मंगल का मीन राशि में प्रवेश 4 अक्टूबर, 2020
गोचर सिद्धांत
यदि कोई ग्रह जन्म पत्रिका में बलवान हो और फिर गोचर में भी अपनी उच्च राशि, स्वराशि अथवा मित्र राशि में स्थित होकर दशा का भोग कर रहा हो तो जिस भाव में वह गोचर के समय स्थित होगा, लग्न से उसी भाव के फल की वृद्धि करेगा।
यदि जन्म पत्रिका में कोई ग्रह जिसकी महादशा चल रही हो निर्बल, अस्त, नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित हो तो वह ग्रह गोचर में लग्न से जिस भाव को देखेगा उसका नाश करेगा
जन्म पत्रिका में कोई ग्रह अशुभ भाव का स्वामी हो या अशुभ स्थान में स्थित हो या नीच राशि में हो तो वह ग्रह गोचर में शुभ स्थान पर आ जाने पर भी अपना गोचर का पूर्ण अशुभ फल न देकर कुछ कम अशुभ फल गेदा।
यदि कोई ग्रह जन्म पत्रिका के अनुसार कारक हो एवं शुभ भाव में हो परंतु गोचर में नीच आदि का हो तो कम शुभ फल प्रदान करता है।
यदि कोई ग्रह जब पत्रिका में अशुभ है और गोचर में भी अशुभ भाव एवं नीच या शत्रु राशि में स्थित हो तो वह अत्यंत अशुभ फल प्रदान करता है।
जब ग्रह गोचरवश शुभ स्थान में स्थित हो और जन्म पत्रिका में स्थित दूसरे शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो विशेष शुभ फल प्रदान करता है।
गोचर में ग्रह मार्गी से जब वक्री होता है अथवा वक्री से मार्गी है तब विशेष प्रभाव दिखलाता है।
जब गोचर में कोई ग्रह किसी राशि में स्थित हो और कुछ समय के लिए वक्री होकर पिचली राशि में आता है तब भी वह आगे ही की राशि का फल करता है।
यदि शनि, गुरू और राहु गोचर में अशुभ हो और सूर्य, चंद्रमा इत्यादि उत्तम हो तो उस महीने शुभ फल बहुत ही कम प्राप्द होता है।
यदि वर्ष और मास दोनों का फल शुभ हो तो स मास में अवश्य अति शुभ फल प्राप्त होता है।
सूर्य और मंगल गोचर वश जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं तो तत्काल ही अपना प्रभाव दिखालाते हैं। एक राशि में 30 अंश होते हैं, इसलिए सूर्य और मंगल 0 अंश से 10 अंश तक विशेष प्रभाव करते हैं। गुरू और शुक्र राशि के मध्य भाग में अर्थात 10 अंश से 20 अंश तक विशेष प्रभाव दिखलाते हैं। चंद्रमा और शनि राशि के अन्तिम तृतीययांश अर्थात 21 से 30 अंश तक विशेष प्रभावशाली रहते हैं। बुध और राहु समस्त अर्थात 0 अंश से 30 अंश तक सर्वत्र एक सा फल देते हैं।
मंगल गोचरफल
मंगल चंद्र लग्न से गोचरवश तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में इसका फल सामान्य एवं अशुभ होता है।
चंद्र लग्न में यदि गोचरवश मंगल हो तो कार्य सफल नहीं होते। जातक को अग्नि, जहर और शस्त्र से हानि की संभावनाएं होती हैं। दुर्जनों को कष्ट मिलता है। यात्रा में दुर्घटनाएं या कष्ट हो सकता है।
चंद्र से द्वितीय भाव में यदि मंगल गोचरवश स्थित हो तो जातक को बल की हानि होती है। कार्यों में जातक को प्रायः असफलता मिलती है। दुष्ट मनुष्यों, चोरों तथा अग्नि से धन की हानि हो सकती है। जातक सदा कठोर वचनों का प्रयोग करता है। राज्य की ओर से दण्डित होने का भय रहता है। शरीर में पित्त के आधिक्य से जातक को कष्ट रहता है।
