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ज्योतिष के अनुसार शनि को एक क्रुर ग्रह माना जाता है लेकिन ब्रह्मपुराण के अनुसार शनि ग्रह बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे।

Post Date: November 27, 2019

ज्योतिष के अनुसार शनि को एक क्रुर ग्रह माना जाता है लेकिन ब्रह्मपुराण के अनुसार शनि ग्रह बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे।

शनि सौर परिवार का सबसे सुन्दर ग्रह है।

पौराणिक कथाः शनिदेव भगवान सूर्य और छाया के पुत्र हैं। जैसा कि सर्वविदित है शनि को लोगों और ज्योतिष के अनुसार एक क्रुर ग्रह माना जाता है लेकिन ब्रह्मपुराण के अनुसार शनि ग्रह बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। ये हमेशा श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे रहते थे। युवा होने पर इनके पिता ने चित्ररथ नाम की कन्या से इनका विवाह कर दिया चित्ररथ पतिव्रता, परम साध्वी और तेजस्विनी थी। एक दिन वह पुत्र इच्छा की कामना लिये शनिदेव के पास पहुंची, उस समय शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में डूबे हुए थे। जब काफी इंतजार के बाद शनिदेव जागृत अवस्था में नही आए तो इनकी पत्नी चित्ररथ प्रतीक्षा करके थक हार गई तथा क्रोधित होकर उसने शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से तुम जिसे देख लोगे वह जष्ट हो जाएगा। ध्यान भंग होने पर शनिदेव जे अपनी पत्नी को मनाया लेकिन वह श्राप को वापस लेने में असमर्थ थी तथा अपनी गलती पर उन्हें पश्चाताप ङी हुआ तभी से शनि देवता अपना मस्तक नीचा करने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थेकि उनके कारण किसी व्यक्ति का अनिष्ट हो। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह के रोहिणी शकट भेद करने पर भयंकर अकाल और दुर्भिक्ष की स्थिति निर्मित हो जाती है। इस वातावरण में प्राणियों की मृत्यु निश्चित होती है। महाराज दशरथ के युग में दुर्भिक्ष की स्थिति आनेवाली थी इसलिये उन्होंने शनिदेव के पास जाकर सबसे पहले उन्हें सम्मान स्वरूप प्रमाण किया तत्पश्चात् कर्त्तव्य की रक्षा के लिये शनिदेव से युद्ध किया। शनिदेव उनकी कर्त्तव्यपरायणता से खुस हुए और उन्होंने राजा दशरथ से वर मांगने को कहा। महाराज दशरथ ने वर मांगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि मौजूद हैं तब तक आप शकट भेदन करें। शनिदेव ने उन्हें वर प्रदान कर संतुष्ट कर दिया और इस तरह राजा दशरथ दुर्भिक्ष का सामना करने से बच गए। समस्त राशियों का भ्रमण करने में शनिदेव को तीस वर्ष का समय लग जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोणः शनि की पृथ्वी से दूरी एक अरब सत्ताईस करोड़ पैंतीस लाख दश हजार किलोमीटर (1273510000) है। शनि का व्यास एक लाख बीस हजार पाँच सौ छत्तीस किलोमीटर (120536) है। यह सूर्य से एक अरब त्रियालीस करोड़ पैंतीस लाख किलोमीटर (1433500000) दूर है। यह 5.6 किलोमीटर प्रति सैकेण्ड़ की मन्द गति से सूर्य की एक परिक्रमा 29.5 वर्षो में करता है। अपने अक्ष के गिर्द एक परिक्रमा करने में इसे 10 घंटे 14 मिनट लगते हैं। इसका घनत्व 0.69 ग्राम/सेमी3 और द्रव्यमान 568 X1024 किलोग्राम है। इसका घनत्व इतना कम है कि यह जल पर भी तैर सकता है। इसका गुरूत्व पृथ्वी के समान है। शनि का वायुमंडल गुरू ग्रह की तरह अत्यन्त जहरीली गैसों से निर्मित है। अधिक सर्दी के कारण शनि ग्रह पर जीवन की कोई सम्भावना नही है।

कारकः शनि ग्रह मकर व कुंभ राशियों का अधिपति है। शनि सदैव पाप ग्रह माना जाता है। दुःख, शूल, रोग, मृत्यु, यात्रा, आयु, सर्व राज्य, दास-दासी, शिल्प, शस्त्र और वैराग्य का कारक ग्रह शनि है। बलवान हो तो जातक कुशाग्र बुद्धि, मार्मिक, कठोर, सांवला, रंग, चरपोक, ढृढ़, थोड़ा बोलने वाला, हिसाब किताब से खर्च करने वाला, उद्धयोगी और सभ्य स्वभाव को होता है। शनि निर्बल हो तो जातक संशय युक्त, दुष्ट, अधम एवं क्रोधी स्वभाव को होता है। सब ग्रहों में शनि अधिक पाप फल देने वाला है। शनि डर, उदासीनता और मृत्यु को द्धोतक ग्रह माना जाता है। शनि जहाँ पर हो उस स्थान की वृद्धि करता है, परंतु जिस भाव को देखता है उसकी हानि करता है। पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामी शनि है।

शरीरः शरीर में नसें, स्नायु, पेट एवं वायु का कारक है। दन्त विकार, नाना प्रकार के रोग जो अधिक समय तक रहने वाले हों, संधिवात, पक्षाघात, कुछ बहरापन आदि रोग शनि दर्शाता है। शनि का रंग काला है। शनि की धातु लोहा है।

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