चार एष्णाएं : दो कदम बुद्धत्व की ओर – श्री श्री रवि शंकर
चौथा भाग
सोचा कभी, अभी पीछे कुवैत में क्या हुआ ? कितने ही अमीर से अमीर लोग रेगिस्तान में फंसे रह गए और कितने दिनों तक एक रोटी के टुकड़े के लिए तरस गए। जिनके पास धन के अम्बार थे, सब कुछ था, एक ही रात में कंगाल हो गए। उनमें से कुछ ने यहां आश्रम में आकर अपनी आपबीती सुनाई, “गुरू जी, इससे पहले मुझे आपकी बात समझ में नहीं आई थी, लेकिन अब मुझे पता चला कि धन की क्या जगह है सारे जीवन में 15 दिन हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था, हम भिखारियों की तरह थे और पीछे बैंक में हमारा बेशुमार धन हमारी कुछ भी सहायता नहीं कर सका।”
ऐसा ही यूगांडा में भी हुआ। लोगों को देश छोड़कर भागना पड़ा। बहुत से लोग जिनकी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां थीं, जो पुश्तों से धन कमाते और जोड़ते चले आ रहे थे, उनको एकाएक निकलना पड़ा। एक वृद्ध सम्पन्न ने अपने मुनीम या खजांची से पूछा, “देखो मेरा सारा धन कितना है और मेरी आगे आने वाली कितनी पीढ़ियों के काम आ सकता है?” मुनीम ने कहा, “आपकी सम्पत्ति आपके आने वाली चार पीढ़ियों तक के लिए काफी है, आपको और कमाने की आवश्यकता नहीं है।” इस पर वृद्ध व्यक्ति बोला “तो फिर पांचवी पीढ़ी का क्या होगा? मै अभी आराम से नहीं बैठ सकता, मुझे पांचवी पीढ़ी के लिए भी कमाना होगा। ” ऐसी है धन की लालसा- वित्तेष्णा।
हम सोचते हैं कि अरबपति बहुत अमीर होते हैं। परन्तु हम यदि एक सौ रूपए का उधार लेते हैं तो अरबपति व्यक्ति के ऊपर एक लाख या दस लाख का उधार होता है। अब दोनों में से कौन अधिक गरीब हुआ और कौन अधिक अमीर? कहना बड़ा मुश्किल है। धन की कमी कभी भी, किसी भी समय व स्थान पर हो सकती है। आपके पास कितना धन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बहुत बड़ी-बड़ी कम्पनियां जो करोड़ों में कमाती हैं, वे भी कर्जे में डूब जाती हैं। ऐसा होता है कि नहीं? इसलिए धन के लिए इतनी चिन्ता क्यों? हम तो केवल भरोसा रखें कि ‘जितना भी मेरे लिए आवश्यक है, उतना मुझे अवश्य मिल जाएगा’ इस भाव से यदि हम पूरी तरह सौ प्रतिशत काम करते हैं तो फिर जितना हमें मिलता है और जितना खर्च होना है, खर्च होता है।
to be continued………..
The next part will be published tomorrow…
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