जीवन जीने की कला : दो कदम बुद्धत्व की ओर – श्री श्री रवि शंकर
पहला भाग
श्र्वास द्वारा स्वस्थ करने की कार्यशाला की आधारशिला एक साधारण परन्तु शक्तिशाली विधि है जिससे शारीरिक एवं भावनात्मक तनाव दूर होते हैं, और मस्तिष्क शांत र एकाग्रचित हो जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध “दि आर्ट आँफ लिविंग – ” “जीवन जीने की कला” में सिखाये गये कार्यक्रम के अभ्यास से लोगों को प्राप्त हुआ है –
. उन्न्त स्वास्थ्य व भरपूर ऊर्जा
. तनाव से मुक्ति व प्रबुद्ध कार्यक्षमता
. वर्तमान में रहने की क्रिया व स्थिरता
. सुखी व आनन्दमय जीवन
चेतना का भाव और जीवन का सर्वांगीण विकास सम्भव हुआ है। कार्यक्रम में सिखाये गए योगाभ्यास, श्र्वास प्रणाली, ध्यान व “सुदर्शन क्रिया” और भावनात्मक अवस्ता से छुटकारा मिला है। शरीर, मन व कर्म का अद्भुत संयम व संतुलन प्राप्त होता है।
प्रकृति की तरह हमारे शरीर, मस्तिष्क एवम् आत्मा आपस में लयबद्ध हैं। बहुधा दैनिक तनाव, तुच्छ खाद्य और हानिकारक पर्यावरण हमारी शारीरिक प्रणाली को पहुंचाते हैं। स्थायित्व देने वाले इस स्वाभिक तालमेल को नष्ट करके नुकसान पहुंचाते हैं। ‘सुदर्शन क्रिया’ शारीरिक प्रणाली को जीवन रक्षक ऊर्जा से भर देती है और व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक एवम भावनात्मक स्तर पर तरोताज कर देती है।
“जीवन जीने की कला” बेसिक कोर्स लगभग 18-20 घण्टों में सिखाया जाता है जिसे 5 या 6 दिनों में पूरा किया जाता है। केवल 20 मिनट नियमित अभ्यास द्वारा अत्याधिक लाभ होता है। कार्यशाला में सिखाई गई प्रकियाओं को सभी व्यक्ति (16 वर्ष की आयु के ऊपर) आसानी से सीख सकते हैं। इसमें किसी भी प्रकार के धर्म, जाति या पढ़ाई के नियम लागू नहीं होते।
to be continued………..
The next part will be published tomorrow…
Leave a Reply