भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष, भ्रष्टाचार की समस्या का इन पांच उपायों द्वारा निरकरण किया जा सकता है। आइए इन अन्य पांच उपायों पर विचार करते हैं।
सहयोगिता (अपनापन)
एक दूसरे के प्रति जुडाव और अपनेपन की भावना की कमी से समाज में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इसलिए लोग भ्रष्टाचार से बचने के लिए जुड़ाव स्थापित करना चाहते हैं। इस बात को समझें कि भ्रष्टाचार गांवों में न्यूनतम और नगरों में बहुत अधिक है, क्योंकि नगरों में समुदायिकता की भावना कम है और लोग आपस में बहुत कम मिलते हैं। अपनेपन की इस भावना को सृजित करना, सबसे बड़ी नैतिक चुनौती है जिसका हम समाज में सामना करते हैं। इस तरह अपनेपन के बिना, भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता है। में है। आज, हम मित्रता में विश्वास नहीं रखते। हमारा विश्वास केवल मुद्रा में है। हमारी सुरक्षा मित्रता से मुद्रा पर स्थानांतरित हो गयी है। 50 वर्ष पहले जिस व्यक्ति के पास बहुत सारे मित्र होते थे वह अपने आपको सुरक्षित अनुभव करता था। मित्रों से उसे हमेशा सामाजिक सहयोग मिलता था, अतः वह आसानी से भ्रष्ट नहीं हो पाता था। वह कुछ रूपयों पर ही गुजारा करने लिए निर्भर नहीं था। वह स्वयं से कहता था “मेरे आसपास लोग है जो मेरी सहायता करेंगें,” आज अपनों की कमी के कारण आप भयभीत है कि आपके बच्चें अपनी देखभाल करेंगें अथवा नहीं। हर जगह इस अलगाव की भावना की अनुभूति के कारण, सुरक्षा की केवल एक ही भावना आपके मन में आती है, जो आपको कहती है- ठीक है, अधिक धन एकत्र करों और उसे अपने निजी बैंक खाते में रखो। धन सुरक्षा का एकमात्र स्रोत बन गय है। यह केवल व्यक्तिगत घटना अथवा सोच नहीं है अपितु एक आम धारणा हो गयी है। वास्तव में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, क्योंकि हम अपने आसपास मे रहने वाले लोगों से जुड़ाव अनुभव नहीं करते हैं। मूलभूत मानवीय मूल्य है जैसे कि आध्यात्म, भाईचारा, मित्रता, करूणा-या तो ये सभी कम हो रहे हैं अथवा कहीं कहीं पूरी तरह से लुप्त हो चुके हैं। इस प्रकार हमारे पास केवल एक ही वस्तु रह गयी है धन, धन तथा और अधिक धन।
साहस
स्वाभिमान और स्वयं की क्षमताओं के प्रति विश्वास में कमी, भ्रष्टाचार का दूसरा कारण है। जब व्यक्ति अपनी क्षमताओं और आत्मविश्वास में स्थायित्व और सुरक्षा की भावना पाता है तब भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। यह लोगों में भय और असुरक्षा है, जो उनसे भ्रष्टाचार करवाती है। जैसे कि हम ऊपर चर्चा कर चुके हैं उसके पश्चात वे धन में सुरक्षा ढूंढने का प्रयत्न करते हैं। यह वास्तव में सहायक नहीं होता। वे अधिक धन संचित करते हैं परंतु असुरक्षा की भावना जारी रहती है। वास्तव में, वे अब और अधिक भयभीत और कमजोर हो जाते है क्योंकि हो सकता है वह धन सही तरीके से अर्जित न किया गया हो। हमें किसी व्यक्ति में साहस व विश्वास बढ़ाने और प्राकृतिक नियमों में विश्वास उत्पन्न करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
ब्रह्माण्डविज्ञान
ब्रह्माण्डविज्ञान को समझना आवश्यक है-स्वयं के जीवन को स्थान एवं समय (Space and time) के संदर्भ में देखना जरूरी है। एक मानव जीवन की 80 से 100 वर्ष की अवधि, इस सृष्टि की उत्पति से अब तक बीत चुके अरबों वर्षो से बहुत ही कम है। वैज्ञानिकों का आंकलन है कि पृथ्वी 15 अरब साल पुरानी है। इस सृष्टि में प्रत्येक वस्तु पुर्नावरित (recycled) होती है। जिस हवा में हम सांस लेते हैं वह भी पुरातन है। उपलब्ध आँक्सीजन और हाईड्रोजन भी पुरानी है और यह चक्र जारी रहेगा। जीवन को ब्रह्माण्ड की विशालता और समय की असीमता के संदर्भ में देखने पर किसी के भी जीवन में गहराई आयेगी और उसके दृष्टिकोण और विचारधारा में विस्तार होगा।
देखभाव और करूणा
ये सद्गुण हमारे समाज में और अधिक समर्पण/निष्ठा की भावना पैदा कर सकते हैं। निष्ठा का अभाव भ्रष्टाचार के बीज बोता है। उदाहरण के रूप में वर्ष 2001 में भारत में एक विशाल आध्यात्मिक सभा हुई थी, जिसमें 30 करोड़ लोगों ने भाग लिया था। एक विशिष्ट दिन में 3 करोड़ लोग एक जगह एकत्र हुए थे। और वहां चोरी अथवा हिंसा की कोई घटना नहीं हुई। लोग शिविरों में रह रहे थे और आपस में मिल रहे थे, परंतु एक भी आपराधिक घटना नहीं हुई।
