अभिभावकों की भूमिका: परिचय अपने बच्चों से– श्री श्री रवि शंकर

Post Date: July 28, 2020

अभिभावकों की भूमिका: परिचय अपने बच्चों से– श्री श्री रवि शंकर

2. वैज्ञानिक प्रकृति

  1. बच्चे की वैज्ञानिक प्रकृति को बढ़ावा देना चाहिए और उनको प्रश्न करने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए। एक बच्चा, तीन साल की उम्र से प्रश्न पूछना प्रारंभ कर देता है। अक्सर, वह ऐसे प्रश्न कर बैठते हैं जिनका माता-पिता के पास उत्तर भी नहीं होता है। वह उन्हें आश्चर्यचकित कर देतं हैं और ऐसी वास्तविकता के विषय में सोचने पर विवश कर देते हैं जो अद्भुत है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि वे वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बनाये रखें।

3.संवाद शैली

  1. बच्चों को हर उम्र और वर्ग के लोगों से मिलने-जुलने और बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। चाहे वह उससे उम्र मे बड़े हों या छोटे, उन्हें सबसे संपर्क रखना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। इससे इस बात का संकेत मिलता है कि उनमें उच्चता मनोग्रंथि या लघुता मनोग्रंथि तो नहीं विकसित हो रही है या फिर वह स्वभाव में बहिर्मुखी या अंतर्मुखी तो नहीं बन रहा है। ऐसा जानकर उसे एक संतुलित गुणी और लचीले व्यक्ति के रूप में ढाला जा सकता है जिसका व्यक्तित्व सभी प्रकार की जटिलता से मुक्त होगा। लघुता मनोग्रंथि वाले बच्चे अक्सर अपने से बढ़ी उम्र के लोगों से कतराते है और अपनी उम्र के बच्चों से मिलने जुलने से भी बचते हैं। जबकि उच्चता मनोग्रंथि वाले बच्चे अपनी उम्र के बच्चों को नकारते हुए अक्सर अपने से उम्र के बड़े लोगों से संपर्क रखते हैं। इन दोनों परिस्थितियों में स्वस्थ संवाद नहीं पनपता है। माता-पिता अपने बच्चों को स्वास्थ-संवाद के गुण सिखा सकते है। उन्हें इस विषय में जानना आवश्यक है।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Today's Offer