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गुरू की पंचम एवं नवम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती है। शनि की तृतीय एवं दशम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती हैं। इस प्रकार मंगल गुरू एवं शनि की सप्तम के अलावा भी पूर्ण दृष्टि होती है, केतु की दृष्टि नही होती है।

Post Date: November 11, 2019

गुरू की पंचम एवं नवम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती है। शनि की तृतीय एवं दशम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती हैं। इस प्रकार मंगल गुरू एवं शनि की सप्तम के अलावा भी पूर्ण दृष्टि होती है, केतु की दृष्टि नही होती है।

ग्रहों की दृष्टि

सूर्य जब उदय होता है तो उसकी किरणें तिरछी होती है। दोपहर को सूर्य की किरणें बिल्कुल सीधी होती है जिससे गर्मी ज्यादा होती है। शाम को फिर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती  हैं।

इसी प्रकार सभी ग्रहों का प्रभाव होता हैं। ग्रह के सामने सीधी व पूर्ण  दृष्टि का प्रभाव अधिक होता है।

जो ग्रह देखता है उसे द्रष्टा कहते हैं। जिस ग्रह या भाव पर द्रष्टा ग्रह की दृष्टि पड़ती हैं उसे दृष्टि कहते हैं।

दृष्टि चार प्रकार की होती हैः-

  • पूर्ण दृष्टि

सारे ग्रह अपने स्थान से सातवें भाव/स्थान

को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं।

पूर्ण दृष्टि का विशेष प्रभाव पड़ता है।

सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र शनि एवं राहु अपने स्थान से सप्तम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं।

मंगल गरू एवं शनि की सप्तम के अलवा भी पूर्ण दृष्टिया होती है। इसमें मंगल की चतुर्थ एवं अष्टम भी पूर्ण दृष्टि होती है।

गुरू की पंचम एवं नवम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती है। शनि की तृतीय एवं दशम स्थान पर भी पूर्ण दृष्टि होती हैं। इस प्रकार मंगल गुरू एवं शनि की सप्तम के अलावा भी पूर्ण दृष्टि होती है, केतु की दृष्टि नही होती है।

  • त्रिपाद दृष्टि

मंगल के अलावा शेष ग्रहों की चतुर्थ एवं अष्टम स्थान पर त्रिपाद दृष्टि होती है। त्रिपाद या तीन चरण दृष्टि का प्रभाव तीन चौथाई (3/4) या 75% होता है। मंगल की चतुर्थ व अष्टम दृष्टम भी पूर्ण दृष्टि होती है।

  • द्विपाद दृष्टि

गुरू के अलावा शेष ग्रहों की अपनी स्थान से पंचम एवं नवम स्थान पर द्विपाद या दो चरण दृष्टि पड़ती है। द्विपाद दृष्टि का प्रभाव आधा (1/2) पड़ता है। गुरू ग्रह की अपने स्थान से पंचम एवं नवम स्थान पर पूर्ण दृष्टि होती है।

  • एकपाद दृष्टि

शनि के अलावा शेष  ग्रहों की अपने स्थान से तृतीय एवं दशम स्थान पर एकपाद या एक चरण दृष्टि पड़ती है। एकपाद दृष्टि का प्रभाव एक चौथाई (1/4) पड़ता है शनि ग्रह की अपने स्थान से तृतीय एवं दशम स्थान पर पूर्ण दृष्टि पड़ती है।

सभी ग्रहों की अपने स्थान से द्वितीय, षष्ठ, एकादश एवं द्वादश स्थानों पर दृष्टि नही पड़ती है। पूर्ण दृष्टि अति महत्वपूर्ण होती है एवं दूसरी दृष्टि का प्रभाव कम होता है। इसलिए व्.वहारिक तौर पर पूर्ण दृष्टि को ही फलित में विशेष महत्व दिया जाता है।

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