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रत्नों में सेनापति रत्न मूंगा । Sanjay Dara Singh AstroGem Scientist । असली नकली पहचान व धारण करने के लाभ

Post Date: July 29, 2020

रत्नों में सेनापति रत्न मूंगा । Sanjay Dara Singh AstroGem Scientist । असली नकली पहचान व धारण करने के लाभ

रत्नों में सेनापति रत्न मूंगा । Sanjay Dara Singh AstroGem Scientist । असली नकली पहचान व् धारण करने के लाभ

Gemstone Series

रत्नों में मूंगा रत्न का अलग ही महत्व है। इसी ही कारण से यह पुरूषों में खासकर खेल-कूद, राजनीति या किसी भी प्रकार का ऐसा कार्य जिसमें शारीरिक बल का प्रयोग होता हो, उनको यह रत्न धारण करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। मूंगे की एक खासियत यह भी है कि यह मोती की तरह समुंद्र से निकलने वाला रत्न होकर भी समुंद्र के गर्भ में पाये जाने वाले मूंगा नामक जलजीव से बनता है, तथा बहुत ही आकर्षक व कीमती तथा संसार में सबसे पुराने रत्नो में से एक होने के कारण नवरत्नों में अपना एक अहम स्थान रखता है। यह सफेद, गुलाबी, सिंदूरी, नीले, लाल, काले, रंगों में पाये जाते हंै। यह रत्न प्रयोग के साथ-साथ जल्दी ही घिंसने भी लगता है तथा इसमें काले व सफेद रंग के गढढे भी पाये जाते हैं जो की इसके असली होने की एक पहचान भी होती है। असलीयत में यह एक प्रकार की समुंद्र में उत्पन्न होने वाली लकड़ी ही मानी जाती है। जल में उत्पन्न होने के कारण मूंगे पर एक जलीय आभा रहती है। जिसे रत्न शास्त्र में लस्टर कहते हैं। मूंगा एक लकड़ी होने के कारण किसी भी प्रकार के अमल या कैमिकल्स के प्रति अति संवेदनशील होता है। वर्ततान समय में समुंद्र में भी प्रदूषण होने के कारण इस मूंगा नामक जलीय प्रजाति का आस्तित्व भी खतरे में आ गया है।

ज्योतिषीय संदर्भ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल होता है और मूंगा को मंगल ग्रह का रत्न माना जाता है। जिस भी जातक की जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह सकारात्मक प्रभाव की स्थिति में होता है उन्हें मूंगा रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। लड़कियों के विवाह में विलम्ब, जो व्यक्ति आर्मी, डिफैंस, सिक्योरिटी सर्विसिज, इलैक्ट्रोनिक्स, तांबा धातु या तांबे से बनने वाले विधुतिय उपकरण, ईंट भटठा, भवन निर्माण सामग्री व भवन निर्माण सामग्री संबंधित कार्य जैसे क्रैशर व सक्रीनिंग कार्य इत्यादि, लाल वस्तुओं का व्यापार, विधुतिय उपकरणों के व्यापार में प्रयोग हाने वाली सामग्री, एक सेनापति की तरह आदेश देने का कार्य, मशीनों पर तकनीकी कार्य, बहादुरी व खेल-कूद से संबंधित व्यापार व विवादित मसलों को हल करने करवाने का कार्य, बाॅडी बिल्डिंग, धातु कार्य, रक्षा विभाग या शस्त्र निर्माण, इलैक्ट्रोनिक इंजीनियर, मकेनिक, ब्लड बैंक, शल्य चिकित्सा, साहसिक खेल, फायर ब्रिगेड, आतिशबाजी, रसायन शास्त्र, अग्नि बीमा, ईंधन, पारा, मिटटी का सामान, बर्तन का कार्य इत्यादि से जुड़े होते हैं उन्हें भी मूंगा रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। जो व्यक्ति उपरोक्तलिखित कार्यों से संबंधित किसी भी प्रकार से चाहे वह तकनीकी, उत्पादकता, क्रय-विक्रय इत्यादि रूप से जुड़े होते हैं उन्हें भी यह मूंगा रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है।

रोगों के सदंर्भ में
यह मूंगा रत्न आत्मबल, शक्ति, मानसिक रोग, अत्याधिक क्रोध आना, बर्दाशत करने की क्षमता, सिरदर्द, हृदय रोग, हार्ट अटैक व हार्ट फेल, लीवर संबंधी बिमारी, नर्वस सिस्टम, रक्त विकार, ऑथरायटिस, हडिडयों से संबंधित बिमारियां, लकवा रोग, उच्च व निम्न रक्त चाप, बुखार, बवासीर, समालपाॅक्स चिकनपाॅक्स, जोड़ों से संबंधित रोग, प्राणशक्ति की कमी, बालतोड़, फोड़ा-फुंसी, पित्त रोग, हैजा, मुहासें, चेचक, घाव, जलन, साईनस, बार-बार गर्भपात होना, लकवा, पक्षाधात, पोलियो, गले व गर्दन के रोग, हर्नियाइत्यादि का कारक है।