वह जनवरी का महीना था और कड़ाके की ठंड़ थी। मैं स्वयंसेवको के पास गया, जो लोगों का ध्यान रख रहे थे। उनमें कुछ बहुत गरीब थे और सर्दी को सहन नहीं कर पा रहे थे, चूंकि वे गर्म जलवायु वाले स्थानों से आए थ। आधी रात के समय स्वयंसेवक कंबल वितरित कर रहें थे। तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस के निकट था। जब उन्होंने एक 20 वर्ष के युवा को कंबल दिया तो उनसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि कंबलो को कुछ वृद्ध महिलाओं को दे दिया जाए, जो पास ही खड़ी थीं। उनसे हमें आश्वासन दिया कि वह ठंड को सहन कर सकता है। मैं इस प्रकार की करूणा के बारे में बात कर रहा हूँ। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए इस तरह के प्रेम, करूणा और समझदारी की आवश्यकता है।
जब सामुदायिक भावना मन मे होती है, जो विशेषतः आध्यात्मिक उदेश्य रूप से प्रेरित है, तब अपराध दर तेजी से नीचे आता है। किसी ने मुझसे पूछा, “गुरूजी, कृपया भ्रष्टाचार के मूलभूत मुद्दों को बतायें। हम लोगों रिश्वत देने के लिए विवश करते हैं, अगर हम कुछ लोगों से रिश्वत नहीं लेंगें, तो हमारे उद्योगों को नुकसान होगा। भारत में यह दुखद परंतु अनिवार्य परिस्थिति है। हम क्या करें?”
अगर आप अपने आसपास के समाज से संबंध स्थापित कर सकते हैं, तो आप इसका अंग है तब आपको इस समाज का सहयोग प्राप्त होता है। इस सहयोग भावना से आप विपरित स्थितियों को काफी हद तक कम कर सकते है। समाजिक उत्तरदायित्व काँरपोरट संस्कृति का अनिवार्य अंग होना चाहिए।
वचनबद्धता
समाज में योगदान देने के लिए एक व्यक्तिगत वचनबद्धता की भावना भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए आवश्यक है। जब व्यक्ति के पास लक्ष्य है और जीवन में उच्च उदेश्य के प्रति बचनबद्धता है तब भावना ग्रहण करने के बजाय पर देने के लिए उत्पन्न होती है। किसी समाज में, अगर सभी अपने लाभ के संबंध में सोचेंगें बजाए इसके कि वे क्या योगदान दे सकते हैं और आसपास के लोगों के लिए कैसे उपयोगी हो सकते हैं, तो भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता है।
कुछ वर्षो पूर्व गुजरात में भूकंप आया था। एक प्रौढ़ महिला ने अपने संपूर्ण परिवार को खो दिया था। उस समय हमारे एक स्वामी जी जो सेवा के लिए गये थे, उस महिला से मिले। वह 10 रूपये दाना देना चाहती थी स्वामी जी ने महिला से कहा कि वह केवल देने आए है और लेने कुछ भी नहीं। परंतु महिला ने उत्तर दिया कि उसका वैस तो सब कुछ खो गया है परन्तु उसके देने की भावना को भी उससे नहीं छीना जाना चाहिए।
हमारे बीच समाज के प्रति योगदान की भावना पुनः जागृत करनी होगी। और संपूर्ण विश्व के प्रति आध्यात्मिक प्रगति और उत्तरदायित्व की व्यक्तिगत भावना के बिना यह संभव नहीं है। यह पृथ्वी एक गांव बन चुकी है। हम लोगों ने ज्ञान को छोड़कर, सभी चीजों का वैश्वीकरण किया है और मेरा यह मानना है कि आज विश्व में आतंकवाद और अशांति का यही एक कारण है। हम विश्व के सभी भागों से भोजन और संगीत स्वीकार करते हैं परंतु जब ज्ञान की बात आती है, तो हम संकोच करते हैं। जब पृथ्वी पर रहने वाला बच्चा विभिन्न संस्कृतियों और मूल्यों (धार्मिक, नैतिक और आध्यत्मिक) के बारे में थोड़ा कुछ भी सीखेगा तब संपूर्ण स्थिति भिन्न होगी। इस प्रकार की शिक्षा की कमी से हमारे विश्व में बहुत सी समस्यायें उत्पन्न हो गई हैं।
मेरे एक अध्यापक महात्मा गांधी के निजी सचिव थे। जब हम युवा थे, तब वे हमें अपने जीवन की कहानियां सुनाया करते थे और किस प्रकार महात्मा गांधी स्वयं के उदाहरण द्वारा लोगों को निस्स्वार्थ सेवा के लिए प्रेरित करते थे। सेवा भाव का यह प्रभाव हम बच्चों पर लंबे समय तक बना रहा।
हम स्वयं के उदाहरण द्वारा इन भावनाओं का सृजन कर सकते हैं। मेरा यह विचार है कि विश्व के सभी धार्मिक नेता, व्यवसायिक प्रतिष्ठान, राजनीतिक प्रतिष्ठान, सामाजिक कार्यकर्ता और गैर-सरकारी संगठन आगे आयें और एकता के इस संदेश को सामने लायें। अब हम और अधिक विभाजित नहीं रह सकते। विश्व एक परिवार बन चुका है।
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