बोध और पर्यावरण : दो कदम बुद्धत्व की ओर – श्री श्री रवि शंकर
पाँचवाँ भाग
प्रश्न – परन्तु गुरू जी यदि सपने में आएं तो?
उत्तर – यही तो बता रहा हूं कि सपना कई प्रकार का हो सकता है।
अन्तर्प्रज्ञात्मक, बिल्कुल सच भी। या तुम्हारी ही आकांक्षा झलक रही हो,
जैसे तुम किसी आकर्षक स्थान पर जाना चाहते हो और सपने में गुरू जी के मुंह से निकलवा लेते हो कि अमुक स्थान पर जाओ। अतः सपने में हर तरह की संभावना हो सकती है। ऐसी घटनाएं भी घटी हैं कि कोर्स कई लोग अपने सपनों से निर्देश पाकर ही पहुंचे हैं। पोलैंड और रूस जैसे देशों में तो ऐसी घटनाएं बहुत घटीं। पोलैंड में तो पांच हजार से अधिक लोगों ने कोर्स कर लिया है। वे इस पथ पर, इस दिव्य ज्ञान में कैसे आए, इन सबकी बड़ी अनोखी’ कहानियां हैं। हां तो मैं यह नही कह रहा कि सपनों को झूठा समझों, पर इन पर शत-प्रतिशत भरोसा भी नहीं किया जा सकता। तुम परीक्षा से भयभीत और चिन्तित हो और वही भाव सपनें में गुरू जी के मुंह से कहलवा देता है कि परीक्षा मत दो – देखा अब इसका क्या अर्थ निकालोगे? सो सपनों को सपना ही रहने दो।
प्रश्न – मेरी मां कट्टर मुस्लिम हैं। उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाएं बिना मैं अपने गुरू के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा कैसे व्यक्त कर सकता हूं?
उत्तर – व्यक्त करने या दर्शाने की आवश्यकता ही क्या है। यह भाव अपने हृदय में संजो कर रखो। और यदि व्यक्ति करना ही है अथवा व्यक्त हो ही जाए तो उनसे सहमति की आशा न रखो। उनकी असहमति भी सिर – आंखों पर। स्वीकार भाव से, मुस्कुराते हुए पथ पर बढ़ते चलो।
Leave a Reply