रत्न विज्ञान के अनुसार मूंगा शुद्ध कैल्शियम कार्बोनेट है। मूंगा भारत के हिन्द महासागर, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, अलजीरिया, अमेरिका, वेस्टंडीज, इटली व जापान इत्यादि के समुंद्री क्षेत्रों से मूंगा निकाला जाता है। जापान के समुंद्री क्षेत्रों से निकलने वाला मूंगा विश्व प्रसिद्ध हैं परन्तु इसकी उत्पादकता कम होने के कारण काफी दुर्लभ व कीमती भी होते हैं। इटली से निकलने वाला मूंगा भी काफी प्रसिद्ध है तथा बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। मूंगा की कीमतो पर उसके आकार का भी काफी ज्यादा प्रभाव होता है। बाजार में अधिकतर यह कैपसूल, त्रिकोण, अण्डाकार, चकोर आदि आकारों में पाये जाते हैं, परन्तु इनमे कैपसूल व त्रिकोणीय आकार का मूंगा आसानी से उपलब्ध हो जाता है तथा बाकी आकार दुर्लभ व कीमती होने के कारण बाजारो में इनकी उपलब्धता कम पायी जाती है। मोती की तरह से मूंगे की खेती नहीं की जा सकती यह केवल समुंद्र की गहरी स्तह में ही प्राकृतिक रूप पाये जाते हैं। इसी कारण से इस रत्न को कृत्रिम रूप से सिर्फ कैमिकलस के द्वारा ही बनाया जा सकता है जो की प्राकृतिक मूंगे के स्थान पर बाजारों में बेचा जाता है जो कि नकली मूंगा होता है।

वर्तमान समय में समुंद्र से उत्पन्न होने वाले प्राकृतिक मूंगे की उत्पादकता कम होने के कारण कृत्रिम मूंगे ने इनकी जगह लेने का सक्षम प्रयास किया है। यह कृत्रिम मूंगा बिना गुणवत्ता के होने के बावजूद भी इन्हें महंगी कीमतों में बेचा जाता है। कुछ व्यक्ति असली मूंगे को लेकर यह भ्रांतियां फैलाते हैं कि असली मूंगे पर पानी की छोटी सी बूंद बिना फैले हुवे टिकी रहती है तथा असली मूंगा को अगर रूई पर रखकर सूर्य के प्रकाश में लेकर जाये तो वह मूंगा रूई में आग लगा देता है। अधिकतर इसी ही तरह की ओर भी भ्रांतियां अन्य रत्नों को लेकर फैलायी जाती हैं। परन्तु हकीकत यह है कि रत्नों की प्रमाणिकता को लेकर रत्न शास्त्र में कुछ टैस्ट होते हैं अगर कोई रत्न उन सभी टैस्टस में पास होने पर ही असली कहलाता है। इसीलिए ग्राहकों को सतर्क करते हुवे उन्हें किसी भी अच्छे ब्राण्ड का सील्ड व सर्टिफाईड उत्पाद ही खरीदना चाहिए क्योंकि बिना प्रमाणिकता के रत्नों में ग्राहक के साथ धोखा होने की संभावना अधिक होती है।

असली प्राकृतिक मूंगा रत्न को रत्न शास्त्र के आधार पर पहचाने के लक्ष्ण:
1. यह अपारदर्शी रत्न होता है।
2. इसकी हार्डनेस मोह स्केल पर 3.00 होती है।
3. यह तेजाब, सूखापन, अम्ल, कैमिकल्स के प्रति अति संवेदनशील होता है।
4. इसका वर्तनाक आर.आई. मीटर पर 1.49 – 1.66 होती है।
5. इसकी सपेसिफिक ग्रेविटी 2.68 होती है।
6. मूंगा अत्यंत नाजुक व एक प्रकार की समुंद्री लकड़ी होने कारण जल्दी ही घिंसने लगता है।
7. प्राकृतिक मूंगे को इनकैंडेसेंट लाईट में देखने पर लहराकार आकृति नजर आता है।
8. मूंगा कैलिशयम कार्बोनेट, काॅन्कियोलिन की रासायनिक संरचना होती है।

Sanjay Dara Singh 
AstroGem Scientists

LLB., Graduate Gemologist (Gemological Institute of America),
Astrology, Nemeorology, Vastu (SSM)

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