शुक्र का कन्या राशि में प्रवेश – 23 अक्टूबर, 2020
गोचर का स्वरूप और उसका आधार
आकाश में स्थित ग्रह अपने मार्ग पर अपनी गतिनुसार भ्रमण करते हैं। इस भ्रमण के दौरान वे एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में ये ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है। जन्म पत्रिका इसी आधार पर बनाई जाती है। किंतु जन्म समय की स्थिति तो उस जातक का रूप, बनावट, भाग्य इत्यादि निर्धारित करती है। जन्म पत्रिका स्थिर होती है जिसमें ग्रहों की जन्म के समय की स्थिति होती है। किंतु ये ग्रह घुमते रहते हैं। इसलिए इनका तात्कालिक प्रभाव जानने के लिए जन्म पत्रिका में इनकी तात्कालिक स्थिति की गणना गोचर कहलाती है। गो शब्द संस्कृत भाषा की गम् से बना है और इसका अर्थ है चलने वाला। आकाश में करोड़ों तारे हैं। वे सब प्रायः स्थिर है। तारों से ग्रहों की पृथक्ता को दर्शाने के लिए उनका नाम गो अर्थात् चलने वाला रखा गया। चर शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन है, तो गोचर शब्द का अर्थ हुआ-ग्रहों का चलन, अर्थात् चलना एवं अस्थिर अवस्था में ग्रह का परिवर्तन प्रभाव।
गोचर ग्रहों के प्रभाव उनकी राशि परिवर्तन के साथ-साथ बदलते रहते हैं। जातक पर चल रहे वर्तमान समय की शुभाशुभ जानकारी के लिए गोचर विचार सरल और उपयोगि साधन है। वर्ष की जानकारी गुरू और शनि से, मास की सूर्य से और प्रतिदिन की चंद्र गोचर से की जा सकती है।
इस प्रकार जन्म पत्रिका में योग जातक के शुभ-अशुभ का अनुमान बताते हैं। दशाकाल उस शुभ-अशुभ की प्राप्ति का एवं गोचर उसकी प्राप्ति व उपयोग का आभास कराते हैं।
भाग्यफल में तो गोचर अपनी ओर से कुछ जोड़-तोड़ नहीं कर सकता है। गोचर उचित दशा आने के पहले भी फल नहीं दे सकता। बढ़िया से बढ़िया बीज अच्छी से अच्छी मिट्टी में बोने के बावजूद सही पर उचित मात्रा में पानी नहीं मिलने के कारण ठीक प्रकार से फल नही दे पाता, सारा का सारा आयोजन धरा का धरा रह जाता है, उसी प्रकार अच्छा से अच्छा योग सुंदर से सुंदर दशा आने पर भी तब तक पूरी तरह फल नहीं दे पाता जब तक उचित गोचर न हो। उचित गोचर के अभाव में सारा गुड़ गोबर या मिट्टी ही जानिये।
शुक्र गोचरफल
गोचर में शुक्र चंद्र लग्न से प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम, एकादश और द्वादश भाव में शुभ फल करता है। शेष भावों में इसका फल सामान्य व अशुभ होता है।
शुक्र चंद्र लग्न में जब गोचररवश आता है तब सुख और धन की प्राप्ति तथा शत्रु का नाश होता हैं, परंतु जातक कुछ दुराचार भी करता है। विद्या में सफलता प्राप्त होती है। सब प्रकार के आमोद-प्रमोद और वैभव विलास प्राप्त होते हैं। सत्याता की ओर झुकाव बढ़ता है व्यापार में वृद्धि होती है।
शुक्र चंद्र लग्न से द्वितीय भाव में गोचरवश जब आता तब धन की प्राप्ति होती है। जातक स्वास्थ रहता है। जातक नवीन वस्त्र तथा आभूषण प्राप्त करता है। जातक को उत्तम स्त्री सुख मिलता है राज्य की ओर से जातक का मान बढ़ता है। विद्या में जातक उन्नति प्राप्त करता है।
शुक्र चंद्र लग्न से तृतीय भाव में गोचरवश आता है तब जातक के मित्रों की वृद्धि होती है। जातक को धनलाभ होता है। जातक को नौकरों का सुख मिलता है। जातक की मान व प्रतिष्ठ में वृद्धि होती है। भाई व बहन का सुख बढ़ता है। भाई व बहन का सुख बढ़ता है। धर्म में जातक की रूचि बढ़ती है। धर्म में जातक की रूचि बढ़ती है।
शुक्र चंद्र लग्न से चतुर्थ भाव में गोचरवश जब आता है तो जातक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जातक को धन की प्राप्ति होती है। जातक को सुख व ऐशो आराम के साधन प्राप्त होते हैं। संबंधियों से जातक को सहायता प्राप्त होती है।
शुक्र चंद्र से पांचवे भाव में गोचर वश जाता है तो जातक को संतान से सुख की प्राप्ति होती है। जातक को धन लाभ होता है एवं उसका मान सम्मान व प्रतिष्ठा बढ़ती है। मांगलिक कार्य व शुभ समाचार जातक को उत्साहित करते हैं।
शुक्र चंद्र लग्न से छठे भाव में गोचरवश आने से जातक को विरोधियों व आलोचकों से कष्ट प्राप्त होता है। यात्रा कष्टमय होती है एवं शय्या सुख में कमी आती है।
शुक्र चंद्र लग्न से सातवें भाव में गोचरवश आने से जातक के अपमानित होने का भय रहता है। बड़े परिश्रम से जातक आजीविका निर्वाह करता है। जातक को यात्राएं अधिक करनी पड़ती है। जातक का पत्नि से व्यर्थ विवाद होने से मन अशांत होता है।
शुक्र चंद्र लग्न से आठवें भाव में जब गोचरवश आता है तब जातक को धन की प्राप्ति होती है। जातक सुख, ऐश्वर्य एवं धन प्राप्त करता है। विद्या एवं कला में जातक की रूचि बढ़ती है।
शुक्र चंद्र लग्न से नवम भाव में जब गोचरवश आता है तो जातक को भाग्यशाली बनाता है। उत्तम वस्त्र तथा आभूषणों की प्राप्ति से जातक प्रसन्न रहता है। धनलाभ व सफलता जातक को उत्साहित करती है। घर में मांगलिक तथा धार्मिक उत्सव होते हैं। स्त्री द्वारा जातक के भाग्य में वृद्धि होती है।
शुक्र चंद्र लग्न से दशम भाव में गोचरवश आया हो तो जातक को शारीरिक कष्ट व मानसिक चिंता होती है। धन की हानि या व्यय से जातक चिंतित व परेशान रहता है। कार्य व व्यवसाय में प्रायः जातक को रूकावटें आती हैं।
शुक्र चंद्र लग्न से एकादश भाव में जब गोचरवश आता है तब जातक को धनलाभ होता है। जातक को सभी कार्यो में सफलता मिलती है। स्त्री संबंधित सुखों में वृद्धि होती है। जातक प्रसन्नचित रहता है। मित्रों का पूर्ण सहयोग जातक को प्राप्त होता है।
शुक्र चंद्र लग्न से बारहवें भाव में जब गोचरवश आता है तो जातक को धन, अन्न तथा विलास के पदार्थों की प्राप्ति होती है। जातक का धन बढ़ता है, उसका व्यय भी उसी अनुपात में बड़ा रहता है।
शुक्र चंद्र लग्न से बारहवें भाव में जब गोचरवश आता है तो जातक को धन, अन्न तथा विलास के पदार्थों की प्राप्ति होती है। जातक का धन बढ़ता है, उसका व्यय भी उसी अनुपात में बड़ा रहता है।