सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश – 16 सितंबर, 2020
गोचर का स्वरूप और उसका आधार
आकाश में स्थित ग्रह अपने मार्ग पर अपनी गतिनुसार भ्रमण करते हैं। इस भ्रमण के दौरान वे एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में ये ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है। जन्म पत्रिका इसी आधार पर बनाई जाती है। किंतु जन्म समय की स्थिति तो उस जातक का रूप, बनावट, भाग्य इत्यादि निर्धारित करती है। जन्म पत्रिका स्थिर होती है जिसमें ग्रहों की जन्म के समय की स्थिति होती है। किंतु ये ग्रह घुमते रहते हैं। इसलिए इनका तात्कालिक प्रभाव जानने के लिए जन्म पत्रिका में इनकी तात्कालिक स्थिति की गणना गोचर कहलाती है। गो शब्द संस्कृत भाषा की गम् से बना है और इसका अर्थ है चलने वाला। आकाश में करोड़ों तारे हैं। वे सब प्रायः स्थिर है। तारों से ग्रहों की पृथक्ता को दर्शाने के लिए उनका नाम गो अर्थात् चलने वाला रखा गया। चर शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन है, तो गोचर शब्द का अर्थ हुआ-ग्रहों का चलन, अर्थात् चलना एवं अस्थिर अवस्था में ग्रह का परिवर्तन प्रभाव।
गोचर ग्रहों के प्रभाव उनकी राशि परिवर्तन के साथ-साथ बदलते रहते हैं। जातक पर चल रहे वर्तमान समय की शुभाशुभ जानकारी के लिए गोचर विचार सरल और उपयोगि साधन है। वर्ष की जानकारी गुरू और शनि से, मास की सूर्य से और प्रतिदिन की चंद्र गोचर से की जा सकती है।
इस प्रकार जन्म पत्रिका में योग जातक के शुभ-अशुभ का अनुमान बताते हैं। दशाकाल उस शुभ-अशुभ की प्राप्ति का एवं गोचर उसकी प्राप्ति व उपयोग का आभास कराते हैं।
भाग्यफल में तो गोचर अपनी ओर से कुछ जोड़-तोड़ नहीं कर सकता है। गोचर उचित दशा आने के पहले भी फल नहीं दे सकता। बढ़िया से बढ़िया बीज अच्छी से अच्छी मिट्टी में बोने के बावजूद सही पर उचित मात्रा में पानी नहीं मिलने के कारण ठीक प्रकार से फल नही दे पाता, सारा का सारा आयोजन धरा का धरा रह जाता है, उसी प्रकार अच्छा से अच्छा योग सुंदर से सुंदर दशा आने पर भी तब तक पूरी तरह फल नहीं दे पाता जब तक उचित गोचर न हो। उचित गोचर के अभाव में सारा गुड़ गोबर या मिट्टी ही जानिये।
सूर्य का गोचर में फल
सूर्य चंद्रमा से तृतीय, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में गोचर वश पहुंचता है तब शुभ फल करता है। शेष भावों में सूर्य का फल सामान्य व अशुभ होता है।
चंद्र लग्न में जब गोचर का सूर्य जाता है तब धन का नाश होता है। जातक के मान सम्मान में कमी आती है। उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं मिलता। जातक का बिना किसी उदेश्य के भ्रमण होता है और उसे अपने परिवार से अलग होना पड़ता है। संबंधियों, मित्रों और स्वजनों से झगड़ा होने के कारण मानसिक व्याथा रहती है। अकारण यात्रा, थकान, चिड़चिड़ाहट, रोग इत्यादि से जातक परेशान रहता है।
चंद्र लग्न से द्वितीय स्थान में जब सूर्य गोचर में होता है तब दुष्ट और बुरे कर्म वाले लोगों से जातक की मुलाकात होती है। जातक के स्वभाव में धूर्तता तथा नीचता आती है। व्यापार और धन-संपत्ति की हानि का भय रहता है। मित्रों और संबंधियों से झगड़ा होता है और जातक का पुरा समय सुख रहित व्यतीत होता है।
