बालमन की वापसी : परिचय अपने बच्चों से– श्री श्री रवि शंकर
पहला भाग
पीटर मैफे कांफ्रेस, जर्मनी, मई 2010
हम सब किसी न किसी रूप में बच्चे ही हैं। मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि व्यस्त होते हुए भी हम मन से बच्चे ही बने रहें। आपको पता है, एक बच्चा दिन में 400 बार मुस्कुराता है, एक किशोर 17 बार और व्यस्त तो मुस्कुराता ही नहीं है। अगर संसार मे लोग ज्यादा मुस्करा सकें तो इस संसार में समस्यायें कम होगी।
हम आज सुबह से हिंसा और संघर्ष की समस्याओं पर चर्चा कर रहे हैं। इसका समाधान क्या हैं? हम किधर जा रहे हैं? हम महात्मा गाँधी की विचारधाराओं के साथ बढ़े हुए हैं। हम अहिंसा में गर्व महसूस करते हैं। दुर्भाग्यवश, आज अहिंसा में गर्व महसूस करते हैं। दुर्भाग्यवश, आज अहिंसा और आक्रामक व्यवहार करने पर लोग गर्व का अनुभव करते हैं। जो शीघ्र ही अपना आप खोकर आक्रमक हो जाता है उसे विद्यालय और कालेजों मे नायक की संज्ञा दी जाती है। हमें हिंसा से अहिंसा की ओर बढना होगा। हमें हमारे बच्चों को समाज में हिंसा विहीन और तनावमुक्त होने का विश्वव्यापी दृष्टिकोण देना होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि इन पाँच चीजों को अपनाकर इस लक्ष्यतक पहुँचा जा सकता है।
to be continued………..
The next part will be published tomorrow…
Comment (1)
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