दो कदम बुद्धत्व की ओर : दो कदम बुद्धत्व की ओर – श्री श्री रवि शंकर
सातवाँ भाग :
प्रश्न-प्रिय गुरू जी, ईसाई धर्म मुझे इस बात से डराता है कि यदि
मैंने ‘जीसस’ का अनुसरण नहीं किया तो मैं किसी संकट में पड़
जाऊंगा। मुझे आपकी सहायता चाहिए। एक और बात, मैं अपराध
भाव से भरा हूं। मुझे इससे उबारिये। धन्यवाद।
उत्तर-तुम ईसाईयत का नहीं, जीसस का अनुसरण करो, वह तुम्हारे
लिए सुखद है। लोगों को जगाने के लिए सभी धर्म कई तरीके
अपनाते हैं। धर्म का डर डालना भी उन्हीं में से एक है। कुछ लोग
सचमुच इतने मन्द बुद्धि (सोये हुए) होते हैं कि डर के बिना उठते
ही नहीं, हिलते ही नहीं।
मध्याकालीन या अंधकारमय युग में जब लोग केवल लड़ते ही रहते
थे, हृदय तल पर बिल्कुल संवेदनहीन हो गए थे, उन्हें प्रें के साथ पर
लाने को लिए डराना-धमकाना पड़ता था-कि यदि प्रेम नही करोगे तो
तुम्हारा विनाश हो जाएगा।
जीसस का अनुसरण करना यानी जीवन मूल्यों को, गुणों को जीना।
जब तक इन मूल्यों के साथ जीते हो, सबको अपने जैसा ही समझ
कर प्रेम करते हो, तुम्हें यह बोध बना रहता है कि प्रेम मात्र एक भाव
ही नहीं, प्रेम तुम्हारे भीतर की गहराई है, तुम्हारा आत्मस्वरूप है, तो
समझो तुम जीसस के साथ जुड़े हो। आर्ट आफ लिविंग (जीवन जीने
की कला) भी तो यो यही है न। यह तो जीसस के उपदेशों का निचोड़
है। प्रेम, सेवा, साधान, स्वयं के साथ जुड़ना यानि आत्मकपरक में
स्थित होना- जीसस भी यही कहते हैं, आर्ट आफ लिविंग भी यही है।
अतः चिन्ता न लो, पथ पर बढ़ते चलो। जो लोग तुम्हें ईसाइयत के
नाम से डराते हैं, वास्तव में वे स्वयं डरे हुए व्यक्ति हैं। यदि तुम
गौर से देखो तो जीवन में उन्हें कुछ उपलब्धि नहीं हुई ऐसे लोगों के
वक्तव्यों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता नहीं।
कुछ लोगों ने कहा, “प्रलय आने वाली है, अगले दस वर्षो में संसार
समाप्त हो जाएगा, लेकिन तुम हमारे साथ रथ पर बैठकर स्वर्ग चल
सकते हो “यह सब लोभी लोगों की काल्पनिक योजना है। अज्ञात कि
हद देखो कि यह देह सहित स्वर्ग में पहुंचेंगे। कोरिया आदि कई
स्थानों पर तो लोगों ने इस योजना के प्रलोभन में अपनी जमीन-
जायदाद तक बेच दी। यह सब मन की भ्रान्तिया हैं। इनमें पड़ने की
जरूरत नहीं। हां, तुम अपनी प्रगति के लिए जीवन मूल्यों को जीओ,
साधन करो, तनाव मुक्त रहोः मैं तुम्हें आश्वासन देता हूं कि तब तुम
बुद्ध पुरूषों के सान्निध्य में ही रहोगे। सब गुरू, फरिश्ते और सारी
दिव्यता तुम पर आशीर्वाद बरसाएगी। उन्हें भी तुम्हारे सत्संग में,
तुम्हारी संगत में आनन्द आएगा। तुम्हें पता है कि केवल कुछ घंटो
की ही गहन साधना हमारी सूक्ष्म गहराईयों को छू लेती है। हमने तो
यहां पूरे दो-तीन दिन साधना की है। इसका पूरे वातावरण में, सूक्ष्म
तलों पर भी कितना प्रभाव पड़ा है?