध रखता है.
– इस चक्र की १६ पंखुड़ियां हैं
– कुंडली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र से आती है
– इसका बीज मंत्र है – “हं”
– इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं – भौतिक ज्ञान,कल्याण,महान कार्य,ईश्वर में समर्पण,विष और अमृत
– इस चक्र के गड़बड़ होने से वैज्ञानिक रूप से थाईराइड जैसी समस्याएँ और वाणी की विकृति पैदा होती है
– संगीत के सातों सुर इसी चक्र का खेल हैं
आज्ञा चक्र
– दोनों भौहों के बीच स्थित चक्र को आज्ञा चक्र कहा जाता है.
– यह दो पंखुड़ियों वाला है , एक पंखुड़ी काले रंग की और दूसरी पंखुड़ी सफ़ेद रंग की है.
– सफ़ेद पंखुड़ी ईश्वर की ओर जाने का प्रतीक है , और काली पंखुड़ियों का अर्थ संसारिकता की ओर जाने का है .
– इस चक्र के दो अक्षर और दो बीज मंत्र हैं – ह और क्ष
– इस चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन से ऊपर होता है.
– इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं.
– इसी चक्र पर इडा,पिंगला और सुषुम्ना आकार खुल जाती हैं और मन मुक्त अवस्था में पंहुँच जाता है.
सहस्त्रार चक्र
– मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से पर जो चक्र स्थित होता है , उसे सहस्त्रार कहा जाता है.
– यह सहस्त्र पंखुड़ियों वाला है , और बिलकुल उजले सफ़ेद रंग का है.
– इस चक्र का न तो कोई धयान मंत्र है और न ही कोई बीज मंत्र , इस चक्र पर केवल गुरु का ध्यान किया जाता है.
– कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुँचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता पाती है और मुक्ति की अवस्था में आ जाती है.
– इसी स्थान को तंत्र में काशी कहा जाता है
– इस स्थान पर सदगुरु का ध्यान या कीर्तन करने से व्यक्ति के मुक्ति मोक्ष का मार्ग सहज हो जाता है.