Jayaparvati Vrat Begin 3rd july
जया पार्वती व्रत हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। इसे विजया-पार्वती व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह मूल रूप से मालवा क्षेत्र में किया जाता है। यह व्रत मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है। इस व्रत का रहस्य भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को बताया था। इस व्रत को कुछ क्षेत्रों में सिर्फ 1 दिन के लिए, तो कुछ जगहों पर 5 दिन तक मनाया जाता है। बालू रेत का हाथी बना कर उन पर 5 प्रकार के फल, फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
जानें क्या है इस व्रत की पूजन विधि
- आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- तत्पश्चात व्रत का संकल्प करके माता पार्वती का ध्यान करें।
- पूजा के स्थान पर शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- फिर भगवान शिव-पार्वती को कुंमकुंम, शतपत्र, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल चढ़ाकर पूजा करें।
- ऋतु फल तथा नारियल, अनार व अन्य सामग्री अर्पित करें।
- अब विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें।
- माता पार्वती का स्मरण करके स्तुति करें।
- फिर मां पार्वती का ध्यान धरकर सुख-सौभाग्य और गृहशांति के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें।
- कथा सुनें और आरती करके पूजन को संपन्न करें।
- कथा और आरती के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाएं और इच्छानुसार दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें।
- अगर बालू रेत का हाथी बनाया है तो रात्रि जागरण के पश्चात उसे नदी या जलाशय में विसर्जित करें।
व्रत का खाना
इस व्रत में नमक खाना पूरी तरह से वर्जित माना जाता है। इसके अलावा गेहूं का आटा, सभी तरह की सब्जियां भी नहीं खानी चाहिए। व्रत के दौरान फल, दूध, दही, जूस, दूध से बनी मिठाइयां खा सकते हैं। व्रत के आखिरी दिन मंदिर में पूजा के बाद नमक, गेहूं के आटे से बनी रोटी या पूरी और सब्जी खाकर व्रत का उद्यापन किया जाता है।