सम्पूर्ण संतुलन :- श्री श्री रवि शंकर
जो व्यक्ति स्वतंत्र हैं, उन्हें यह खेद है कि उनमें अनुशासन नहीं। वे बार-बार प्रतिज्ञा करते हैं कि वे कुछ संयम में रहेंगे।
जो व्यक्ति नियंत्रण में रहते हैं, वे उसके समाप्त होने का इन्तज़ार करते हैं। अनुशासन अपने – आप में अन्त नहीं, एक साधन है।
उन व्यक्तियों को देखो जिनमें ज़रा भी अनुशासन नहीं है; उनकी अवस्था दयनीय है। अनुशासन-हीन स्वतंत्रता अति दुःखदायी है। और स्वाधीनता के बिना अनुशासन से भी घुटन होती है। सुव्यवस्था में नीरसता है और व्यवस्था तनावपूर्ण होती है। हमें अपने अनुशासन को आजाद व स्वतंत्रता को अनुशासित करना है। जो व्यक्ति हमेशा साथियों से घिरे हैं, वे एकांत का आराम ढूँढते हैं। एकांत में रहने वाले व्यक्ति अकेलापन अनुभव करते हैं और साथी ढूँढते हैं। ठन्ड में रहने वाले लोग गर्म स्थान चाहते हैं; गर्म प्रदेश में रहने वाले पसन्द करते हैं। जीवन की यही विडम्बना है।
प्रत्येक व्यक्ति सम्पूर्ण संतुलन की खोज में है।
सम्पूर्ण सन्तुलन तलवार की धार की तरह है। यह सिर्फ आत्मा में ही पाया जा सकता है।
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