बालमन की वापसी : परिचय अपने बच्चों से– श्री श्री रवि शंकर
तीसरा भाग
- फिर आता है – योग और ध्यान। मैंने योग को इतना धर्मनिरपेक्ष बना दिया है कि किसी भी धर्म या जाति के व्यक्ति को इसे करने में कोई आपत्ति नहीं होगी। बस कुछ साँस की प्रक्रिया और भंगिमायें। वह किसी विशेष सोच से नहीं जुड़ा हुआ है। हमारी साँस का हमारी भावनाओं के साथ सीधा सम्बन्ध है। हमारी हर भावना, साँसो के एक विशिष्य लय से सम्बन्ध रखती है। जब हम अपनी भावनाओं को सीधे सम्भाल नहीं पाते है तो उन्हें साँसों के सहारे सम्भाल सकते सकते हैं। जब आप रंगशाला में होते हैं और गुस्सा दिखाना होता हो तो निर्देशक आपसे जोर-जोर से साँस लेने को कहता है ऐसे ही जब शांति का दृश्य होता है तो आपको शांत और धीमी साँस भरने को कहा जाता है। अगर हम साँसों की लय को समझ पाते हैं तो हमारे मन के ऊपर हमारा नियंत्रण आसान होगा और हम अपनी नकारात्मक भावनायें जैसे गुस्सा, ईर्ष्या और लालच. से छुटकारा पा सकते हैं और खुलकर हंस सकते हैं। मेरा मानना है कि हमें बालोचित गुण जैसे सौन्दर्य और भोलेपन के गुण जो ईश्वर द्वारा हमें भेट स्वरूप मिले हैं उन्हें जीवन में वापस लाना होगा।
अब मैं आपको एक घटना बताता हूँ। दो साल पहले, अरब देशों से 200 युवकों का दल बंगलौर आया था। उसी, समय लगभग 35 युवक इजराइल से भी आये थे। जब अरब के युवकों को पता चला कि इजराइल के युवक भी वहाँ आये हुए है तो वे इतना क्रोधित हो गये कि अपना सामान बाँध कर वापस जाने को तैयार हो गये। परन्तु जब हमने उन दोनो दलों से बात की, उन्होंने कुछ ध्यान, सांसो की प्रक्रिया और योग किया तो तीसरे तीन के खत्म होने तक वे अच्छे मित्र बन गये। सप्ताह के समाप्त होने पर जब वह जाने लगे तो दोनों दलों के युवकों की, एक दूसरे को छोड़कर जाने के दुःख में आखों में, आसू थे। उनके अनुभव सुनने योग्य हैं।
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