राहु का वृषभ राशि में प्रवेश – 23 सितंबर, 2020
गोचर का स्वरूप और उसका आधार
आकाश में स्थित ग्रह अपने मार्ग पर अपनी गतिनुसार भ्रमण करते हैं। इस भ्रमण के दौरान वे एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में ये ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है। जन्म पत्रिका इसी आधार पर बनाई जाती है। किंतु जन्म समय की स्थिति तो उस जातक का रूप, बनावट, भाग्य इत्यादि निर्धारित करती है। जन्म पत्रिका स्थिर होती है जिसमें ग्रहों की जन्म के समय की स्थिति होती है। किंतु ये ग्रह घुमते रहते हैं। इसलिए इनका तात्कालिक प्रभाव जानने के लिए जन्म पत्रिका में इनकी तात्कालिक स्थिति की गणना गोचर कहलाती है। गो शब्द संस्कृत भाषा की गम् से बना है और इसका अर्थ है चलने वाला। आकाश में करोड़ों तारे हैं। वे सब प्रायः स्थिर है। तारों से ग्रहों की पृथक्ता को दर्शाने के लिए उनका नाम गो अर्थात् चलने वाला रखा गया। चर शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन है, तो गोचर शब्द का अर्थ हुआ-ग्रहों का चलन, अर्थात् चलना एवं अस्थिर अवस्था में ग्रह का परिवर्तन प्रभाव।
गोचर ग्रहों के प्रभाव उनकी राशि परिवर्तन के साथ-साथ बदलते रहते हैं। जातक पर चल रहे वर्तमान समय की शुभाशुभ जानकारी के लिए गोचर विचार सरल और उपयोगि साधन है। वर्ष की जानकारी गुरू और शनि से, मास की सूर्य से और प्रतिदिन की चंद्र गोचर से की जा सकती है।
इस प्रकार जन्म पत्रिका में योग जातक के शुभ-अशुभ का अनुमान बताते हैं। दशाकाल उस शुभ-अशुभ की प्राप्ति का एवं गोचर उसकी प्राप्ति व उपयोग का आभास कराते हैं।
भाग्यफल में तो गोचर अपनी ओर से कुछ जोड़-तोड़ नहीं कर सकता है। गोचर उचित दशा आने के पहले भी फल नहीं दे सकता। बढ़िया से बढ़िया बीज अच्छी से अच्छी मिट्टी में बोने के बावजूद सही पर उचित मात्रा में पानी नहीं मिलने के कारण ठीक प्रकार से फल नही दे पाता, सारा का सारा आयोजन धरा का धरा रह जाता है, उसी प्रकार अच्छा से अच्छा योग सुंदर से सुंदर दशा आने पर भी तब तक पूरी तरह फल नहीं दे पाता जब तक उचित गोचर न हो। उचित गोचर के अभाव में सारा गुड़ गोबर या मिट्टी ही जानिये।
राहु गोचरफल
राहु और केतु ये दोनों ग्रह जिस भावेश के साथ अथवा जिस भाव में रहते है तदनुसार ही फल करते हैं। राहु और केतु केंद्र में हो और त्रिकोणपति से युत या दृष्ट हो तथा त्रिकोण में हो और केंद्रपति से युत या दृष्ट हो तो ये योग कारक हो जाते हैं।
राहु का फल चंद्र लग्न से प्रथम, तृतीय, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम तथा दशम स्थानों में शुभ होता है।
राहु चंद्र लग्न में यदि गोचरवश आवे तो मानसिक चिंता बढ़ती है परंतु इसके साथ साथ सम्मान एवं धन की वृद्धि होती है।
राहु चंद्र लग्न से द्वितीय भाव में जब गोचरवश आये तो अकस्मात् धन हानि हो सकती है। कुटुम्ब जनों से वैचारिक मदभेद तथा विद्या में हानि भी होती है। विरोधी पक्ष प्रबल रहतै है।
राहु चंद्र लग्न से तृतीय भाव में जब गोचरवश आ जावे तो विरोधियों पर विजय, एवं आकस्मिक लाभ होता है।
राहु चंद्र लग्न से चतुर्थ भाव में जब गोचरवश आता है तो सुख का नाश करता है। जातक को घर छोड़कर दूर जाना पड़ सकता है।
राहु चंद्र लग्न से पंचम भाव में जब गोचरवश आ जावे तो अचानक बहुत धन, ऐश्वर्य व मान-सम्मान में वृद्धि करता है। जातक को सट्टे व शेयर के कार्य से लाब होता है। भाग्य में अप्रत्याशित वृद्धि होती है तथा अधिक लाभ की प्राप्ति होती है। राहु की चंद्र पर दृष्टि के कारण मानसिक व्यथा भी होती है।
राहु चंद्र लग्न से छठे भाव में जब गोचरवश आ जाये तो दीर्घकालीन रोगों की उत्पत्ति करता है। जातक के रोगों का पता भी नहीं चल पाता है जिसके कारण उसे सही उपचार करता है। उपलब्ध नही होता है। आय की प्राप्ति में कभी तथा उसके अनुसार धन का हानि होती है।
राहु चंद्र लग्न से सप्तम भाव में जब गोचरवश आता है तो व्यापार में अचानक वृद्धि करता है। यात्रा से जातक को धन का लाभ होता है। जातक को मित्रों से सहायता मिलती है। जातक का मन अशांत रहता है।
राहु चंद्र लग्न से आठवें भाव में जब गोचरवश आता है तो उसे अकस्मात् धन की वृद्धि होती है। जातक की विदेश यात्रा की भी संभावना रहती है। भयंकर रोगों की संभावना भी जातक को रहती है।
राहु चंद्र लग्न से नवम भाव में जब गोचरवश आता है तो अकस्मात लाभ होता है। जातक को मित्रों से सहायता प्राप्त होती है। जातक मानसिक रूप से अशांत रहता है।
चंद्र लग्न से दशम भाव में जब गोचरवश राहु आता है तो जातक की धर्म, दान व पुण्य इत्यादि में रूचि बढ़ती है जिसके कारण वह मान सम्मान प्राप्त करता है। जातक सफलता प्राप्त करता है।
राहु चंद्र लग्न से एकादश भाव में जब गोचरवश आता है तो जातक की शुभ कार्यो में प्रवृत्ति करवाता है। जातक के धन तथा भाग्य की हानि भी इस समय जातक को होती है।
राहु चंद्र लग्न द्वादश भाव में जब गोचरवश आता है तो जातक का व्यय अधिक होता है। जातक के सुख का नाश होता है। जातक के बंधन में पड़ने की संभावना रहती है। धन की हानि भी होती है।