करनी तथा होनी*:- श्री श्री रवि शंकर
इस ज्ञान का सबसे उत्तम योग है कि हम अतीत को घटना” के रूप में देखें और वर्तमान को कुछ “करने” का अवसर समझें। यदि अतीत को “करनी” के रूप “घटना” के रूप में देखते हैं तो अहं और पश्चाताप होता है। और वर्तमान को होनी जैसे देखें तो आलस्य और संगीता आती है।
“करनी” को यदि भविष्य के साथ जोड़ोगे, तो तनाव व चिन्ता उत्पन्न होगे। भविष्य को “होनी” के रूप में देखने से कुछ आत्मविश्वास मिल सकता है, लेकिन साथ ही जड़ता भी आयेगी।
“घटना” को अतीत में रहने दो; “करनी” को वर्तमान के लिए रखो और भविष्य है दोनों मिश्रण।
ज्ञानी “होनी” में “करनी” को और “करनी” को “होनी” में साथ-साथ दखते है। केवल वही व्यक्ति जो कार्य “करने” में अपना शत-प्रतिशत देता है, “घटना” (होनी) को समझ सकता है।
क्या आप सब चक्कर में पड़ गये? (हँसी)
बहुत काम करने वाला व्यक्ति कभी नही कहेगा कि उसने बहुत काम किया। जब कोई कहता है कि उसने बहुत काम किया है, इसका अर्थ है कि वह अभी और काम कर सकता है; अभी पर्याप्त नहीं हुआ। कार्य करने से कोई इतना नहीं थकता जितना कि कर्ता-भाव से। शत प्रतिशत करने में लगो, बिना कर्ताभाव के।
तुम्हारी सभी प्रतिभाएँ दूसरो के लिए हैं। अगर तुम सुरीला गाते हो, वह दूसरों के लिए ही है, अगर तुम स्वादिष्ट भोजन बनाते हो, तो दूसरों के लिए, अच्छी पुस्तक लिखते हो तो वह भी दूसरों के लिए-अपनी लिखी पुस्तक तुम बैठकर स्वयं नहीं पढ़ते। यदि तुम अच्छे बढ़ई हो, तो दूसरों के लिए। अगर एक निपुण सर्जन हो तो दूसरों के लिए; तुम खुद अपनी शल्य-चिकित्सा नहीं कर सकते। यदि तुम शिक्षक हो-वह भी दूसरों के लिए। तुम्हारे सभी कार्य, सभी निपुणतायें, दूसरों के लिए हैं।
अपनी प्रतिभाओं, निपुणताओं का उपयोग करो अन्यथा वे तुम्हें फोन: नहीं दी जायेंगी।
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