चंद्र लग्न से तृतीय स्थान में जब सूर्य गोचर वश आता है तो जातक को रोगों से मुक्ति सुख एवं अन्य शुभ फल जातक को प्राप्त होते हैं। सज्जनों एवं उच्च राज्यधिकारियों से जातक के संबंध बनते हैं। पुत्रों तथा मित्रों से जातक को धन लाभ तथा सम्मान प्राप्त होता है। शत्रुओं की पराजय होती है तथा जातक धन तथा मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। इस अवधि में प्रायः जातक को उच्च पद की प्राप्ति होती है। जातक को इन शुभ फलों के प्राप्त होने से अहंकार होता है। भाईयों से जातक का विछोह भी होता है।
चंद्र से चतुर्थ स्थान में जब गोचर का सूर्य जाता है तब जातक को मानसिक और शारीरिक व्यथा रहती है। घरेलू झगड़ों के कारण जातक को सुखों में कमी आती है। जमीन एवं जायदाद संबंधी अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है। यात्रा में असुविधायें होती है। जातक को अन्य लोग परेशान करते हैं। जातक के विवाहित सुख में भी अड़चन आती है एवं मानहानि की संभावनाएं रहती हैं।
चंद्र से पंचम भाव में गोचर का सूर्य जब जाता है जब मानसिक भ्रमण खासतौर से उत्पन्न होता है। जातक को शारीरिक और मानसिक शक्ति में कमी आती है। धनहानि भी हो सकती है। जातक को और उसकी संतान को रोग उत्पन्न होता है। राज्यधिकारियों से वाद-विवाद बढ़ता है। यात्रा में दुर्घटनाएं हो सकती है। जातक दीनता का अनुभव करता है। जातक बैचेन एवं व्याकुल रहता है।
चंद्रमा से छठे स्थान में सूर्य जब गोचर में आता है तब जातक के कार्य सिद्ध होते हैं एवं उसे और सुख की प्राप्ति होती है। अन्न-वस्त्र आदि का लाभ जातक को होता है। शत्रुओं पर जातक को विजय प्राप्त होती है। जातक के रोगों का नाश होता है। राज्याधिकारियों से जातक लाभ प्राप्त करता है। जातक के पराक्रम में वृद्धि होती है।
चंद्र से सातवें स्थान में सूर्य के जाने से दाम्पत्य जीवन में वैमनस्यता की उत्पत्ति होती है। जातक के स्त्री और पुत्र बीमार रहते हैं। कार्यो में असफलताएं प्राप्त होती हैं। व्यवसाय में बाधायें उत्पन्न होती है। कष्टकारी यात्राएं करनी पड़ती हैं। धन और मान हानि के कारण जातक के मन में क्लेश रहता है।
चंद्र से अष्टम भाव में सूर्य के जाने पर जातक का झगड़ा होता है तथा शरीर में पीड़ा रहती है। बवसीर, अपच आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। राज भय होता है। जातक का अधिक खर्च होता है।
चंद्र से नवम स्थान में गोचरवश जब सूर्य जाता है तब जातक की कांति का क्षय, झूठा आरोप और बिना कारण धन की हानि होती है। जातक की आय में कमी होती है।
चंद्र से दशम भाव में सूर्य के जाने पर धन, स्वास्थ्य, मित्र आदि का सुख प्राप्त होता है। राज्याधिकारियों और प्रतिष्ठित लोगों से जातक की मित्रता बढ़ती है। जातक को लाभ प्राप्त होता है। प्रत्येक कार्य में जातक को सफलता मिलती है तथा पदोन्नति का सुअवसर प्राप्त होता है।
चंद्रमा से एकादश भाव में सूर्य के जाने से जातक को लाभ, धनप्राप्ति, उत्तम भोजन, नवीन पद और बड़ों के अनुग्रह की प्राप्ति होती है। जातक का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसके यहाँ आध्यात्मिक एवं मांगलिक कार्य होते हैं। जातक को पिता व अन्य बड़े लोगों से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
चंद्र से द्वादश भाव में गोचर में सूर्य के आ जाने से जातक का दूर देश का भ्रमण होता है। कार्य एवं पद की हानि होती है। व्यय अधिक रहता है। कई प्रकार की कठिनाइयां झेलनी पड़ती है। ज्वर आदि रोग उत्पन्न होते हैं। पेट में अधिक गड़बड़ रहती है। राज्य की ओर से विरोध होता है। आंखों में कष्ट की संभावना रहती है।