मानवीय मुल्य और कक्षा: परिचय अपने बच्चों से– श्री श्री रवि शंकर
पाँचवाँ भाग
एक और बात जिसके लिए हम उन्हें प्रोत्साहित करते हैं वह यह है कि जिसने तुम्हें अपमानित किया हो, उस व्यक्ति का अभिवादन करो। तब, उस व्यक्ति के भीतर एक बदलाव आता है। जब वह व्यक्ति यह देखता है कि जिसको मैंने अपमानित किया वह प्रतिक्रिया करने या क्रोधित होने की अपेक्षा मेरा अभिवादन कर रहा है तो उस व्यक्ति के भीतर अहिंसा का भाव आता है और उनके भीतर एक बड़ा परिवर्तन आता है। इससे उनके भीतर अहिंसा की उत्पत्ति होती है हिंसा का जड़ से नाश होता है। जब मैं विद्यालय में था तब यदि कोई बन्दूक या हिंसा की बात करता था तो सब उसको हेय दृष्टि से देखते थे। सभी छात्र उसकी भर्त्सना करते थे। अगर कोई बच्चा जोर से चीखता था, या अपना आप खोकर कर चिल्ला उठता था तो भी उसे अच्छा नहीं मानते थे। इस तरह के व्यवहार को असामान्य माना जाता था जिस कारणवश ऐसा करने वाला छात्र अपने इस व्यवहार पर शर्मिन्दगी महसूस करता था। आजकल ऐसा नहीं पाया जाता, इसी कारण हमारी यह मूल्य विलुप्त होते जा रहे हैं।
यह ही बात शिक्षकों पर भी लागू होती थी। एक शिक्षक का अपने किसी छात्र के साथ कठोरता के साथ व्यवहार करना भी असामान्य माना जाता था क्योंकि छात्र और शिक्षक के बीच बहुत प्रेम होता है। उस समय एक परम्परा होती थी कि सप्ताह में एक दिन हम अपने शिक्षकों को कोई न कोई उपहार देते थे चाहे वह एक फूल हो, फल हो या घर की बनी मिठाईया या कुछ और। प्रत्येक कक्षा की मेज फूलों से भरी रहती थी। आज के समय में यह मूल्य और अभ्यास देखने में नहीं आते हैं। इन परम्पराओं को पुनर्जीवित करने के लिए उन्हें विद्यालयों से बाहर, किसी अन्य कार्यक्रम के द्वारा उन्हें सिखाना होगा। शिक्षक स्वयं ऐसा करने में असर्मथ होंगे। अन्य किसी व्यक्ति को यह सिखाना होगा कि उन्हें अपने शिक्षकों का सम्मान कैसे करना चाहिए। ग्रीष्म अवकाश में होने वाले कार्यक्रमों में ऐसा सिखाया जा सकता है। जब अभिभावकों और शिक्षकों के अलवा कोई और उन्हें नवीन विचार या मूल्य सिखाता है तो उन के लिए सीखना आसान होता है। हमें उनके भीतर शिक्षकों और अभिभावकों के प्रति अपमान अनुभव करना सिखाना होगा। उन्हें अपने शिक्षकों के प्रति गर्व की भावना होनी चाहिए। शिक्षक और छात्र के बीच अपनेपन का भाव होना चाहिए। यह अति आवश्यक है नहीं तो उन्हें शिक्षकों की क्या आवश्यकता है। कम्पूटर पर अपने आप पाठ पढ़ सकते है। उन्हें शिक्षक की कक्षा में उपस्थिति पूरी कक्षा के वातावरण को बदल देती है। हमें कक्षा में इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए। शिक्षक की उपस्थिति से कक्षा में मानवीय संवेदना का अहसास होता है। हमें कक्षा में इसे बनाये रखने की आवश्यकता है। हमें मानवीय संवेदना पर बल देना चाहिए, मानवीय संबंधों पर भी।
to be continued………..
The next part will be published tomorrow…
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