हिन्दू विवाह एक संस्कार ~ Karmic Coach
विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है – विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिन्दू विवाह के नाम से जाना जाता है। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
शास्त्रों में आठ तरह के विवाहों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से पांच तरह के विवाहों को बेहद ही अशुभ माना गया है। ब्रह्म, दैव, आर्श, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच आठ प्रकार के विवाहों के नाम हैं। इन आठों विवाह में से ब्रह्म विवाह को सबसे उत्तम माना जाता है। ये आठ विवाह क्या होते हैं और क्या खासियत है आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं।
कौन सा विवाह करना है सबसे उचित ?
ब्रह्म विवाह
दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोग्य वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना ‘ब्रह्म विवाह’ कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का “अरेंज मैरिज” ‘ब्रह्म विवाह’ का ही रूप है। ये विवाह अन्य विवाह से से सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना ‘दैव विवाह’ कहलाता है। इस विवाह में ऋत्विज को वर के रुप में चुना जाता है। इसके बाद इन्हें कन्या पक्ष की और से आभूषण भेंट करते हुए कन्या का हाथ सौंप दिया जाता है।
आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना ‘अर्श विवाह’ कहलाता है। इस तरह के विवाह में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष को आभूषण और गाय-बैल दिए जाते हैं।
प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना ‘प्रजापत्य विवाह’ कहलाता है।दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पैसों के लालच में माता-पिता अपनी कन्या का विवाह जबरदस्ती किसी धनवान लड़के से करवा देते हैं।
गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना ‘गंधर्व विवाह’ कहलाता है। इस विवाह को प्रेम विवाह भी कहा जा सकता है।
असुर विवाह
कन्या को ख़रीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना ‘असुर विवाह’ कहलाता है। आज भी भारत के कई ऐसे हिस्से हैं जहां पर गरीब घर की कन्याओं के माता पित को पैसे देकर विवाह किया जाता है।
राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना ‘राक्षस विवाह’ कहलाता है।
पैशाच विवाह
इस तरह के विवाह में कन्या से शारीरिक संबंध बनाने के बाद उससे विवाह किया जाता है। यहां तक की इसमें कन्या के परिजनों की हत्या भी कर दी जाती है। लड़की को बहला-फुसला कर भगा ले जाना पिशाच विवाह कहलाता है। बलात्कार आदि के बाद सजा आदि से बचने के लिए विवाह करना, जैसा कि आजकल अखबारों में अक्सर पढ़ने को मिलता है, भी पिशाच विवाह की श्रेणी में आता है। इस विवाह को सभी आठों प्रकार के विवाह में सबसे बेकार विवाह माना जाता है।
अधिक जानकारी के लिए देखिये यूट्यूब लिंक : https://youtu.be/pIWz6SDUvyU
*नारद पुराण के अनुसार, सबसे श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्रह्म ही माना जाता है। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार प्राजापत्य विवाह भी ठीक है।