चंद्र से तृतीय भाव में यदि मंगल गोचरवश स्थित हो तो जातक का साहस बढ़ता है तथा उसके शत्रु पराजित होते हैं। जातक को धन मिलता। जातक के प्रभाव तथा धन में वृद्धि होती है। राज्य कर्मचारियों की ओर से जातक को सहायता प्राप्त होती है। जातक की तर्क शक्ति बढ़ती है।
चंद्र से चतुर्थ भाव में यदि मंगल गोचरवश गया हो तो शत्रुओं की वृद्धि और स्वजनों का विरोध होता है। धन एवं वस्तुओं की कमी आ जाती है। जमीन जायदाद की समस्याएं उत्पन्न होती है। घरेलू जीवन का सुख जातक को कम मिलता है। जातक की माता को कष्ट मिलता है। जातक के मन में हिंसा तथा क्रूरता की वृत्ति जाग्रत होती है।
चंद्र से पंचम में जब मंगल गोचरवश आता है तो धन और स्वास्थ्य का नाश होता है। संतान बीमार रहती है। मन पाप कर्मो की ओर अधिक प्रवृत होता है। उसके गौरव और प्रताप को विशेष धक्का लगता है। शत्रुओं से पीड़ा होती है।
चंद्र से छठे जब मंगल गोचरवश आता है, तब धन, अन्न और स्वर्ण प्राप्ति होती है। शत्रुओं पर जातक को विजय प्राप्त होती है। वैयक्तिक प्रभाव में वृद्धि होती है। यदि मंगल छठे भाव में उच्च या स्वराशि में स्थित हो तो जातक का स्वास्थ्य ठीक रहता है।
चंद्र से सप्तम जब मंगल गोचरवश आता है तो जातक के स्वजनों को मानसिक तथा शारीरिक कष्ट होता है। भोजन, वस्त्र आदि में कमी आती है। जातक को उसकी पत्नी से वैचारिक मतभेद तथा झगड़ा होता है। भाइयों से भी जातक विवाद करता है और दुःख प्राप्त करता है।
चंद्र से अष्टम जब मंगल गोचरवश आता है तो जातक का परदेशवास होता है। जातक के कार्य की हानि होती है, पुरूषार्थ निष्फल जाता है। घाव और रोग से पीड़ा होती है। भाइयों से जातक की अनबन रहती है। दुष्प्रवृत्ति अधिक रहती है। शत्रुओं से जातक भयभीत रहता है।
चंद्र से नवम जब मंगल गोचरवश आता है तो तब जातक अनादर पाता है। धनाभाव का कष्ट उठाना पड़ता है। रोजगार में बाध उत्पन्न होती है। जातक पर शत्रु पक्ष एवं विरोधी हावी रहते हैं।
चंद्र से दशम में मंगल जब गोचरवश आता है तब जातक को तामसिक पदार्थो का भोजन प्राप्त होता है। शरीर में आघात आदि द्वारा रोग की उत्पत्ति होती है। किसी कार्यवश घर से बाहर रहना पड़ता है। रोजगार में बाधाएं आती है। चोरों का भय भी रहता है। मतातरनुसार उतरार्द्ध में धन प्राप्ति होती है।
चंद्र से एकादश भाव में मंगल जब गोचरवश आ जाता है, तब जय, अरोग्य और धन धान्य की प्राप्ति होती है। आय में आशातीत वृद्धि होती है। भूमि आदि के लाभ होते हैं। आय में वृद्धि होती है। भाइयों की वृद्धि होती है तथा जातक को भाईयों से लाभ भी रहता है। कार्यों में सफल मिलती है।
चंद्र से द्वादश भाव में गोचरवश जब मंगल आता है तो धन का व्यय होता है तथा घर से बाहर जाना पड़ता है। मनुष्य नेत्र रोग सो पीड़ित होता है। भाइयों से अनबन रहती है। मानहानि होती है। स्त्री को कष्ट होता है तथा उससे कलह होती है। पुत्रों को कष्ट की प्राप्ति होती है।
चंद्र से द्वादश भाव में गोचरवश जब मंगल आता है तो धन का व्यय होता है तथा घर से बाहर जाना पड़ता है। मनुष्य नेत्र रोग सो पीड़ित होता है। भाइयों से अनबन रहती है। मानहानि होती है। स्त्री को कष्ट होता है तथा उससे कलह होती है। पुत्रों को कष्ट की प्राप्ति होती है।